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- हम सभी ट्रैफिक सिपाही

सिपाही हर दिन उसी चौराहे पर अपना फर्ज निभाता है, लेकिन उसे मालूम नहीं हो पाता कि उसकी निष्ठा, कर्त्तव्यपरायणता, अनुशासन, ईमानदारी व देश के प्रति वचनबद्धता के बावजूद क्यों कोई न कोई नया ट्रैफिक जाम हो जाता है। वह हैरान है कि देश तो चल रहा है, लेकिन उसके समीप आकर इस तरह क्यों रुक रहा है। वह मेहनत करने को प्रेरित है और चाहता भी यही है कि देश उसके सामने भागे। यह अजीब सी जीवंतता है जो सत्ता को तो ट्रैफिक जाम से बचा लेती है, लेकिन अदने से सिपाही को खुद में ही फंसा लेती है। देश की जीवंतता में जो फंस जाता है, मानो वह ट्रैफिक सिपाही है। वह चारों दिशाओं में हाथ-पांव मारता है, लेकिन उसके सामने ही गतिशीलता भंग होती है। देश की आजादी ने हम सभी को टै्रफिक सिपाही बनाकर यह सिखा दिया है कि कोशिश करते रहो और इसी प्रयास में एक दिन ट्रैफिक जाम से बच जाओगे। हर नागरिक चाहता है, हर चुनाव चाहता और यहां तक कि हर राजनीतिक पार्टी चाहती है कि देश चले, लेकिन देश को रोक कौन रहा है। खुद देश को भी मालूम नहीं हो रहा कि उसे हर काम को रोकने की आदत कैसे और कब से पड़ गई। देश को शक है कि आजादी ने ही उसे 'काम रोको' बना दिया, वरना इससे पहले भी सब चल ही तो रहा था। किसी ने कहा नेहरु की वजह से देश रुक रहा है, तो किसी ने कहा कि गांधी को महात्मा मानने से देश रुक गया। देश ने अपनी आशंका को दूर करते हुए अब तो गांधी को भी महात्मा मानना छोड़ दिया, लेकिन अचानक नए साधु-संतों की जमात ने उसे हर बार चौराहे पर रोक दिया। वह जाए, तो जाए कहां। देश अर्थव्यवस्था के हिसाब से चला। स्वदेशी कारणों से चला, मगर अब उसे खुद पता नहीं कि वह किसकी वजह से चल रहा है। देश उस दिन दुखी हुआ, जब किसी ने कहा कि आपको अब केवल साधु-संत चलाएंगे।
सोर्स-divyahimachal
