सम्पादकीय

आंदोलन का रास्ता

Gulabi
3 Oct 2021 4:04 PM GMT
आंदोलन का रास्ता
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दिल्ली और इसके आसपास हजारों छोटी और मझोली इकाइयां हैं

किसान आंदोलन के कारण रास्ते बंद होने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी स्वाभाविक है। कई महीने गुजर जाने के बाद भी समस्या का कोई समाधान निकलता नहीं दिख रहा। इसका नतीजा आम नागरिकों को भुगतना पड़ रहा है। रास्ते खुलवाने के लिए सर्वोच्च अदालत पहले भी केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों को आदेश दे चुकी है। लेकिन अदालत के बार-बार कहने के बाद भी इन राज्य सरकारों की ओर से रास्तों को खुलवाने के ठोस प्रयास होते नहीं दिखे, बल्कि सरकारें किसानों पर दोष मढ़ती रहीं कि वे बातचीत के लिए राजी नहीं हैं। इसलिए किसानों के साथ ही सरकारों के रुख को लेकर भी अदालत कम नाराज नहीं है।

गौरतलब है कि नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर किसान पिछले दस महीने से दिल्ली की सीमाओं पर जमे हैं। किसान दिल्ली में न घुस पाएं, इसके लिए पुलिस ने सीमाओं को बंद कर दिया था और जगह-जगह लोहे और सीमेंट के अवरोधक खड़े कर दिए थे। इसलिए किसान सड़कों पर ही बैठ गए और वहीं अस्थायी ठिकाने भी बना लिए। यही स्थिति अभी तक कायम है।
इसमें कोई शक नहीं कि दिल्ली की सीमाएं बंद होने और रोजाना लगने वाले भारी जाम से लोगों को मुश्किलें तो रही हैं। फरीदाबाद, गाजियाबाद, नोएडा, गुरुग्राम, सोनीपत जैसे शहर दिल्ली से सटे हैं। रोजाना बड़ी संख्या में यहां से लोग दिल्ली आते-जाते हैं। पर पिछले दस महीने से लोगों को सुबह-शाम भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। मुख्य सड़कें बंद होने से कई-कई किलोमीटर घूम कर जाना पड़ रहा है। फिर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र देश का बड़ा औद्योगिक और व्यापारिक केंद्र भी है।
दिल्ली और इसके आसपास हजारों छोटी और मझोली इकाइयां हैं, जो रोजमर्रा के इस्तेमाल का सामान बनाती-बेचती हैं। ऐसे में रास्ते बंद होने से उद्योगों को तैयार माल की आपूर्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। व्यापारिक संगठनों ने भी रास्ते बंद होने से कारोबार पर असर पड़ने की बात कही। इसलिए इस बात से कोई असमहत नहीं होगा कि रास्ते खुलवाने के लिए सरकारों को कोशिश करनी चाहिए। साथ ही किसान संगठनों को इस बारे में सकारात्मक रुख दिखाने की जरूरत है, क्योंकि स्थायी रूप से मुख्य राजमार्गों को बाधित करना समस्या का समाधान नहीं है। इससे तो स्थिति दिनोंदिन विकट ही होगी।
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नए कृषि कानूनों को लेकर किसानों और केंद्र सरकार के बीच बढ़ता गतिरोध दरअसल दोनों पक्षों की हठधर्मिता का नतीजा है। ग्यारह दौर की वार्ता के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकल पाना हैरानी पैदा करता है। आंदोलनकारी किसानों के मामले में सरकार का रवैया भी चिंताजनक है। लगता है कि सरकार यह मान कर बैठ गई है कि किसान परेशान होकर एक न एक दिन अपने आप लौट जाएंगे। किसान भी इस जिद पर अड़ गए हैं कि जब तक सरकार इन कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती, तब तक आंदोलन खत्म नहीं करेंगे।
इस गतिरोध को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने समिति भी बनाई है। कृषि कानूनों को अदालत में चुनौती दी गई है। इसलिए अब अदालत का कहना है कि किसानों को फैसला आने तक आंदोलन खत्म करने के बारे में विचार करना चाहिए। रास्ते बंद होने से लोगों को जिन दिक्कतों से रोजाना दो-चार होना पड़ रहा है, वह गंभीर मामला है। कई बार तो यह भी देखने में आया कि मरीजों को लाने-ले जाने वाले वाहन तक समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाते। इसलिए जनता को हो रही दिक्कतों के बारे में सरकारें और किसान संगठन अब भी सकारात्मक रूप से नहीं सोचेंगे तो कैसे काम चलेगा?
जंतसत्ता
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