सम्पादकीय

युद्ध खतरनाक मोड़ पर

Subhi
23 Sep 2022 3:43 AM GMT
युद्ध खतरनाक मोड़ पर
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रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने एक बार फिर परमाणु बम का इस्तेमाल करने की धमकी दे दी है और साथ ही यूक्रेन को पूरी तरह से तहस-नहस करने के लिए तीन लाख सैनिक तैनात करने का ऐलान कर दिया है।

आदित्य नारायण चोपड़ा: रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने एक बार फिर परमाणु बम का इस्तेमाल करने की धमकी दे दी है और साथ ही यूक्रेन को पूरी तरह से तहस-नहस करने के लिए तीन लाख सैनिक तैनात करने का ऐलान कर दिया है। उनकी इस खौफनाक घोषणा के बाद पूरी दुनिया में खलबली मच गई है। यद्यपि रूस में ही पुतिन के रिजर्व सैनिकों को युद्ध में तैनात किए जाने की घोषणा के बाद विरोध प्रदर्शन होने शुरू हो गए हैं। रूसी सुरक्षा बल प्रदर्शनकारियों की धरपकड़ कर रहे हैं, लेकिन राष्ट्रपति पुतिन अपनी घोषणा पर अड़े हैं। उनका मकसद यूक्रेन के वजूद को ही खत्म करना है। उधर संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें सत्र को सम्बोधित करते हुए अमरीकी राष्ट्रपति जो. बाइडेन ने यूक्रेन पर रूस के हमले को बेशर्मी करार देते हुए इसे एक शख्स की करतूत बताया। बाइडेन ने कहा कि हमारी हमेशा यही कोशिश रही है कि परमाणु हथियारों का इस्तेमाल न हो। यूक्रेन पर हमले के खिलाफ हम रूस के खिलाफ एकजुट हैं। ​ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों ने भी बाइडेन के सुर में सुर मिलाया है। इस सबसे बाइडेन और पुुतिन में टकराव काफी बढ़ गया है। जिस प्रकार की स्थितियां पैदा हो रही हैं उससे तीसरे विश्व युद्ध की आशंकाएं बढ़ गई हैं। पुतिन ने जिस तरह से नाटो देशों को चेतावनी दी है कि रूस के पास नाटो देशों से भी ज्यादा खतरनाक हथियार हैं, उससे नाटो देश काफी सकते में हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले ही पूरी दुनिया में खाद्य पदार्थों और ऊर्जा की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। गेहूं और ऊर्जा की सप्लाई अवरुद्ध हुई है। इससे अनेक देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है और उथल-पुथल मची हुई है। अब सर्दियां आनी शुरू हो गई हैं और शीत ऋतु में चीजों की सप्लाई बाधित होगी तो हालात और खराब हो जाएंगे। एक तरफ अमेरिका और उसके मित्र देश हिन्द महासागर को लेकर चीन से टक्कर ले रहे हैं तो दूसरी तरफ वह ईरान की भी जमकर आलोचना कर रहे हैं। बाइडेन फिलहाल भारत विरोधी रुख नहीं अपना रहे क्योंकि हाल ही में समरकंद में हुए एससीओ शिखर सम्मेलन में अमेरिका विरोधी मंच सामने आया तथा रूस, चीन और भारत एक साथ नजर आए। यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका और यूरोपीय यू​ नियन ने रूस से तेल और गैस की खरीदारी पर प्रतिबंध लगाया था। भारत ने इस पाबंदी को मानने से न सिर्फ इंकार किया बल्कि रूस से तेल और गैस का सौदा भी किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने भारतीय हितों की सुरक्षा करने का मुद्दा सबसे अहम है। जिस तरह अमेरिकी अपने हितों को सर्वोपरि रखते हैं, उस तरह भारत को भी सबसे पहले अपने हितों को देखना है। रूस हमारा अभिन्न मित्र रहा है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तत्कालीन सोवियत संघ ने संकट में भारत का हमेशा साथ दिया। संपादकीय :गरीबी हो आरक्षण का आधार?कांग्रेसः बदलते वक्त की दस्तकवादी में सिनेमा हुए गुलजारअसली श्राद्ध...हिजाब के खिलाफ क्रांतिराजनाथः मृदुता से भी मजबूतीपाकिस्तान से युद्ध के समय जब अमेरिका पाकिस्तान का साथ दे रहा था तो भारत और सोवियत संघ ने मैत्री संधि की थी। कौन नहीं जानता कि 1971 के युद्ध में अमेरिकी बेड़े को रोकने के लिए सोवियत संघ ने अपना समुद्री युद्ध पोत भेज दिया था। भारत में इस्पात मिलें स्थापित करने में और अंतरिक्ष विज्ञान में भी उसने हमारा साथ दिया। सोवियत संघ के विखंडन के बाद भारत और रूस के रिश्ते ठंडे बस्ते में भी रहे, लेकिन अब भारत और रूस मैत्री पूरी तरह से परवान चढ़ चुकी है। यह सही है कि समय-समय पर दुनिया में बदलती परि​िस्थतियों में नए समीकरण बनते हैं और बिगड़ते भी हैं। अमेरिका आज भारत को अपना मित्र मानता है, लेकिन वह भारत को रूस से दूरी बनाने के लिए दबाव भी डालता रहता है। संयुक्त राष्ट्र की बैठक का एजैंडा रूस पर आर्थिक पाबंदियों को सख्त करना है। ऐसे संकेत अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने दे दिए हैं। उनका कहना है कि एक देश पर हमला कर रूस ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर को तोड़ा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नहीं जा रहे। विदेश मंत्री एस. जयशंकर महासभा में भाग लेंगे। महासभा में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति पुतिन भी नहीं जाएंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महासभा की बैठक से दूर रहकर एक बार फिर यह संकेत दिया है कि भारत रूस पर अमेरिका और पश्चिम के दबाव में नहीं आने वाला।भारत का स्टैंड यह रहा है कि आज के दौर में युद्ध तो होने ही नहीं चाहिए थे। रूस और यूक्रेन को बातचीत की मेज पर बैठकर मसला सुलझाना चाहिए और युद्ध को तुरन्त खत्म करना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन को यह बात कह भी दी थी। दरअसल इस युद्ध में महाशक्तियां अपनी-अपनी रोटियां सेक रही हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन देश के भीतर एक कमजोर राष्ट्रपति माने जा रहे हैं, इसलिए वह कुछ ऐसा करना चाहते हैं जिससे उनकी छवि 'शक्तिमान' जैसी बन सके। पुतिन भी अपना अहम छोड़ने को तैयार नहीं हैं। यह बात साफ है कि आज के दौर में युद्ध में किसी की जीत और किसी की हार नहीं होती, हारती है तो केवल मानवता। हजारों सैनिक और निर्दोष लोग मारे जाते हैं, बच्चे अनाथ हो जाते हैं। लाखों लोग दूसरे देशों में जाकर शरणार्थी बन जाते हैं। युद्ध के नतीजे बहुत भयानक होते हैं।महाशक्तियों ने ही बनाई सारी बंदूकेंइन्होंने ही बनाए मौत के सारे लड़ाकू विमानइन्होंने ही बनाए परमाणु बमइन्होंने ही किए लोगों की मौत के सारे इंतजामतो अब शोर क्यों मचाते होलोग तुम्हारे सारे मुखौटे पहचानते हैं।जिस तरह से युद्ध को लेकर रूस पर आर्थिक पाबंदियां लगाई जा रही हैं उससे आने वाले दिनों में टकराव और संकट बढ़ जाएगा। अगर एटमी हथियार चले तो उससे केवल एक देश तबाह नहीं होगा, बल्कि मानवता तहस-नहस हो जाएगी। ​विध्वंस के बाद सृजन के लिए बहुत लम्बा समय लगेगा। बेहतर यही होगा कि मसले का हल बातचीत से निकाला जाए।

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