सम्पादकीय

क्या इंदिरा गांधी को आगे पीएम बनाने की रणनीति का हिस्सा थे लाल बहादुर शास्त्री?

Gulabi
9 Jun 2021 3:28 PM GMT
क्या इंदिरा गांधी को आगे पीएम बनाने की रणनीति का हिस्सा थे लाल बहादुर शास्त्री?
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तारीख थी 9 जून 1964, देश को ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री

संयम श्रीवास्तव। तारीख थी 9 जून 1964, देश को 'जय जवान जय किसान' का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) को भारत का दूसरा प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. 27 मई 1964 को जब नेहरू ने अपनी अंतिम सांसे लीं उसके बाद से ही देश-विदेश के तमाम अखबारों में यह खबर छपने लगी थी कि Who After Nehru? जहां इस सवाल का जवाब देश भर की जनता और नेता तलाश रहे थे. दूसरी ओर कांग्रेस के कद्दावर नेता मोरारजी देसाई (Morarji Desai) जो नेहरू के बाद पार्टी में सबसे बड़े नेता माने जाते थे, उन्हें मालूम था कि उन्हें ही अब देश का अगला प्रधानमंत्री बनना है. लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थे लाल बहादुर शास्त्री और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज. यह सही भी था क्यों कि के कामराज (K. Kamaraj) के मन में तो कुछ और ही चल रहा था. माहिषमति साम्राज्य के कटप्पा की तरह उनके मन में नेहरू परिवार के वंश को आगे ले जाने की प्लानिंग चल रही थी. कामराज जानते थे कि अगर मोरराजी देसाई जैसा कोई महात्वाकांक्षी नेता प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ गया तो नेहरू परिवार के किसी भी वंशज को गद्दी पर बैठना नामुमिकन हो जाएगा.


उधर मोरारजी देसाई को पता था कि उनके प्रधानमंत्री बनने के रास्ते में अगर कोई आ सकता है तो वह हैं के. कामराज और लाल बहादुर शास्त्री. दरअसल के. कामराज मोरारजी देसाई को कभी पसंद नहीं करते थे, यही वजह थी कि जब मोरारजी देसाई को नेहरू के बाद प्रधानमंत्री बनाने की बात हुई तो के. कामराज ने साफ इनकार कर दिया. के. कामराज के इस फैसले के साथ कांग्रेस के कई बड़े नेता थे, जिनका मानना था कि मोरारजी देसाई अपनी मनमानी करते हैं और बिना किसी की सुने काम करते हैं. वहीं दूसरी ओर लाल बहादुर शास्त्री थे जो अपनी सादगी और शांत स्वभाव के लिए जाने जाते थे. लाल बहादुर शास्त्री हमेशा हर काम लोगों से रायशुमारी के साथ करते थे और उस वक्त कांग्रेस अध्यक्ष कामराज के बेहद करीबी भी माने जाते थे.


कुलदीप नैयर अपनी किताब 'बियॉन्ड द लाइन्स' में लिखते हैं कि लाल बहादुर शास्त्री अपने अलावा जयप्रकाश नारायण और इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को देश के प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहते थे. लेकिन तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के. कामराज के मन में कुछ और चल रहा था. दरअसल जवाहरलाल नेहरू ने हमेशा इंदिरा गांधी को अपना उत्तराधिकारी माना था. यह बात लाल बहादुर शास्त्री भी जानते थे. के. कामराज को पता था कि अगर नेहरू के बाद सीधे इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बना दिया गया तो मोरारजी देसाई सरीखे कई ऐसे नेता खड़े हो जाएंगे जो इस रास्ते को मुश्किल कर देंगे. इसलिए सबसे पहले नेहरू के करीबी लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया और उनके कैबिनेट में इंदिरा गांधी को जगह दी गई. इंदिरा गांधी को लाल बहादुर शास्त्री की कैबिनेट में सूचना और विकास मंत्री बनाया गया. के. कामराज का लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाने की एक वजह यह भी थी क्योंकि उन्हें पता था कि अगर मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो इंदिरा गांधी कभी भी देश की प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगी.

कुलदीप नैय्यर के एक लेख ने मोरारजी देसाई का रास्ता रोक दिया
लेकिन इन सबके बीच भी लाल बहादुर शास्त्री का प्रधानमंत्री बनना इतना आसान नहीं था, क्योंकि मोरारजी देसाई के साथ बहुत से कांग्रेसी नेता खड़े थे. इन्हीं किरदारों के बीच एक किरदार थे कुलदीप नैयर , जिनके एक लेख ने मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री बनने का सपना तोड़ दिया और लाल बहादुर शास्त्री के लिए प्रधानमंत्री आवास के रास्ते खोल दिए.

27 मई 1964 की रात जब भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का निधन हुआ तो उसके चंद घंटों बाद ही सियासी गलियारों में यह बात उठने लगी कि अब नेहरू के बाद देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा? कुलदीप नैयर उन दिनों एक नामी पत्रकार हो चुके थे और ज्यादातर राजनेताओं से उनके करीबी रिश्ते थे. कुलदीप नैयर अपनी आत्मकथा 'बियॉन्ड द लाइन्स' में लिखते हैं कि नेहरू की मौत के बाद वह मोरारजी देसाई के घर यह जानने पहुंचे कि प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी दावेदारी को लेकर मोरारजी देसाई क्या कहना चाहते हैं? हालांकि उस दिन वह मोरारजी देसाई से तो नहीं मिल पाए लेकिन उनके बेटे कांति देसाई उनसे जरूर मिले और उन्होंने कुलदीप नैयर से तीखे लफ्जों में कहा कि 'अपने शास्त्री से कह दो मुकाबला ना करें, मोरारजी देसाई मुकाबले में उतरेंगे और आसानी से जीतेंगे.'

हालांकि इसके बाद भी नैयर एक बार फिर मोरारजी देसाई के घर गए और उन्होंने मोरारजी देसाई से बात की और उन्हें बताया कि कांग्रेस में जयप्रकाश नारायण और इंदिरा गांधी को लेकर भी बातचीत चल रही है, मोरारजी देसाई ने जयप्रकाश नारायण को एक 'कंफ्यूज आदमी' और इंदिरा गांधी को 'छोटी सी लड़की' बता दिया. उन्होंने कहा कि मुकाबले को रोकने का एक ही तरीका है कि कांग्रेस उन्हें अपने नेता के रूप में स्वीकार कर ले. यह बातें मोरारजी देसाई के सीधे-सीधे उस दावे को सत्यापित कर रही थीं जो उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए एकलौता उम्मीदवार बता रही थीं.

पूरे कांग्रेस में उस वक्त असमंजस की स्थिति थी, लाल बहादुर शास्त्री और मोरारजी देसाई को लेकर बहस तेज होने लगी थी. लेकिन इसी बीच कुलदीप नैयर जो न्यूज़ एजेंसी 'यू एन आई' के लिए काम करते थे उन्होंने एक खबर छाप दी, जिसमें उन्होंने लिखा कि 'प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे पहले पूर्व वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने अपनी दावेदारी का ऐलान कर दिया है. माना जाता है कि उन्होंने अपने सहयोगियों से कहा है कि वह इस पद के उम्मीदवार हैं.' कुलदीप नैयर की यह खबर आग की तरह पूरे देश में फैल गई. जिससे तमाम कांग्रेसी नेताओं और जनता के बीच यह संदेश गया कि मोरारजी देसाई एक महत्वाकांक्षी नेता है और नेहरू की मौत के बाद खुद को प्रधानमंत्री बनता हुआ देखना चाहते हैं. मोरारजी देसाई की छवि के लिए यह एक नेगेटिव खबर थी. इस खबर की वजह से उनकी खूब किरकिरी हुई और जब लाल बहादुर शास्त्री और मोरारजी देसाई के बीच प्रधानमंत्री पद को लेकर वोटिंग हुई तो मोरारजी देसाई को सिर्फ इस खबर की वजह से तकरीबन 100 वोटों का नुकसान हुआ.

हालांकि कुलदीप नैयर अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि इस खबर को छापने से उनकी मंशा किसी को फायदा या नुकसान पहुंचाने की नहीं थी. लेकिन उन्हें इसका असर तब समझ आया जब 9 जून 1964 को लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री बनने के बाद संसद भवन की सीढ़ियों से उतरते हुए कामराज ने उन्हें गले लगा लिया और थैंक्यू कहा. कुलदीप नैयर ने यह सारी बातें अपनी आत्मकथा 'बियॉन्ड द लाइन्स' में लिखी हैं.

कामराज ने इंदिरा को पीएम बनवाया फिर किनारे भी लगा दिये गए
लाल बहादुर शास्त्री की 1966 में असामयिक मौत हो गई. मोरारजी देसाई इस बार कोई मौका चूकना नहीं चाहते थे पर कामराज ने उन्हें एक बार फिर प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया. कांग्रेस में सबसे ताकतवर लॉबी जिसे सिंडिकेट बोलते थे ने कामराज को प्रधानमंत्री बनने के लिए प्रस्ताव रखा. पर कामराज ने खुद पीएम की कुर्सी स्वीकार नहीं की और पश्चिम बंगाल के नेता अतुल्य घोष से कहा कि जिस नेता को अंग्रेजी और हिंदी ठीक से नहीं आती हो उसे देश का पीएम नहीं बनना चाहिए. कामराज ने इंदिरा गांधी को अपना समर्थन देकर पीएम बनवाया. 1967 के लोकसभा चुनाव हुए और कांग्रेस की कई राज्यों में बड़ी पराजय हुई. खुद कामराज अपना चुनाव हार गए थे. इंदिरा गांधी ने मौका देख खेला कर दिया. इंदिरा गांधी ने कहा कि हारे हुए नेताओं को पद छोड़ना चाहिए.

कामराज को भी कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ा. बाद में पार्टी और सरकार में बडे पैमाने पर मतभेद बढ़ता गया. जाकिर हुसैन के बाद होने वाले राष्ट्रपित चुनावों में यह मतभेद खुलकर सामने आ गए. पार्टी ने नीलम संजीव रेड्डा को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया जबकि इंदिरा गांधी ने अंदरखाने से बीबी गिरी को सपोर्ट कर दिया. पार्टी को अंतरआत्मा के नाम से वोट करने की अपील कर दी. पार्टी प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी की बुरी तरह हार हुई. कांग्रेस पार्टी 2 भागों में बंट गई. एक का नाम कांग्रेस ओ (ऑर्गेनाइजेशन) और कांग्रेस (रुलिंग) हो गया.


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