सम्पादकीय

हम सब भारत माता की सन्तान

Subhi
24 April 2022 3:16 AM GMT
हम सब भारत माता की सन्तान
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भारत में आजकल जिस तरह हिन्दू-मुसलमान का पुनः विवाद विभिन्न कारणों से उठ रहा है वह भारत की महान समावेशी संलिष्ठ संस्कृति के इसलिए विपरीत है

आदित्य नारायण चोपड़ा: भारत में आजकल जिस तरह हिन्दू-मुसलमान का पुनः विवाद विभिन्न कारणों से उठ रहा है वह भारत की महान समावेशी संलिष्ठ संस्कृति के इसलिए विपरीत है क्योंकि इस देश में 'धर्म' की परिकल्पना मजहब की न होकर वस्तुगत कर्त्तव्य की इस तरह रही है कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कार्यरत व्यक्ति अपने कार्य का शुद्ध अन्तःकरण से परिपालन करता हुआ समाज के विकास में अपना योगदान दे सके और सभ्यता को लगातार समृद्ध करता चले। अतः भारत में धार्मिक कट्टरता का विकास कभी भी किसी विशेष पूजा पद्धति के आधार पर नहीं हो सका। यही वजह थी कि भक्तिकालीन युग में सन्त कबीरदास ने जहां हिन्दू रूढि़वादियों को निशाने पर लिया तो मुस्लिम कट्टरता को भी नहीं बख्शा परन्तु इस्लाम धर्म के भारत में आने के बाद जिस तरह की सांस्कृतिक धर्मांधता को मुस्लिम उलेमाओं ने उखसावा दिया उसमें मुसलमानों को भारत के शेष समाज से स्वयं को अलग दिखने की प्रेरणा दी और अरबी सभ्यता के चिन्हों को अपनाने की ताईद की। भारत पर लगभग सात सौ साल तक मुस्लिम शासकों का निजाम रहने की वजह से इस संस्कृति के मानकों को भारत में विशेष सम्मान दिया गया क्योंकि उसका सम्बन्ध सीधे हुक्मरानों से था। इसके बावजूद भारतीय या हिन्दू संस्कृति का कुछ नहीं बिगड़ा क्योंकि इसके मूल में ही सर्व धर्म सम-भाव समाया हुआ था लेकिन शासक आखिर शासक ही होता है अतः मुगल बादशाहों ने भी भारत की हिन्दू जनता का मन जीतने के लिए कुछ ऐसे उपाय किये जिनसे उनका प्रजा में विद्रोह भाव दबा रहे । बेशक औरंगजेब ने सारी मर्यादाओं को तोड़ डाला और हिन्दुओं पर जुल्मो-सितम गारत करने में कोई कमी नहीं छोड़ी और इसके लिए सबसे जरूरी जो उसने समझा वह हिन्दू मन्दिरों का विखंडन था। यह कोई बेवजह नहीं था कि भारत की मुगल सल्तनत को सबसे ज्यादा कमजोर करने का काम भी मुसलमानों ने ही किया जिनमें ईरान का बादशाह नादिर शाह और अफगानिस्तान का अहमद शाह अब्दाली प्रमुख था। वास्तव में ये इस्लामी लुटेरे थे जिनकी निगाह सिर्फ भारत की धन दौलत पर थी जिसका संचय मुगल सल्तनत दो सौ से अधिक वर्षों से कर रही थी। अतः इस पृष्ठ भूमि में जब 1756 में ईस्ट इंडिया कम्पनी के लार्ड क्लाइव ने बंगाल के युवा नवाब सिरोजुद्दौला को हरा कर बंगाल पर कब्जा किया रियासत के लोगों से रुपये में इकन्नी का लगान वसूली का अधिकार पाया तो ईस्ट इंडिया के पैर भारत की अन्दरूनी राजनीति में जम गये जिसके बाद उन्होंने भारत की विभिन्न रियासतों को अपने कब्जे में लेना शुरू किया और असली हुक्मरान बन गये।कालान्तर में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत की सल्तनत को ब्रिटेन की महारानी को बाकायदा बेचा जिसके बाद इस देश में अंग्रेजी कानूनी का राज शुरू हुआ। यह काम 1857 के स्वतन्त्रता समर के बाद ही शुरू हुआ मगर इसके बाद से ही भारत के मुस्लिम नेताओं ने अंग्रेजों की तरफदारी शुरू कर दी जिनमें सर सैयद अहमद खां प्रमुख थे। उन्होंने 1857 के कथित गदर के दौरान अंग्रेजों की बहुत मदद की थी और बहुत से अंग्रेज परिवारों की भारतीय रजवाड़ों की सेनाओं से जानें भी बचाई थीं। इसी वजह से अंग्रेजों ने उन्हें 'सर' की उपाधि से भी विभूषित किया था। सर सैयद की मृत्यु 1898 में हुई और उनके रहते ही भारत के बुद्धीजीवी कहे जाने वाले लोगों ने एक अंग्रेज ए.ओ. ह्यूम के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की स्थापना कर दी थी जिसकी शुरू में प्रमुख मांग शासन में भारतीयों की भागीदारी की रहती थी। बहुत बाद में 1914 के करीब महात्मा गांधी के राजनीति में उदय होने के बाद यह भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन की प्रेरक बनी। मगर तब सर आगा खां जैसे इस्माइली मुस्लिम नेता ने मुसलमानों के लिए पृथक अधिकारों की लड़ाई लड़ने के उद्देश्य से मुस्लिम लीग का गठन करने में महती भूमिका निभा डाली थी। संपादकीय :मैडिकल जगत में हमारा आयुष लाजवाबवैश्विक परिदृश्य पर भारत का महत्वबूस्टर डोज की जरूरतहिन्द की चादर 'गुरु तेगबहादुर'बोरिस जॉनसन की भारत यात्रासमान नागरिक आचार संहिता और मुसलमान1918 में मुहम्मद अली जिन्ना का महात्मा गांधी से तीव्र मतभेद हो गया और उसने कांग्रेस छोड़ कर मुस्लिम लीग की पृथकतावादी सामुदायिक राजनीति को बढ़ावा देना शुरू किया जिसके अन्तर्गत मुसलमानों की पृथक सांस्कृतिक पहचान प्रमुख मुद्दा थी मगर यह काम तभी हो सकता था जब मुसलमानों को पूरी तरह भारतीय भूमि से काट कर अलग कौम बता दिया जाये और उसके लिए मजहब का जम कर उपयोग किया जाये। 1936 से 1947 तक जिन्ना ने केवल यही काम किया और इसी के बदौलत पाकिस्तान का निर्माण भी करा लिया जिसके पीछे जीवन के हर क्षेत्र में हिन्दू विरोध प्रमुख था। जिन्ना ने इस काम में मुस्लिम मुल्ला व उलेमाओं से लेकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों व प्राध्यापकों तक का इस्तेमाल किया और पूरे देश में वह जहर फैलाया जिसकी वजह से भारत के दो टुकड़े हो गये। मगर जिन्ना की जहनियत का असली फलसफा था कि हिन्दुओं के बहुमत वाले समाज और सरकार में मुसलमान नहीं रह सकते हैं। हमें भारत के आज के माहौल में देखना होगा कि यदि उत्तर प्रदेश का मौलाना तौकीर रजा 2022 में मुहम्मद अली जिन्ना की जिन्ना जुबान बोलने की हिमाकत कर रहा है तो उससे किस तरह निपटा जाये जिससे भारत के अधिसंख्य मुसलमानों को अलग रखा जा सके। इसके साथ ही जिस तरह कर्नाटक में दो मुस्लिम किशोरियों ने उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद हिजाब पहन कर परीक्षा देने की जिद की है उसकी असली वजह क्या है। हमें नहीं भूलना चाहिए कि संयुक्त पंजाब के ही एक बहुत बड़े राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता ने पाकिस्तान को 'अलीगढ़ के लड़कों की शरारत' बताया था, जिन्ना ने खुद उन्हें पाकिस्तान का 'फुट सोल्जर' कहा था। अतः स्वतन्त्र भारत में इसकी एकता के लिए हमें जिन्ना की जहनियत सबसे पहले समाप्त करनी होगी। इसी जहनियत से भारत माता की जय और वन्दे मातरम् न कहने का सिरा जाकर जुड़ता है।


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