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नई जल नीति के ड्राफ्ट को फाइलों से निकाल कर सार्वजनिक करना जरूरी
एम. एस. राठौड़ जल राजस्थान के लिए जितना जरूरी है यह हम राजस्थानियों से बेहतर कौन समझ सकता है। उस सीमित जल को जन-जन तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी उतनी ही बड़ी है। केंद्र सरकार ने पिछले सात वर्षों में जल को जीवन व आर्थिक विकास की दृष्टि से बहुत महत्व दिया और यहां तक कि जल मंत्रालय का नाम भी बदल कर जल शक्ति मंत्रालय कर दिया।
भारत की 14 मुख्य नदियों के विकास व विशेष तौर पर सामाजिक आस्था वाली नदी 'गंगा' के विकास के लिए अनेक योजनाएं बनाई, धन का आबंटन किया व कार्यों को समय-बद्ध पूरा करने के लिए कार्य की प्रगति पर भी ध्यान दिया। अगस्त 2019 से लेकर अब तक देश में 7.63 करोड़ घरों तक नल के जरिए जल पहुंचा। लेकिन राजस्थान में 1 करोड़ से ज्यादा घरों में से सिर्फ़ 20 प्रतिशत तक जल पहुंच सका। लगभग 8.75 लाख घर अब भी नल-जल की आस लगाए बैठे हैं।
प्रदेश सरकार ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण योजना, जल जीवन मिशन के तहत "हर घर जल" के जरिए नल द्वारा साफ पीने का पानी देने की योजना चलाई है। जिससे 2024 तक 84 लाख घरों में नल के कनेक्शन देने की घोषणा की गई। केंद्र सरकार ने एक और नवाचार किया जिसके तहत भारत में पहली बार सरकार ने सरकारी तंत्र से बाहर के व्यक्ति को जल नीति के लिए 2019 में गठित कमेटी की अध्यक्षता की कमान थमाई।
डॉ. मिहिर शाह की अध्यक्षता में गठित इस कमेटी ने समाज के सभी घटकों से राय लेकर देश के लिए नई जल नीति का प्रारूप तैयार कर सरकार को सौंंपा। लेकिन हैरानी इस बात की है कि केंद्र सरकार ने उसे अभी तक जल शक्ति की वेबसाइट पर नहीं डाला।
इस बीच पिछले कुछ हफ्तों से डॉ. शाह एक अखबार में नई जल नीति पर कई लेख लिख रहे हैं। मेरी जानकारी में वे लेख इसलिए लिख रहे हैं जिससे हर समाज में नई जल नीति पर विस्तृत चर्चा हो सके, सरकार की नई जल नीति पर समाज के सभी घटकों की सहमति बन सके व नए सुझावों को जल नीति में जोड़ा जा सके। कुल मिलाकर एक सर्वमान्य जल नीति का प्रारूप तैयार हो सके।
किन्तु यह तभी संभव है जब सरकार जल नीति के ड्राफ्ट को लोगों के बीच लाए व हर प्रदेश में समाज के प्रमुख घटकों से विमर्श करेे जिससे जल्द से जल्द देश को नई जल नीति मिल सके। अंधाधुंध दोहन के कारण हमारे ज्यादातर जिले डार्क जोन में: नई जल नीति लाते समय इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि उसके क्रियान्वयन के लिए विस्तृत गाइडलाइन बने जिससे सरकार के विभिन्न विभाग, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जल से जुड़े हैं, उन्हें उस नीति को लागू करने में सुविधा हो। कागजों से उतरकर वो जल नीति जमीनी स्तर पर लागू होनी चाहिए।
डॉ. मिहिर का मानना है कि आजादी के बाद से जल नीति का फोकस बड़े बांधों के निर्माण और भूजल के दोहन पर रहा है। राजस्थान को ही लें। यहां पानी का प्रमुख स्रोत है भूजल। लेकिन अंधाधुंध दोहन के कारण हमारे ज्यादातर जिले डार्क जोन में आ चुके हैं। नई जल नीति बनाने वाले स्वतंत्र विशेषज्ञों की कमेटी के मुताबिक इस रणनीति पर कायम रहना आने वाले दिनों में मुश्किल हो जाएगा। बड़े बांध बनाने की जगह सीमित है और भूजल का स्तर कई क्षेत्रों में तेजी से घट रहा है। इसलिए जल के बेहतर प्रबंधन और वितरण पर फोकस करना चाहिए।
चावल, गेहूं और गन्ने की फसलों की सिंचाई में सबसे ज्यादा खर्च होता है पानी
इस नीति ने जल आपूर्ति की जगह जल की मांग का बेहतर प्रबंधन करने का प्रस्ताव रखा है। सबसे बड़ा सुधार सिंचाई व्यवस्था में होना चाहिए क्योंकि देश के लगभग 90 प्रतिशत तक जल का इस्तेमाल सिंचाई में होता है। इसमें भी चावल, गेहूं और गन्ने की फसलों की सिंचाई में इसका 80 फीसदी जल खर्च हो जाता है।
लेकिन समस्या सिर्फ गांवों और खेतों तक सीमित नहीं। सोचने वाली बात यह भी है कि शहर में जल प्रबंधन और जल की मांग का प्रबंधन कैसे होगा? इसके लिए रिड्यूस-रीसाइकल-रीयूज का मंत्र अपनाना होगा । हमें वेस्ट वॉटर मैनेजमेंट पर ध्यान देना चाहिए। फ्लशिंग, अग्निशमन, साफ-सफाई, लैंडस्केपिंग, हॉर्टिकल्चर आदि के लिए ट्रीटेड वेस्ट वॉटर का विकल्प चुनना होगा।
सबसे बड़ी चुनौती जल प्रबंधन नहीं बल्कि राष्ट्रीय नीति बनाने वालों की सोच, राज्यों में जल विभाग अध्यक्षों की सोच और क्रियान्वयन करने वालों की सोच और समझ मे बहुत बड़ा अंतर होना है। यही वजह है कि ज्यादातर नीतियां एक फाइल से दूसरी फाइल का सफर तय करते -करते थककर कागजों में ही सिमट कर रह जाती हैं। इसलिए जल नीति को अंतिम स्वरूप देते हुए उसके क्रियान्वयन की व्यवस्थित गाइड लाइन बनानी बहुत ज़रूरी है।
हर बूंद के संरक्षण और सही इस्तेमाल की जागरुकता जरूरी
इसके लिए राज्यों को सेमिनार और वर्कशॉप आयोजित कर सरकार व संबंधित एनजीओ को जानकारी देनी चाहिए। सबसे पहली जरूरत यह है कि जल नीति के ड्राफ्ट को जल्द से जल्द सार्वजनिक किया जाए और उस पर खुला विमर्श किया जाए जिससे पानी की हर बूंद के संरक्षण और सही इस्तेमाल की जागरुकता हर तबके तक पहुंच सके। दूसरा, राजस्थान में सिर्फ पानी पहुंचाना ही काफी नहीं बल्कि लोगों तक फ्लोराइड व नाईट्रेट मुक्त सुरक्षित और मीठा जल पहुंचाना होगा। यदि हमने अभी इस दिशा में सही व ठाेस कदम उठा लिए तो हम अपने प्रदेश को एक बहुत बड़ी मुसीबत से बचा लेंगे।
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