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- पहले की अपेक्षा पानी...
मई महीने की तपती दोपहरी में अचानक ही पांच वर्ष पहले के समाचार पत्र हाथ लग गए। सारे समाचारों में पानी के लिए हाहाकार की खबरें भरी पड़ी थीं। टैंकर माफिया के बारे में अखबारें सबूत सहित समाचार छाप रही थीं। जल संकट गहराने से पशु भी त्रस्त हैं, ऐसी खबरें सुर्खियां बटोर रही थीं। लेकिन आज समाचार पत्र में विरले ही ऐसे समाचार मिल रहे हैं। प्रदेश में जल जीवन मिशन में हुए अभूतपूर्व काम से प्रदेश सरकार ने जहां आज टैंकर माफिया का अंत कर दिया है, वहीं 'हर घर नल, हर घर जल' पहुंचाने का बड़ा एवं महत्वपूर्ण काम पिछले चार वर्षों में किया है। इसका श्रेय सीधे-सीधे निःसंकोच भारतीय जनता पार्टी की केंद्र व प्रदेश सरकार को जाता है। हिमाचल में 1977 से पहले पानी लाने के लिए संघर्ष किसी भी पीढ़ी से छुपा नहीं है। सिर पर घड़े रख कर मीलों चलना, तीन से चार घंटे की मशक्कत के बाद भी पानी पर्याप्त न होना, उस समय की पीढ़ी ने अपनी नियति ही समझ लिया था। लेकिन शांता कुमार जी के मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने लोक निर्माण विभाग से सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग को पृथक कर उसे सिंचाई व पेयजल के वितरण की जिम्मेदारी दी। शांता कुमार का छोटा सा कार्यकाल प्रदेश की महिलाओं को वरदान सिद्ध हुआ। महिलाओं के सिर से घड़ा उतारने का बड़ा काम उस समय संभव हुआ। शांता कुमार को तभी पानी वाले मुख्यमंत्री के नाम से जाना जाने लगा। भाजपा की फिर सरकार 1990 में बनी। तब शांता कुमार ने हैंडपंप लगाने की योजना पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम से शुरू की जो अपने आप में गेम चेंजर थी। प्रो. प्रेम कुमार धूमल जी की सरकार ने भी पानी को चंगर क्षेत्र के दूरस्थ गांव में पहुंचा दिया, लेकिन अभी भी बहुत प्रयास बाकी थे।