- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- युद्ध और अपराध
Written by जनसत्ता: यूक्रेन के बुचा शहर में कत्लेआम की घटना की स्वतंत्र जांच की मांग का समर्थन कर भारत ने उचित कदम उठाया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि ने इन सामूहिक हत्याओं की निंदा की। यों पिछले कई दिनों से अमेरिका और यूरोपीय संघ रूस पर युद्ध अपराध का आरोप लगा रहे हैं। इनका कहना है कि रूसी सेना यूक्रेन के शहरों में जिस तरह से निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतार रही है, वह युद्ध के अंतरराष्ट्रीय नियमों और संधियों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है। इसके लिए कई देशों ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया।
लेकिन भारत ने अभी तक खुल कर रूस के खिलाफ ऐसा कोई बयान नहीं दिया था। यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर सुरक्षा परिषद में जो प्रस्ताव आए, उन पर मतदान से भी भारत बचता रहा। इससे यह संदेश जाता रहा कि वह रूसी कदमों के खिलाफ नहीं है। दरअसल, इस मुद्दे पर भारत शुरू से ही तटस्थता की नीति पर चल रहा है। पर अब पहली बार ऐसा हुआ जब बुचा में सैकड़ों लोगों को मार डालने की घटना सामने आने के बाद भारत ने चुप्पी तोड़ी और संयुक्त राष्ट्र के मंच से इसकी स्वतंत्र जांच करवाने का भी समर्थन किया।
गौरतलब है कि यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध शुरू हुए डेढ़ महीना हो चुका है। इस दौरान रूस ने जिस बेरहमी से यूक्रेन को तबाह किया है, वह बेहद खौफनाक है। उससे भी ज्यादा अमानवीय यह कि रूसी सेना ने अस्पतालों, पनाहगाहों और स्कूलों तक पर मिसाइलें गिराने से परहेज नहीं किया। नागरिकों को गोलियों से उड़ा दिया जा रहा है। युद्धोन्माद में रूस यह भूल बैठा है कि युद्ध के भी नियम होते हैं। अंतरराष्ट्रीय संधियां हैं। बच्चों, महिलाओं और वृद्धों को निशाना बनाया जाना अपराध है।
बुचा में जो कुछ हुआ, उसे देख कर किसका दिल नहीं दहल उठा होगा! जो तस्वीरें सामने आई हैं, उनसे साफ पता चल रहा है कि रूसी सैनिकों ने लोगों को पकड़ कर उनके हाथ बांधे और गोली मार दी। बुचा की सड़कों और गलियों में सैकड़ों ऐसे शवों का मिलना बताता है कि रूसी सैनिक पहले से ही कत्लेआम की योजना बना कर यहां आए होंगे। हालांकि रूस इसका खंडन कर रहा है। पर सवाल यह है कि अगर रूसी सैनिकों ने यह नहीं किया तो और किसने किया होगा? यूक्रेन तो अपने लोगों को इस तरह मार नहीं सकता!
बुचा में जो कुछ हुआ, उसकी स्वतंत्र जांच होनी चाहिए। तभी सच सामने आ पाएगा और दोषियों को न्याय के कठघरे में लाया जा सकेगा। यों युद्ध अपराधों को लेकर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के कदमों की जांच पहले ही शुरू हो चुकी है। जांच आयोग बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने प्रस्ताव पास किया था। इसके बाद अमेरिका और दूसरे चौवालीस देशों ने युद्ध के नियमों के उल्लंघनों की जांच शुरू कर दी। जर्मनी पहले ही अपने स्तर पर पुतिन के खिलाफ जांच कर रहा है।
पर इस वास्तविकता से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि रूस के खिलाफ सबूत जुटाना और मामले को आगे बढ़ाना आसान नहीं है। मानवीय नजरिए से देखा जाए तो युद्ध से बड़ा अपराध कोई नहीं है। लेकिन जब सिर पर युद्ध का भूत सवार होता है तो दुश्मन के खात्मे से बड़ा लक्ष्य कोई नहीं दिखता। रूस इसी रास्ते पर है। उसके लिए संघर्षविराम या शांतिवार्ता का कोई मतलब नहीं रह गया है। यूक्रेन की आड़ में वह अमेरिका और यूरोपीय देशों को संदेश दे रहा है कि उससे उलझना कितना महंगा पड़ सकता है। क्या यह कम बड़ा युद्ध अपराध है?