- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- युद्ध और उम्मीद
पांच दिन के जंगी पागलपन के बाद समझदारी ने अपने लिए थोड़ी-सी गुंजाइश खोजी है। जिस समय ये पंक्तियां लिखी जा रही हैं, बेलारूस की सीमा पर यूक्रेन और रूस के बीच बातचीत शुरू हो गई है। पिछले एक पखवाड़े के दौरान दोनों देशों के बीच जिस तरह से तनाव बना और लगातार बढ़ता हुआ युद्ध की विभीषिका में बदल गया, उसे देखते हुए ऐसी वार्ता में बहुत सारे किंतु-परंतु लगे हुए थे। लेकिन जब युद्धरत देशों के प्रतिनिधि बातचीत की मेज पर आमने-सामने बैठते हैं, तब इसका एक अपना महत्व होता है। एक उम्मीद बंधती है, भले ही नतीजा कुछ भी हो। पिछले एक सप्ताह से भारत समेत दुनिया के कई देश लगातार कह रहे हैं कि रूस और यूक्रेन को आपस में बैठकर बात करनी चाहिए। बात तो उन्हें युद्ध में हार-जीत के बाद भी करनी ही पड़ेगी, तो फिर पहले बात ही क्यों न हो जाए? इसलिए जो बातचीत शुरू हुई है, वह स्वागतयोग्य है। स्वागतयोग्य यह भी है कि लड़ाई में रूस ने अपनी आक्रामकता को थोड़ा कम किया है, इसी के बाद बातचीत की संभावना भी बनी है।
क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान