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आज यूक्रेन में फंसे 20 हजार भारतीय के लिये कुछ नहीं कर पा रहे
Girish Malviya
भारत की मोदी सरकार 20 हजार को नहीं निकाल पा रही है. बच्चों को वापस लाने के लिये सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की जा रही है. पर, आपको याद होगा आज से 32 साल पहले वर्ष 1990 में इसी देश ने पौने दो लाख लोगों को रेस्क्यू किया था. यूक्रेन में युद्ध के बीच फंसे मात्र 20 हजार भारतीयों को मोदी सरकार निकाल पाने में अब तक विफल दिख रही है. वह भी तब जबकि पूरी दुनिया और मोदी सरकार को महीनों पहले से यह जानकारी थी कि वहां हालात किस कदर खराब हो सकते हैं. लेकिन सरकार ने न तो तत्काल उड़ान की कोई व्यवस्था की और न ही हवाई किराये में किसी प्रकार की राहत दी.
आज हालत यह है कि हमारे 20 हजार भाई-बहन वहां फंसे हुए हैं. और हम टीवी पर यह देख करके खुश हो रहे हैं कि यूक्रेन के भारत स्थित यूक्रेन के राजदूत ने अपने बयान में कहा है कि अगर मोदी जी पुतिन से बात करेंगे, तो शायद रूस हमला रोक दे. नरेंद्र मोदी को उनके चाहने वाले विश्व स्तर का नेता मानते हैं. लेकिन आज जहां हम 20 हजार लोगों के लिए परेशान हो रहे हैं, वहीं 1990 के दशक में हमने पौने दो लाख लोगों को सफल तरीके से रेस्क्यू किया था. तब कोई मोदी नहीं थे. लेकिन तब की सरकार अपनी जनता के प्रति रिस्पोंसेबिलिटी को सबसे ऊपर मानती थी.
दो अगस्त 1990 को खाड़ी युद्ध शुरू होने के बाद वहां फंसे पौने दो लाख भारतीयों को सुरक्षित तत्कालीन सरकार ने निकाला था. इसके लिए विदेश मंत्री इंद्र कुमार गुजराल, अतिरिक्त सचिव आईपी खोसला बग़दाद पहुंचे थे, जहां गुजराल की मुलाक़ात सद्दाम हुसैन से हुई. इस मुलाकात में सद्दाम हुसैन ने गुजराल को गले लगाया था और बातचीत बहुत अच्छी रही थी. इसके बाद सद्दाम ने भारतीयों के रेस्क्यू ऑपरेशन करने की इजाजत दे दी थी.
आज युक्रेन में आप 50 फ्लाइट नहीं भेज पा रहे हो, लेकिन तब 13 अगस्त से 11 अक्टूबर 1990 तक चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन में अम्मान से भारत के बीच करीब पांच सौ उड़ानें भरी गई थीं. उनमें से एक भी फ्लाइट के बारे में कहीं आपको यह सुनने को नहीं मिलेगा कि फंसे हुए लोगों से दुगुना तिगुना किराया लिया गया. एक बात और, आज जो लोग यहां से खाली फ्लाइट भेजने का तर्क देकर दोगुने-तिगुने किराए को सही साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें यह बताना चाहिये कि 1990 में भारत से भेजी गई फ्लाइट में कौन जा रहा था. 500 उड़ानें कैसे भरी गई होंगी. किसने उन उड़ानों का खर्च उठाया होगा?
तब उस वक्त के भारत के दूतावास के कर्मचारी, आज यूक्रेन के जैसे अपना दफ्तर बंद कर के भागे नहीं थे. बल्कि तब एंबेसी के अधिकारी रोज वहां के लोकल बस प्रोवाइडर्स से संपर्क करते थे और रिफ्यूजीज को बसरा, बगदाद और अमान होते हुए 2000 किमी दूर पहुंचाते थे. इस काम में हर रोज 80 बसें लगती थीं.
आपको क्या लगता है दुनिया की सबसे बड़ी रेस्क्यू ऑपरेशन कैसे चला होगा. कहां से आयी होगी, ऐसी शक्ति. तो आपको यह समझना होगा कि इसके पीछे काम करती हैं इच्छा शक्ति. इच्छा शक्ति, जो आज की सरकार के पास बिल्कुल भी नहीं दिख रही है.
देश के लोगों को पता होना चाहिए कि एयर इंडिया की मदद से चलाया गया पोने दो लाख भारतीयों को निकालने का यह अभियान दुनिया का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन माना जाता है. लेकिन तब के नेताओं में इतनी लाज-शर्म थी कि उन्होंने उसे चुनावों में भुनाना तो दूर जिक्र तक नहीं किया था.
एक बात और जान लेने की जरूरत है कि इसी घटना को लेकर जो अक्षय कुमार ने एयरलिफ्ट फिल्म बनाई थी, वो बिल्कुल बोगस कहानी थी. कोई राजीव कत्याल टाइप का बिजनेसमैन नहीं था. इस रेस्क्यू ऑपरेशन के असली हीरो एयर इंडिया का चालक दल, एंबेसी के कर्मचारी और राजनयिक थे.
Rani Sahu
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