सम्पादकीय

जल भंडारण टैंकों की सफाई जरूरी

Gulabi
24 Aug 2021 6:13 AM GMT
जल भंडारण टैंकों की सफाई जरूरी
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एनजीटी ने एसओपी बनाकर जल शक्ति विभाग के आलाधिकारियों को थमाकर हर महीने जल भंडारण टैंकों की सफाई किए जाने की हिदायत दी थी

सुखदेव सिंह.

एनजीटी ने एसओपी बनाकर जल शक्ति विभाग के आलाधिकारियों को थमाकर हर महीने जल भंडारण टैंकों की सफाई किए जाने की हिदायत दी थी। धरती के अंदर से निकलने वाले पानी को ज़्यादातर लोग बेकार बहा रहे हैं और आसमानी पानी को भविष्य के लिए बचाकर रखने के सब्जबाग देखते जा रहे हैं…

गंदा पानी पीने से सबसे अधिक बीमारियां फैलती हैं। यही वजह है कि आजकल बीमारियों से बचने के लिए लोग मिनरल वाटर पीने को ज्यादा तरजीह देते हैं। गरीब आदमी के लिए दो वक्त की रोटी तैयार करना भी आसान काम नहीं तो फिर ऐसे में मिनरल वाटर पीना मुश्किल है। बरसात के दिनों में अक्सर प्राकृतिक जल स्त्रोतों में कच्चा पानी भर जाता और जल शक्ति विभाग की ओर से कोई जागरूकता न बरते जाने का खामियाजा हर साल लोगों को भुगतना पड़ता है। कच्चा पानी पीने से अक्सर बरसात के समय लोगों को तेज बुखार, सिर दर्द और दस्त की समस्या रहती है। एक रिपोर्ट में यह भी खुलासा हो चुका है कि पानी में यूरेनियम की मात्रा ज्यादा होने की वजह से इनसान की किडनियां तक भी जवाब दे सकती हैं। ऐसे में जल शक्ति विभाग का जल भंडारण टैंकों की सफाई किए जाने का क्या शेड्यूल रहता है, सिवाए उसके कोई नहीं जानता है। इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कड़ा रुख अपनाते हुए प्रदेश सरकार को फटकार लगाई थी। एनजीटी ने एसओपी बनाकर जल शक्ति विभाग के आलाधिकारियों को थमाकर हर महीने जल भंडारण टैंकों की सफाई किए जाने की हिदायत दी थी। धरती के अंदर से निकलने वाले पानी को ज़्यादातर लोग बेकार बहा रहे हैं और आसमानी पानी को भविष्य के लिए बचाकर रखने के सब्जबाग देखते जा रहे हैं। ज़मीन के अंदर जल स्तर दिनोंदिन कम होने के कारण भविष्य में इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। पानी की एक-एक बूंद कीमती है, इसे व्यर्थ न गंवाएं। जल ही जीवन है, यह सब बातें कहने-सुनने और पढ़ने में ही अच्छी लगती हैं। सच बात तो यह है कि हम लोग पानी की कीमत की सही पहचान न करके उसे व्यर्थ बहा रहे हैं। जनता के अलावा विभाग की कार्यप्रणाली सही न रहने की वजह से अक्सर पानी की पाइपों में रिसाव होता रहता है जिसे ठीक करने की कोई जहमत नहीं उठाता है।


ऐसे में जल संरक्षण के लिए चलाए गए अभियान का क्या औचित्य रह जाता है? घटती पेड़ों की तादाद और बढ़ते जा रहे अवैध खनन की वजह से जल स्त्रोत सूखने की कगार पर पहुंच चुके हैं। प्रकृति से जब भी खिलवाड़ करने की कोशिश की गई, इसके गंभीर परिणाम इनसान को ही भुगतने पड़े हैं। सरकारों ने करोड़ों रुपए खर्च करके जितने ज्यादा जल स्त्रोत स्थापित करके जनता को राहत पहुंचाने की पहल की, उतनी ही पानी की समस्याएं अब ज्यादा पनपती जा रही हैं। नतीजतन पानी के अभाव के चलते नलकूप, हैंडपंप, कूहलें, तालाब, बांवडि़यां, खड्डें और कुएं तक प्रभावित हो रहे हैं। बिना पानी हैंडपंप और कई वाटर सप्लाई योजनाएं सफेद हाथी बनकर रह गई हैं। वाटर टैंक पानी एकत्रित करने के लिए बनाए तो गए, मगर बिना पानी वे भी खूंटे ही बन चुके हैं। गर्मियों के दस्तक देते ही हर जगह पानी की समस्याएं पनपनी शुरू हो जाती हैं। जल स्त्रोतों में ही पानी पर्याप्त मात्रा में एकत्रित न होना जल शक्ति विभाग के लिए भी परेशानी बन कर रह जाता है। जल स्त्रोतों पर करोड़ों रुपयों का बजट सरकारों का व्यर्थ ही खर्च हो गया जिसका जनता को कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। सवाल यह है कि आखिर किस तरह भविष्य में जल स्त्रोतों में जल स्तर सही रखा जाए, इसके लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे। अगर समय रहते पानी की कमी से विकराल बनने वाली इस समस्या का समाधान नहीं सोचा गया तो लीटरों के हिसाब से पानी लेने के लिए अभी से तैयार रहना होगा। जंगल के पेड़ों पर कुल्हाड़ी चलती रहने से उनका अस्तित्व खतरे में हैं। जंगलों में अवैध कटान काफी समय से होता आ रहा है, लेकिन जनता के सहयोग के बिना वन विभाग भी उनकी रक्षा करने में सफल नहीं हो पा रहा है। गर्मियों के मौसम में अक्सर लोग अपने लाभ के लिए जंगलों में आग लगा देते हैं।

जंगलों में आगजनी की वजह से कीमती वन संपदा बर्बाद हो रही है। पेड़ों की ओर से छोड़ी जाने वाली ऑक्सीजन से इनसान जीवित है। पेड़ों की कमी की वजह से ही बारिश अब बेमौसमी कभी-कभार ही पड़ रही है। बारिश का समय पर न पड़ना किसानों को खेतीबाड़ी से बेमुख करता जा रहा है। हर साल किसानों की फसलें सूखे की भेंट चढ़ती जा रही हैं। जंगलों में अवैध कटान होना और वन भूमि पर अवैध कब्जे होने से भी वनों का अस्तित्व खतरे में है। हिमाचल प्रदेश पहाड़ी राज्य होने के बावजूद यहां पर्यावरण में जमीन-आसमान का अंतर आ गया है। पहाड़ों से बहने वाले पानी के झरने सूखते जा रहे हैं और जंगलों में पेड़ों की कमी के कारण अक्सर भूस्खलन की घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है। पेड़ों की जड़ें जमीन के अंदर पहाड़ों को जकड़कर रखने से ही जंगलों का अस्तित्व बरकरार रहता आया है। जमीनों में रसायन व खादों का ज्यादा इस्तेमाल करने से उसमें नमी की कमी हो जाती है और इसलिए फसलों को सिंचाई के लिए पानी की अत्यधिक जरूरत होती है। प्रदेश सरकार ने भले ही नई खनन नीति बनाकर अवैध खनन पर रोक लगाने की सराहनीय पहल की है, मगर खड्डों में इस कदर बेतहाशा अवैध खनन हो चुका है जिसका प्रभाव जल स्त्रोतों पर पड़ चुका है।

कूहलों, नहरों और नलकूपों में पानी की कमी की वजह से फसलों की सिंचाई नहीं हो पा रही है। प्रदेश के मालिया हैंडपंपों की हालत किसी से छुपी नहीं है जो बिना पानी के खूंटे बन चुके हैं। अक्सर खड्डों में पानी बहता रहता था जो कि जमीन के अंदर पानी की पर्याप्त मात्रा होने का एहसास करवाता था। हालात आज इस कदर बदतर बन चुके हैं कि खड्डें बिल्कुल सूखती जा रही हैं। केंद्र सरकार की ओर से चलाए गए स्वच्छता अभियान के तहत हिमाचल प्रदेश को बाहरी शौचमुक्त राज्य का दर्जा मिल चुका है। सरकार की ओर से जरूरतमंद लोगों को शौचालय बनाने के लिए आर्थिक मदद भी की जा रही है। सरकार का यह अभियान काबिलेतारीफ है ताकि कोई भी इनसान खुले में शौच करके पर्यावरण को दूषित न कर सके। अभियान के तहत लगभग घरों में शौचालय बन गए हैं और हजारों लीटर पानी टंकियों में एकत्रित करके रखना सबकी जरूरत बन चुका है। आज जरूरत इस बात की है कि जल भंडारण टैंकों को स्वच्छ रखा जाए तथा उनकी बार-बार सफाई हो, तभी संपूर्ण स्वच्छता का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

सुखदेव सिंह
लेखक नूरपुर से हैं
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