सम्पादकीय

जिसको भी देखना कई बार देखना

Subhi
4 April 2022 4:24 AM GMT
जिसको भी देखना कई बार देखना
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अगर बाहरी सुंदरता और शानो-शौकत से किसी की असलियत या किसी के व्यक्तित्व को आंका जा सकता, तो आज तड़क-भड़क से भरपूर इस दुनिया में इतना मैल न होता।

जगदीश बाली: अगर बाहरी सुंदरता और शानो-शौकत से किसी की असलियत या किसी के व्यक्तित्व को आंका जा सकता, तो आज तड़क-भड़क से भरपूर इस दुनिया में इतना मैल न होता। दमकते चेहरों के पीछे का सच भी चमकता हुआ ही होता। कबीर ने कहा है, 'मन मैला तन उजला बगुला कपटी अंग/ तासों तो कौआ भला तन मन एक ही रंग।' फिर सवाल वही कि सूरत बड़ी या सीरत? जब हम किसी सुंदर फूल को देखते हैं, तो अनायास ही मन कह उठता है, 'अहा। कितना सुंदर फूल है!' फूल हमें दिलकश केवल इसलिए नहीं लगता कि वह हमारी आंखों को भाता है, बल्कि उससे आने वाली चित्ताकर्षक खुशबू भी हमें रोमांचित कर देती है। फूल की खूबसूरती केवल उसके बाह्य आवरण से नहीं, बल्कि उसकी आंतरिक खूबियों में भी है।

निस्संदेह हर व्यक्ति चाहता है कि वह सुंदर और आकर्षक दिखे। यह इंसान की फितरत है कि वह सबसे पहले किसी चीज की बाहरी सुंदरता से आकर्षित और मोहित हो जाता है। कोई नहीं चाहता कि वह असुंदर दिखे। सुंदर दिखने के लिए लोग विभिन्न शृंगार प्रसाधनों का इस्तेमाल करते हैं। ब्यूटी पार्लर जाते और प्लास्टिक सर्जरी तक करवाते हैं।

इसमें कोई बुराई नहीं है, क्योंकि ईश्वर ने हमें तन दिया है, इसे सुंदर, स्वस्थ और आकर्षक बनाए रखना एक तरह से हमारा कर्तव्य है। जाहिर है, आदमी को सुंदर और साफ वस्त्र पहनने चाहिए। पर यह जिस्मानी खूबसूरती महज दिखावे के लिए नहीं होनी चाहिए। बाहरी खूबसूरती के साथ हम अपने अंदर की खूबसूरती बढ़ा लें, तो वह सोने पर सुहागे जैसा होगा।

वास्तव में तन की सुंदरता की अपेक्षा मन की सुंदरता ज्यादा महत्त्व रखती है। शरीर और इसका रंग-रूप हमें कुदरती मिलता है। किसी का सुंदर और कुरूप होना किसी के अपने वश की बात नहीं है। जरा सोचिए, जिसका तन काला है, वह बदसूरत और ठिगना है, तो इसमें उसकी क्या खता है। जिसका तन उजला, सुंदर और कद ऊंचा है, तो उसमें उसका क्या कमाल है। किसी शायर ने कहा है, 'ये तेरा काला रंग फरिश्ते की खता है, दिल बना रहा था कि स्याही फिसल गई।'

सुंदर तन वाले पुरुष या स्त्री अगर चरित्रहीन हैं, तो उनसे संबंध कुछ ही रातों का तमाशा होता है। मगर नेक हृदय वाले आजीवन जीवन की बगिया को महकाते हैं। आज की दुनिया बाहरी चकमक देखती है, पर अंदर जो ठोस सत्य है, उस पर बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है। शरीर आपको बाहरी सुंदरता प्रदान करता है, मुस्कुराहट और पहनावा आपको आकर्षक बनाते हैं, पर आपकी सोच और आपके कार्य आपको महान या घृणित बनाते हैं। यही सब मिल कर व्यक्तित्व बनाते हैं। गांधी, अब्राहम लिंकन, नेल्सन मंडेला, सुकरात और बीथोवन शारीरिक रूप से आकर्षक नहीं थे, पर आज भी पूरा विश्व उनके व्यक्तित्व से प्रभावित है। उन्हें आदर्श मानता है।

आदमी की असली खुशबू कपड़ों और शरीर पर छिड़के इत्र से नहीं, बल्कि उसके किरदार से फैलती है। किरदार की खुशबू हमेशा के लिए लोगों के दिलों पर छा जाती है। किसी ने खूब कहा है, 'हुस्न-ए-सूरत चंद रोज हुस्न-ए-सीरत मुस्तकिल/ इससे खुश होते हैं लोग उससे खुश होते हैं दिल।' सुंदर तन वाला व्यक्ति मन से सुंदर नहीं है, तो कुछ समय बाद उसकी तन की सुंदरता मद्धिम पड़ने लग जाएगी।

मनुष्य का रंग-रूप, उसका लिबास, बोलचाल और क्रिया-कलाप अवश्य उसकी शख्सियत को जाहिर करते हैं, पर उसके भीतर की खूबियां और कमियां क्या हैं, यह जान लेना भी जरूरी है। यह जरूरी नहीं कि हर सुंदर चेहरे वाले का दिल सोने का हो और हर कुरूप चेहरे वाले का दिल शैतानी से भरा हो। चमचमाते सोने के बर्तन में विष भी हो सकता है और पुराने मिट्टी के घड़े में शहद रूपी अमृत भी हो सकता है। सूरत तो कुछ समय के लिए आकर्षित करती है, पर सीरत हमेशा आकर्षक ही रहती है।

इसलिए किसी की शख्सियत का अंदाजा केवल चेहरे और लिबास से न लगाया जाए। उसका किरदार भी देख लिया जाए। किसी के व्यक्तित्व की पहचान के लिए ऐसा भी एक चश्मा होना चाहिए, जिससे अंदर की कमियां और खूबियां नजर आती हों। आप भी ऐसा चश्मा जल्द ही बना लीजिए, क्योंकि निदा फाजली ने कहा है, 'हर एक आदमी में होते हैं दस बीस आदमी, जिसको भी देखना कई बार देखना।'

सूरत के दाग आपको इतना बदसूरत नहीं बनाते, जितना बदसूरत सीरत के दाग बनाते हैं। चेहरे पर दाग है तो क्या हुआ, अपने मन, अपने दिल, अपनी आत्मा, अपने मन को इतना आकर्षक और बड़ा बनाओ कि लोग आपके चेहरे की बात ही न करे। जो शख्स केवल बाहरी तामझाम और शारीरिक सौंदर्य में खोए रहते हैं, वे केवल शख्स बन पाते हैं और जो अंदर के सौंदर्य और गुणों से भरे होते हैं, वे शख्सियत बन जाते हैं और जमाने-जमाने तक अपनी शफक छोड़ जाते हैं।


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