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इसलिए आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर अमृत सरोवर योजना हर दृष्टि से अनूठी एवं लाभप्रद है।
केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय ने आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर अमृत सरोवर योजना शुरू की है, जिसके तहत देश भर में 50,000 तालाब बनवाए जाएंगे। इस योजना के अंतर्गत हरेक जिले में 75 सरोवर बनाए जाएंगे। इतिहास गवाह है कि हमारे देश में कुएं, तालाब, बावड़ी, बनवाने की पुरानी परंपरा रही है। जिन लोगों ने पानी प्रबंधन के लिए कार्य किया, उनका नाम आज भी आदर के साथ लिया जाता है। आज से करीब दस साल पहले वर्ष 2013 की घटना है।
उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के काकुन गांव में एक पुत्र ने अपने पिता की जमीन पर अपना तालाब अभियान के तहत तालाब के लिए आवेदन देकर तालाब का निर्माण कराया। इससे उसकी मां नाराज हो गई कि तुमने सिर्फ अपने पिता की भूमि पर तालाब बनवाया। मेरे नाम से, जो कृषि भूमि है, उस पर तालाब क्यों नहीं बनवाया? तुम क्या सिर्फ अपने पिता को ही पुण्य करने देना चाहते हो। मेरे नाम की भूमि पर भी तालाब बनवाओ, ताकि मैं भी कुछ पुण्य कमा सकूं। तब उस बेटे को अपनी मां के नाम पर भी एक तालाब बनवाना पड़ा।
ऐसी ही एक घटना महोबा जिले के रिवई गांव में कमला त्रिपाठी की है, जिन्होंने अपनी बेटी से तालाबों की अनेक कहानियां सुनकर अपने खेत पर भी तालाब बनवाने का फैसला कर लिया। जब पारिवारिक विरोध के चलते वह इसमें कामयाब नहीं हुईं, तो खुद के नाम जमीन खरीदकर 2020 में उन्होंने दो तालाब बनवाए। अब उनके खेत पर पशु, पेड़-पौधों और फसल की विविधता बढ़ने लगी है। इसी तरह बृजपाल सिंह एक बड़े कृषक हैं। सिंचाई सुविधा न होने के कारण बृजपाल सिंह की पचासों बीघा जमीन बेकार पड़ी रहती थी।
इस समस्या से निजात पाने के लिए उन्होंने अपनी जमीन पर बोर वेल लगवाने का निश्चय किया। 680 फीट खोदने के बाद भी जब पानी नहीं मिला, तो उन्होंने तालाब बनवाया। आज वह अपनी कृषि भूमि पर विभिन्न तरह की फसलें उगाते हैं और उनके पशुओं को भी वर्ष भर हरा चारा मिलने लगा। इसके अलावा उन्होंने एक बाग भी लगा लिया। तालाबों से कई तरह के सामाजिक, आर्थिक व पर्यावरणीय लाभ देखने को मिलते है। सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि मौसम की बेरुखी के कारण फसल नष्ट नहीं होती।
जिन किसानों को तालाब से सिंचाई की सुविधा उपलब्ध थी, आत्महत्या के बारे में उन्होंने कभी नहीं सोचा, क्योंकि तालाब होने से उनके पास मछली पालन, सिंघाड़ा, डेयरी, सब्जी की खेती जैसे आजीविका के साधन उपलब्ध थे। तालाब में मछली पालन से कुपोषण की समस्या दूर हो सकती है और महिलाओं और लड़कियों को पौष्टिक भोजन मिलने से मातृ मृत्यु दर में गिरावट आती है। तालाब के कारण खेत में नमी रहने से मिट्टी का जैविक कार्बन गर्मियों में भी बना रहता है, जिससे अनाज के पोषण में सुधार होता है।
तालाब भूमिगत जल को समृद्ध करके जल की गुणवत्ता को सही रखता है एवं उपजाऊ मिटटी का क्षरण रोककर किसानों को आर्थिक लाभ भी देता है। उदाहरण के लिए, भू-गर्भ जल विभाग की वर्ष 2020 रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में चित्रकूट धाम मंडल के बांदा जिले में अधिकतम तीन मीटर, चित्रकूट और महोबा में दो -दो मीटर और हमीरपुर जनपद में साढ़े तीन मीटर तक भू-जल स्तर में सुधार हुआ है एवं 10 ब्लॉक डार्क जोन की श्रेणी से मुक्त हुए हैं।
इसके अतिरिक्त पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, तालाब जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक समस्याओं को रोकने में भी सहायक होता है। हालांकि विभिन्न सरकारों ने सिंचाई के लिए अनेक बांधों का निर्माण किया है, पर बांधों के कारण होने वाले विस्थापन, कृषि एवं वन भूमि का अधिग्रहण, समय पर सिंचाई उपलब्ध न होना, पानी की बर्बादी, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन एवं बांध निर्माण की भारी लागत को देखते हुए तालाबों का निर्माण कहीं ज्यादा फायदेमंद है। इसलिए आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर अमृत सरोवर योजना हर दृष्टि से अनूठी एवं लाभप्रद है।
सोर्स: अमर उजाला
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