सम्पादकीय

हम असाधारण भारतीय

Gulabi
15 Nov 2021 5:05 AM GMT
हम असाधारण भारतीय
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असाधारण भारतीय

भारत में असाधारण परिस्थितियां ही वास्तव में राष्ट्र बनाती हैं। हम भयंकर बरसात-बाढ़, गर्मी-लू, ठंड और बर्फबारी में एक मुकम्मल देश बन जाते हैं। हम जब तक असाधारण होकर नहीं सोचते, देश अपना सा नहीं लगता। इसीलिए हमेशा महंगाई को साधारण मानकर हम असाधारण हो जाते हैं या इसके विपरीत जब नागरिक असाधारण सा काम करते हैं, सरकारें ठीक हो जाती हैं। पेट्रोल के दाम असाधारण तब तक रहे जब तक नागरिक साधारण थे, लेकिन जैसे ही उपचुनावों को असाधारण बना कर जनता ने अपना काम किया, पेट्रोल के दाम पसीना-पसीना हो गए। देश की व्यवस्था दरअसल असाधारण हो गई है, क्योंकि हम भारतीय साधारण से दिखते हैं और काम भी इसी अनुपात में करते हैं। बाकायदा असाधारण परिस्थितियों में धकेल कर नेता लोग हमें साधारण बनाए रखते हैं। नागरिक को साधारण बनाए रखना सरकारों की मजबूरी भी है। हम साधारण रहेंगे, तो सरकारें काम करती हुई नजर आती हैं।

मुफ्त का अनाज जिस तरह अस्सी करोड़ लोगों तक पहुंच रहा है, उससे भारत सरकार एकदम असाधारण मोर्चे पर बुलंद होती है। कोविड ने बता दिया कि चीन के मुकाबले भारत और भारतीय व्यवस्था सामान्य न होकर असाधारण है। सवाल यह है कि हर सवाल को असाधारण बनाकर पूछा जाए, तो हर मसला साधारण बन सकता है। चाहे पेट्रोल कितना भी उछल जाए, इसके दाम सामान्य दिखाई दिए, तो यह कमाल केवल भारतीय सवाल कर सकता है। भारत में बेरोजगारी को साधारण मानकर सरकारें अक्सर असाधारण करिश्मा करती हैं। अब तो राजनीति खुद ही असाधारण कहावतों-जुमलों की पेशकश है। इसलिए बड़ा नेता वही साबित होता है जो अपने लटके-झटकों से राष्ट्र के लिए असाधारण हो जाए। देश इस वक्त इसलिए धन्य है, क्योंकि जिधर भी देखें, कम से कम हमारे नेता तो असाधारण हैं ही। दरअसल नेताओं ने भी क्रिकेट सीख ली है, जहां एक बार कोई विराट कोहली की तरह असाधारण हो सकता है। मानना पड़ेगा कि भारत ने क्रिकेट को इतना असाधारण बना दिया कि जब चाहंे बड़ा मैच हार जाएं। दूसरी ओर कंगना रनौत बनकर कोई भी शख्स हर इनाम का हकदार हो जाए, तो इसे महान कहेंगे।
फेसबुक के जमाने में महान होना दरअसल खुद को महान बनाना है और यह असाधारण कसौटी है। फेसबुक में कब कौन साधारण हुआ, यह तो पता नहीं, लेकिन जब तक रवैया असाधारण है, समझो आप इस माध्यम के खिलाड़ी हैं। पिछले दिनों नशे के मामले में असाधारण जांच के कारण दुनिया को मालूम हो गया कि शाहरुख खाने के घर में भी नशा कितना बेबस है। बेबसी देश और मीडिया की भी बढ़ती है, जब राष्ट्र की जांच एजेंसियां बड़ा काम करती हैं। अब राफेल मामले को ही लें, असाधारण ढंग से हमें बताने में कोई तो सफल होगा कि यहां कुछ हुआ ही नहीं। दरअसल अब कुछ होकर भी न होना और बिना कुछ किए असाधारण हो जाना, राष्ट्र का निर्माण कर रहा है। राष्ट्र जिस क्षेत्र में नजर आ रहा है, वहां सब कुछ असाधारण ही तो है। हम राष्ट्र के लिए असाधारण ढंग से यह विश्वास करें कि बहुत कुछ हो रहा है, तो यकीनन हमें लगेगा कि बहुत कुछ हो रहा है। आजादी के बाद हम यही विश्वास करने वाले असाधारण भारतीय हैं और उम्मीद है इसी तरह दुनिया भी मान जाएगी कि एक देश अपने नागरिकों को किस तरह असाधारण परिस्थितियों में साधारण बने रहने की तहजीब सिखा चुका है।.
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक
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