सम्पादकीय

अमरनाथ में जल तांडव

Subhi
10 July 2022 2:37 AM GMT
अमरनाथ में जल तांडव
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प्राकृतिक आपदाओं पर मानव का कोई अंकुश नहीं है। ना ही ऐसी आपदाओं के आने का कोई पूर्व अनुमान लगाया जा सकता है। प्राकृतिक आपदाएं मानव जीवन को बहुत प्रभावित करती हैं।

आदित्य चोपड़ा: प्राकृतिक आपदाओं पर मानव का कोई अंकुश नहीं है। ना ही ऐसी आपदाओं के आने का कोई पूर्व अनुमान लगाया जा सकता है। प्राकृतिक आपदाएं मानव जीवन को बहुत प्रभावित करती हैं। प्रकृति किसी न किसी रूप में धरती पर विनाश लेकर आती है जो भारी मात्रा में जीव सृष्टि को प्रभावित करती है। प्रकृति से खिलवाड़ का ही नतीजा है कि आज धरती पर पूरी जीव सृष्टि को आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है।जम्मू-कश्मीर में श्रीनगर के करीब 145 किलोमीटर दूर अमरनाथ की गुफा हिमालय पर्वत श्रेणियों में स्थित है। अमरनाथ गुफा के शिवलिंग को अमरेश्वर कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव इस गुफा में पहले पहल श्रावण मास की पूर्णिमा को आए थे इसलिए उस दिन को अमरनाथ यात्रा को विशेष महत्व मिला। गुफा के मध्य में एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूंदों से दस फीट लम्बा शिवलिंग बनता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है। मूल अमरनाथ शिविलंग से कुछ फुट दूरी पर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग-अलग हिमखंड बनते हैं।इस गुफा का महत्व इसलिए भी है कि यहां हिम शि​वलिंग का निर्माण होता है और मान्यता है कि इसी गुफा में भगवान शिव ने अपनी पत्नी देवी पार्वती को अमरत्व का महत्व सुनाया था। भारतीयों की मोक्ष और अमरत्व की कामना बहुत अधिक है। कोरोना महामारी के चलते दो साल से यात्रा नहीं हो पा रही थी। श्रद्धालुओं में बाबा बर्फानी के दर्शन करने की इच्छा हमेशा से ही उमड़ती रही है। इस बार भी श्रद्धालुओं में खासा उत्साह था। बाबा बर्फानी के पवित्र शिवलिंग के दर्शन की मनोकामना लेकर निकले श्रद्धालुओं ने शायद यह नहीं सोचा होगा कि जब वे बाबा के द्वार के ठीक पास होंगे अचानक बादल फटने से सैलाब आ जाएगा। उनकी आस केवल आस बनकर रह जाएगी। लेकिन नियति को शायद यही मंजूर था। शुक्रवार को अमरनाथ गुफा के पास बादल फटने से आए सैलाब में कई टैंट बह गए। पहाड़ों से गिरे पत्थरों से टैंट दब गए। जिसके परिणामस्वरूप 16 लोगों की मृत्यु हो गई और 30-40 के करीब लोग अभी भी लापता हैं। भारतीय वायुसेना, एनडीआरएफ, आईटीबीपी और जम्मू-कश्मीर प्रशासन के जवान हमेशा की तरह देवदूत बनकर बचाव एवं राहत आपरेशन चलाए हुए हैं। शांति काल हो या फिर प्राकृतिक आपदाएं देवदूतों ने हमेशा ही हजारों लोगों की जानें बचाई हैं। संपादकीय :हमारी नई शिक्षा नीतिजुबेर और भारत का समाजचीन की तिलमिलाहटशिंजो आबे : सायोनारा दोस्तदक्षिण भारत से 'अलग' स्वरदारू पार्टी, सैक्स स्कैंडल जानसन को ले डूबाउत्तराखंड की केदारनाथ त्रासदी में हमने देखा है कि आपदा प्रबंधन में जुटे जवानों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए हजारों लोगों को मौत के मुंह से बचाया। यद्यपि अमरनाथ यात्रा पर हमेशा ही आतंकवादी हमलों की आशंका बनी रही है। लेकिन आतंकवाद पर भारतीयों की आस्था हमेशा भारी पड़ी है। आतंकवादी धमकियों की परवाह न करते हुए लाखों श्रद्धालु बाबा बर्फानी का उद्घोष लगाते हुए इस दुर्गम यात्रा पर पहुंच जाते हैं। आतंकवादी हमलों में भी अनेक श्रद्धालु जान गंवा चुके हैं। लेकिन प्राकृतिक आपदाएं कभी-कभी रौद्र रूप दिखाती रही हैं। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब अमरनाथ पर प्राकृतिक आपदा की मार पड़ी हो। अमरनाथ यात्रा के दौरान सबसे पहला हादसा साल 1969 में हुआ था जब जुलाई महीने में भी अमरनाथ यात्रा मार्ग पर बादल फटने की घटना हुई थी तब 100 से अधिक श्रद्धालुओं की जान चली गई थी। यह घटना अमरनाथ यात्रा के इतिहास की पहली बड़ी घटना मानी जाती है। अमरनाथ यात्रा के अतीत पर नजर डालें तो सड़क दुर्घटनाओं की भी चार घटनाएं हो चुकी हैं। अमरनाथ यात्रा पर ​िपछले साल भी बादल फटने की घटना हुई थी। हालांकि तब कोरोना महामारी के कारण अमरनाथ यात्रा स्थगित थी। अगर यात्रा जारी होती तो बड़ा नुक्सान हो सकता था। मौत का मंजर दिखने के बाद आईटीबीपी, भारतीय सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ आैर जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवानों ने जिस मुस्तैदी के साथ काम किया। उससे 15 हजार लोग सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाए गए। देवदूतों ने जिस तरह से दिन-रात करके लापता लोगों की तलाश जारी रखी और हैलीकाप्टरों से लोगों को निकाल कर आर्मी के बेस कैम्प तक पहुंचाया। सभी उनकी तारीफ कर रहे हैं। हालांकि श्रद्धालु यह भी कह रहे हैं कि इस बार रुद्र नाराज हैं। गुफा मंदिर के पास हादसे में हुई मौतें और विनाश अत्याधिक बारिश के चलते हुईं। कोहराम के बीच जो यात्री बच गए वो देवदूतों का आभार व्यक्त कर रहे हैं। अब सवाल यह है कि इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारा आपदा प्रबंधक पहले से कहीं अधिक कुशल हुआ है। हम तुफानों को भी झेलना सीख गए हैं। लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि इंसान कब सीखेगा। इंसान ने जिस तरह से पूरे पर्यावरण को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बढ़ते प्रदूषण की वजह से धरती का तापमान बढ़ रहा है, इससे प्राकृतिक आपदाएं पहले से कहीं अधिक हो गई हैं। जब तक मनुष्य प्रकृति से खिलवाड़ करना बंद नहीं करता तब तक उसे ऐसे ही तांडव का सामना करना पड़ेगा।

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