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Vijay Garg: यह रीलों और वीडियोज का कुंभ है। तरह-तरह के अजूबों का कुंभ है। कुंभ देखो और कुंभ के अजूबे देखो और उनकी और नयी रील बनाओ, वीडियो बनाओ। पहले लोग अपनी नादानी और नासमझी में यह मान लेते थे कि कुंभ मेला सिर्फ दो जुड़वां भाइयों के वहां जाकर बिछुड़ने के लिए ही होता है ताकि एक अच्छी-सी फिल्म बनायी जा सके। वैसे तो हमारे बेहद प्यारे दोस्त कवि ने ‘कुंभ में छूटी औरतें’ नाम से एक बड़ी शानदार कविता भी लिखी है।
लेकिन यह गंभीर रचनाओं और पीड़ाओं पर चर्चा करने का अवसर नहीं है। बल्कि अब तो लोग अध्यात्म पर भी कहां चर्चा कर रहे हैं। बस रील और वीडियो बना रहे हैं। बल्कि सच तो यह है कि इधर मामला जिस तरह से एक फिल्म बनाने से आगे निकल कर लाखों- लाख रीलें और वीडियो बनाने तक पहुंच गया है, उससे यही लगता है कि कुंभ मेले ने भी देश की तरह से ही काफी तरक्की कर ली है। फिल्म छोड़ो, अब तो कुंभ मेला सिर्फ रीलें बनाने के लिए ही हो रहा है।
टीवी चैनल वाले हांफ रहे हैं, यूट्यूबर्स दौड़ रहे हैं-अरे वो बंजारन मोनालिजा कहां है। अरे वह आईआईटीयन बाबा कहां है। अरे वो औघड़ बाबा कहां है। अरे वो कबूतर वाला बाबा कहां है। अरे वो कांटों पर सोने वाला बाबा कहां है। अरे सुना है उस आईआईटीयन बाबा को जूना अखाड़ा वालों ने निकाल दिया है। कोई कह रहा है वह अभी यहीं था, कोई कह रहा है गांव चला गया है। अरे यार सुना है उसके माता-पिता आए हुए हैं। कहां हैं? वह कुंभ का सर्वव्यापी बाबा बन गया है। कुंभ में आए तमाम साधुओं को उससे रश्क हो सकता है। वह कुंभ पर छा गया है। आह! क्या कमाल का साधु है। वह अपने माता-पिता को गालियां दे रहा है। वाह! वैराग्य हो तो ऐसा हो। जिस धर्म में माता-पिता को भगवान का दर्जा हासिल हो, वहां वह उन्हें अपशब्द कह रहा है, जल्लाद कह रहा है। उसके प्रेम के किस्से भी चल रहे हैं। कोई कह रहा है नशेड़ी है। कोई कह रहा है झगड़ालू है। पागल भी बता रहे हैं। अगर कुंभ में नहीं होता तो जरूर उसे ऐसा पागल मान लिया होता जो ज्यादा पढ़-लिख गया है।
लेकिन वह अकेला ऐसा नहीं है। ढूंढ़ो तो ऐसे हजार मिल जाएंगे। कोई अपनी तपस्या के अजीबो-गरीब ढंग से लोगों को आकर्षित कर रहा है, तो कोई अपने अंग्रेजी ज्ञान से। वहां विदेशी सेलिब्रिटी भी डुबकी लगाते मिल जाएंगे। वहां कोई प्रोफेसर भी मिल जाएगा। वहां अपनी विदेशी गाड़ियों से आए मठाधीश भी मिल जाएंगे। कुंभ अब एक इवेंट है सरकार और नेताओं के लिए। लेकिन लगता है कुंभ का अंतिम सत्य तो रीलें ही हैं। हजारों-लाखों रीलें।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार गली कौर चंद मलोट
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Gulabi Jagat
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