सम्पादकीय

युद्ध और उम्मीद

Rani Sahu
28 Feb 2022 4:20 PM GMT
युद्ध और उम्मीद
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पांच दिन के जंगी पागलपन के बाद समझदारी ने अपने लिए थोड़ी-सी गुंजाइश खोजी है

पांच दिन के जंगी पागलपन के बाद समझदारी ने अपने लिए थोड़ी-सी गुंजाइश खोजी है। जिस समय ये पंक्तियां लिखी जा रही हैं, बेलारूस की सीमा पर यूक्रेन और रूस के बीच बातचीत शुरू हो गई है। पिछले एक पखवाड़े के दौरान दोनों देशों के बीच जिस तरह से तनाव बना और लगातार बढ़ता हुआ युद्ध की विभीषिका में बदल गया, उसे देखते हुए ऐसी वार्ता में बहुत सारे किंतु-परंतु लगे हुए थे। लेकिन जब युद्धरत देशों के प्रतिनिधि बातचीत की मेज पर आमने-सामने बैठते हैं, तब इसका एक अपना महत्व होता है। एक उम्मीद बंधती है, भले ही नतीजा कुछ भी हो। पिछले एक सप्ताह से भारत समेत दुनिया के कई देश लगातार कह रहे हैं कि रूस और यूक्रेन को आपस में बैठकर बात करनी चाहिए। बात तो उन्हें युद्ध में हार-जीत के बाद भी करनी ही पड़ेगी, तो फिर पहले बात ही क्यों न हो जाए? इसलिए जो बातचीत शुरू हुई है, वह स्वागतयोग्य है। स्वागतयोग्य यह भी है कि लड़ाई में रूस ने अपनी आक्रामकता को थोड़ा कम किया है, इसी के बाद बातचीत की संभावना भी बनी है।

ठीक एक दिन पहले इतवार को रूस की तरफ से परमाणु युद्ध की जो धमकी आई थी, उसकी सिहरन से दुनिया अभी तक मुक्त नहीं हुई है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी फौज को परमाणु हथियार के इस्तेमाल के लिए तैयार रहने को कहा था, तो एकबारगी लगा था कि यह संकट बहुत खतरनाक मोड़ पर पहुंच गया है। हालांकि, सामरिक विशेषज्ञ हैरत में थे कि लड़ाई जिस मोड़ पर है, वहां परमाणु हथियार का इस्तेमाल करने या उसके इस्तेमाल की बात करने की कोई जरूरत ही नहीं थी। यह ठीक है कि रूस ने इस लड़ाई को जितना आसान माना था, उतनी आसान यह नहीं साबित हुई, लेकिन पिछले पांच दिनों में जो हुआ, उसमें रूस का हाथ ही ऊपर रहा है। ऐसे में, परमाणु हथियार की धमकी क्यों दी गई है, यह एक पहेली है। कुछ विशेषज्ञों की राय है कि यह धमकी दरअसल यूक्रेन के लिए नहीं थी, यह उन पश्चिमी देशों के लिए थी, जो यूक्रेन के समर्थन में खड़े हैं। इसके अनुसार, रूसी राष्ट्रपति संभवत: पश्चिमी देशों को यह चेतावनी देना चाहते हैं कि अगर वे इस युद्ध में शामिल हुए, तो लड़ाई के खतरे बहुत बढ़ सकते हैं।
यह सच है कि पश्चिमी देश खासकर नाटो और यूरोपीय संघ इस लड़ाई का एक ऐसा पक्ष हैं, जो भले ही इस जंग का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन उसका कारण तो हैं ही। यह भी माना जाता है कि यह रूस और नाटो के आधिपत्य की लड़ाई है, जो यूक्रेन के मैदान पर लड़ी जा रही है। इस पूरे मसले पर भारत का स्टैंड भी यही है कि समस्या को खत्म करना है, तो नाटो और रूस को पूरी ईमानदारी और गंभीरता से बात करनी होगी। इस मसले के अंतिम हल का तरीका इसी से निकलेगा, लेकिन फिलहाल सबसे बड़ी जरूरत यह है कि रूस और यूक्रेन में चल रही लड़ाई तत्काल खत्म हो। बेलारूस की सीमा पर जो बातचीत शुरू हुई है, वह इसी की उम्मीद जगाती है। युद्ध जिद का नतीजा होते हैं और दो युद्धरत देश जब बातचीत की मेज पर बैठते हैं, तो जिद से मुक्त होकर बात करना उनके लिए बहुत आसान नहीं होता। यह दोनों देशों के धैर्य की परीक्षा का समय है। दोनों देशों के बीच सैन्य रूप में हस्तक्षेप के लिए तैयार होते देशों को थोड़ा इंतजार करना चाहिए।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान

Rani Sahu

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