सम्पादकीय

अमन की राह

Subhi
10 Sep 2022 4:44 AM GMT
अमन की राह
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आखिरकार भारत और चीन के उच्च सेनाधिकारियों की बातचीत में तनातनी का माहौल समाप्त करने पर सहमति बन गई। अब विवादित गोगरा हाटस्प्रिंग क्षेत्र से दोनों देशों ने अपनी सेनाएं लौटानी शुरू कर दी हैं।

Written by जनसत्ता: आखिरकार भारत और चीन के उच्च सेनाधिकारियों की बातचीत में तनातनी का माहौल समाप्त करने पर सहमति बन गई। अब विवादित गोगरा हाटस्प्रिंग क्षेत्र से दोनों देशों ने अपनी सेनाएं लौटानी शुरू कर दी हैं। वहां बने अस्थायी निर्माण ध्वस्त कर पूर्वस्थिति बहाल की जाएगी। यह निस्संदेह भारत की बड़ी कूटनीतिक और सैन्य सफलता है।

पिछले करीब दो साल से लद्दाख क्षेत्र में दोनों देशों के बीच तनाव बना हुआ था। दो साल पहले गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिक गुत्थमगुत्था हो गए थे, जिसमें भारत के बीस और चीन के चालीस से पैंतालीस जवान शहीद हो गए थे। उसके बाद से लगातार तनाव बढ़ता गया।

धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए चीनी सेना ने भारत के कई गश्ती बिंदुओं पर कब्जा कर लिया था। उच्च स्तरीय वार्ताएं होती रहीं, मगर चीन गोगरा हाटस्प्रिंग से हटने को तैयार नहीं था। उसने उस इलाके में करीब पचास हजार सैनिक तैनात कर रखे थे। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों की इस तनातनी पर दुनिया की नजर बनी हुई थी। कुछ अध्ययनों में यह भी जाहिर हुआ था कि एकाध जगहों पर चीन ने स्थायी बसेरे बना लिए थे।

इसे लेकर भारत सरकार को लगातार विपक्षी दलों की कड़ी आलोचना सहनी पड़ रही थी। हालांकि भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा का विवाद बहुत पुराना है। अभी तक अंतिम रूप से निशानदेही नहीं हो पाई है कि भारत का कितने भूभाग पर अधिकार रहेगा और चीन की सीमा कहां तक होगी। नियंत्रण रेखा पर ऐसे करीब साठ बिंदु हैं, जहां दोनों देशों की सेनाओं को गश्ती के अधिकार दिए गए हैं।

मगर अक्सर चीनी सैनिक अभ्यास के दौरान उन बिंदुओं को पार कर भारतीय क्षेत्र में पहुंच आते रहे हैं। हालांकि भारतीय सेना की तरफ से चेतावनी मिलने के बाद वे वापस लौट जाते रहे हैं। गलवान घाटी की घटना के बाद स्थिति कुछ अधिक तनावपूर्ण बन गई थी। अच्छी बात है कि अब वह तनाव दूर हो गया है और उस इलाके में शांति और स्थिरता आएगी।

हालांकि चीन के किसी भी कदम को लेकर बहुत दावे के साथ कुछ कहना मुश्किल होता है। वह कब अपने वादों से पलट जाए, किसी को अंदाजा नहीं होता। दरअसल, चीन अपनी विस्तारवादी नीतियों को कभी छोड़ने को तैयार नहीं दिखता। भारत पर दबाव बनाने के लिए हर संभव प्रयास करता रहता है।

लद्दाख क्षेत्र में चीनी अपनी पैठ इसलिए बनाना चाहता है कि वहां से वह भारत पर भारी दबाव बना सकता है। इसी मकसद से उसने पाकिस्तान को अपने पक्ष में कर रखा है। मगर इस बार करीब दो साल तक चले तनाव के बाद शायद उसे अहसास हो गया होगा कि भारतीय सेना को बहुत आसानी से काबू में नहीं किया जा सकता।

पिछले कुछ सालों में भारत ने उसे टक्कर देने वाले आयुध और अत्याधुनिक सैन्य उपकरण जुटा लिए हैं। अभी विक्रांत के जलावतरण से भी भारतीय सेना की ताकत बढ़ी है। फिर वह भारत पर दबाव बना कर जिन व्यापारिक क्षेत्रों में अपनी पैठ बढ़ाना चाहता है, उसमें भी उसे बहुत कामयाबी मिलती नजर नहीं आती।

वैश्विक स्तर पर अमेरिका और रूस के साथ भारत के मजबूत होते रिश्ते, क्वाड आदि संगठनों में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका आदि चीन को बड़ी चुनौती हैं। वैसे भी आज देशों की तरक्की सैन्य तनातनी से नहीं, व्यापारिक गतिविधियों से होती है, चीन इस बात को अच्छी तरह समझता है। उम्मीद जगी है कि भारत और चीन के रिश्ते फिर से मधुर होंगे।


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