सम्पादकीय

हम सभी ट्रैफिक सिपाही

Rani Sahu
29 May 2022 7:09 PM GMT
हम सभी ट्रैफिक सिपाही
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सिपाही हर दिन उसी चौराहे पर अपना फर्ज निभाता है

सिपाही हर दिन उसी चौराहे पर अपना फर्ज निभाता है, लेकिन उसे मालूम नहीं हो पाता कि उसकी निष्ठा, कर्त्तव्यपरायणता, अनुशासन, ईमानदारी व देश के प्रति वचनबद्धता के बावजूद क्यों कोई न कोई नया ट्रैफिक जाम हो जाता है। वह हैरान है कि देश तो चल रहा है, लेकिन उसके समीप आकर इस तरह क्यों रुक रहा है। वह मेहनत करने को प्रेरित है और चाहता भी यही है कि देश उसके सामने भागे। यह अजीब सी जीवंतता है जो सत्ता को तो ट्रैफिक जाम से बचा लेती है, लेकिन अदने से सिपाही को खुद में ही फंसा लेती है। देश की जीवंतता में जो फंस जाता है, मानो वह ट्रैफिक सिपाही है। वह चारों दिशाओं में हाथ-पांव मारता है, लेकिन उसके सामने ही गतिशीलता भंग होती है। देश की आजादी ने हम सभी को टै्रफिक सिपाही बनाकर यह सिखा दिया है कि कोशिश करते रहो और इसी प्रयास में एक दिन ट्रैफिक जाम से बच जाओगे। हर नागरिक चाहता है, हर चुनाव चाहता और यहां तक कि हर राजनीतिक पार्टी चाहती है कि देश चले, लेकिन देश को रोक कौन रहा है। खुद देश को भी मालूम नहीं हो रहा कि उसे हर काम को रोकने की आदत कैसे और कब से पड़ गई। देश को शक है कि आजादी ने ही उसे 'काम रोको' बना दिया, वरना इससे पहले भी सब चल ही तो रहा था। किसी ने कहा नेहरु की वजह से देश रुक रहा है, तो किसी ने कहा कि गांधी को महात्मा मानने से देश रुक गया। देश ने अपनी आशंका को दूर करते हुए अब तो गांधी को भी महात्मा मानना छोड़ दिया, लेकिन अचानक नए साधु-संतों की जमात ने उसे हर बार चौराहे पर रोक दिया। वह जाए, तो जाए कहां। देश अर्थव्यवस्था के हिसाब से चला। स्वदेशी कारणों से चला, मगर अब उसे खुद पता नहीं कि वह किसकी वजह से चल रहा है। देश उस दिन दुखी हुआ, जब किसी ने कहा कि आपको अब केवल साधु-संत चलाएंगे।

बाबा रामदेव सरीखे चलाएंगे। देश ने यूं ही साधु-संत पैदा नहीं किए। इसके लिए उसे वापस सतयुग तक लौटना पड़ा। सारे इतिहास बदलने पड़े और अब तो भारतवर्ष की तरक्की के लिए पुरानी सारी ईंटें बदली जा रही हैं, ताकि देश अपनी ताकत का सही प्रदर्शन कर सके। एक मिनट के लिए सोचें कि अगर देश यह तय कर ले कि उसे पुराने लाल किले को हटाकर नया लाल किला बनाना है, तो इसके माध्यम से हमारी आर्थिक स्थिति कितनी मजबूत होगी। भट्ठे नई ईंटें पैदा करेंगे, मजदूर पुरानी गिराएंगे। ट्रक नई ईंटें ढोएंगे और पुरानी अतीत तक पहुंचा कर आएंगे। पुराने लाल किले की विडंबना यह है कि इसे किसी नामी कंपनी ने नहीं बनाया था, जबकि आज देश के पास अपने कद से बड़ी ऐसी कंपनियां मौजूद हैं जो पूरे भारत की शक्ल बदल सकती हैं। देश नए किलों और भव्य मंदिरों का निर्माण करके इतना तीव्र भागेगा कि भागते-भागते ऊर्जा पैदा हो जाएगी। तब बिजली नागरिकों के भागने से पैदा होगी और हमें कच्चा तेल आयात नहीं करना पड़ेगा। सोचिए तब रुपया कितना ऊपर उठेगा। देश को अब बस भागने की प्रैक्टिस करनी है, इसलिए ऐसे काम करने होंगे ताकि जनता एक-दूसरे को देखते ही दूर भागने लगे। देश की खातिर लोगों में ऐसी स्फूर्ति चाहिए कि एक-दूसरे को देखते ही भागने के आदेश मान लिए जाएं। भागने से लोग स्वस्थ होंगे। भागते-भागते वे अपना अपव्यय कम करेंगे और देश कमाने लगेगा। चौक पर खड़ा सिपाही देश की खातिर चारों दिशाओं में भाग रहा है। देश की सारी ताकत चौराहे पर आकर सिग्नल देख रही है, लेकिन सिपाही को यकीन है कि वही देश को चला रहा है।
निर्मल असो
स्वतंत्र लेखक

सोर्स-divyahimachal


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