- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- फकत भीड़ हैं हम!
रेलगाडि़यां रोकी जा रही हैं, जलाई जा रही हैं, सड़कें जाम की जा रही हैं, संपत्तियां फूंकी जा रही हैं, बलवा हो रहा है। किसका नुकसान है यह? किसे लाभ है इसमें? नुकसान हम सबका है, लाभ कुछ गिने-चुने नेताओं को मिलेगा। अग्निवीर के नाम पर फैली आग ने देश को जकड़ रखा है। एक भीड़ है जो अग्निवीर योजना का समर्थन कर रही है। तरह-तरह के तर्क दे रही है। एक और भीड़ है जो इस योजना का विरोध कर रही है, मज़ाक उड़ा रही है। देश भीड़ों में बंट गया है। जो अलग हैं, जो सिर्फ सोच रहे हैं, जो किसी हाईकमान का पिट्ठू नहीं हैं, वे अकेले हैं, उनकी संख्या कितनी भी हो, पर वे अकेले हैं। योजना का समर्थन करने वाले भी उनको कोसते हैं और विरोध करने वाले भी। कोई नेता देश के विकास के लिए कोई नई बात कहता है, कोई अच्छी बात कहता है और कुछ करके दिखाता है तो उसका समर्थन बढ़ता है, पीछे लगी भीड़ बढ़ती है। इससे नेता का गुरूर बढ़ता है, वह जान जाता है कि उसकी बातें पसंद की जाने लगी हैं, लोग उससे प्रभावित हो रहे हैं। फिर अगर वह नेता किसी अनजान जगह पर चला जाए, जहां लोग उसे पहचानते न हों तो उसे बड़ा अटपटा लगता है। उसकी नजरें ऐसे लोगों को खोजने लगती हैं जो उसे पहचानते हों। उसे भीड़ की आदत पड़ जाती है। भीड़ उसकी भूख बन जाती है। परिणाम यह होता है कि नेता भीड़ को 'पटाने' में व्यस्त हो जाता है। उसे हर हाल में भीड़ चाहिए, बड़ी भीड़ चाहिए। नेता का अपना नज़रिया होता है, नया नज़रिया होता है, इसीलिए वह नेता है, लेकिन भीड़ का अपना मनोविज्ञान होता है।