सम्पादकीय

वांग यी नई दिल्ली में, चीन को भारत से संबंध सुधारने की ज़रूरत क्यों महसूस हो रही है?

Rani Sahu
23 March 2022 12:02 PM GMT
वांग यी नई दिल्ली में, चीन को भारत से संबंध सुधारने की ज़रूरत क्यों महसूस हो रही है?
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आज बात चीन (China) के विदेश मंत्री वांग यी (Wang Yi) की बृहस्पतिवार को शुरू हो रही भारत यात्रा की

विष्णु शंकर

आज बात चीन (China) के विदेश मंत्री वांग यी (Wang Yi) की बृहस्पतिवार को शुरू हो रही भारत यात्रा की. आखिरकार लगभग ढाई साल बाद चीन को यह समझ आ गया है कि भारत के साथ अभी चल रहे तनावपूर्ण रिश्तों में मौजूद तल्खी को हटाने की आवश्यकता है. साल 2020 के मई-जून में पूर्वी लद्दाख में चीन ने LAC पर भारत के साथ जो विश्वासघात किया, भारत उसे भूला नहीं है. भारत यह भी समझ गया है कि चीन भले ही आकार और सैन्य बल में भारत से बड़ा हो लेकिन चीन से डरने या दबाव में आने की कोई ज़रूरत नहीं है.
हालांकि चीन पिछले दो हफ़्तों से इस बात का प्रयास कर रहा था कि भारत और उसके बीच खड़ी शक की दीवार को गिराया जाए, लेकिन भारत ने इस सम्बन्ध में उसके संकेतों को समझा ज़रूर लेकिन साफ़ कहा कि आपसी रिश्तों को सुधारने की प्रक्रिया तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर निर्भर करेगी. ये हैं – आपसी सद्भाव, एक दूसरे के लिए संवेदनशील विषयों की समझ और आपसी हितों पर साथ काम करने की रज़ामंदी.
संभव है वांग यी की मुलाक़ात पीएम मोदी से भी हो
वांग यी को भारत आने का मौका एकाएक तब मिला जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 मार्च को दक्षिणी चीन में हुए विमान दुर्घटना पर भारत की ओर से संवेदनाएं व्यक्त कीं. वांग यी उस समय पाकिस्तान की यात्रा पर थे, जहां OIC देशों के विदेश मंत्रियों के सम्मलेन में वे विशेष आमंत्रित थे. उसी समय वांग यी का भारत आना तय हो गया. चीनी विदेशमंत्री 24 और 25 मार्च को नई दिल्ली में होंगे और अपने समकक्ष एस जयशंकर से विचार विमर्श करेंगे. संभव है वांग यी की मुलाक़ात भारतीय प्रधानमंत्री से भी हो.
भारत यह साफ़ कर चुका है कि चीन के साथ संबंध सुधारने में सबसे बड़ी भूमिका पूर्व से लेकर उत्तर-पश्चिम में पूरे LAC पर अप्रैल 2020 वाली यथास्थिति बहाल करने की होगी. इस बात की संभावना है कि गोगरा-हॉट स्प्रिंग एरिया में स्थित PP 15 से दोनों फौजें पीछे हट जाएं, लेकिन डेमचोक और देपसांग क्षेत्र से भारतीय और चीनी सैनिकों की वापसी के विषय में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. यह संभव भी हो पाएगा यह कहना अभी मुश्किल है.
इसके साथ साथ चीन ने सीमान्त क्षेत्र प्रतिरक्षा क़ानून बना कर पिछले पौने दो साल में अरुणाचल प्रदेश में LAC के बहुत क़रीब बस्तियां बना ली हैं, सैनिक साज़ोसामान इकठ्ठा कर लिया है और सैनिक तैनात कर दिए हैं. भारत के लिए चीन पर अब भरोसा करना इस लिए भी मुश्किल है क्योंकि उसने लगातार भारत के साथ सीमा विवाद में जो कहा उससे पलट गया है और स्थापित परम्पराओं, नियमों और प्रावधानों का सम्मान नहीं किया है.
चीन अभी भी अपनी पुरानी नीति पर क़ायम है
ऐसा लगता है कि सीमा विवाद पर चीन अभी भी अपनी पुरानी नीति पर क़ायम है – कि इन विवादों को एक तरफ रख कर भारत परस्पर सहयोग के अन्य क्षेत्रों में, मसलन नागरिकों की आवाजाही, व्यापार और निवेश और क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के सवालों पर चीन के साथ सहयोग करना फिर शुरू कर दे. दूसरा बड़ा प्रश्न भारत-चीन व्यापार में भारत के विरुद्ध बना हुआ व्यापारिक घाटा है जो जल्दी ही 80 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर हो जाएगा. यूरोप में रूस द्वारा यूक्रेन पर किए गए आक्रमण के बाद अंतरराष्ट्रीय मंच पर देशों के बीच संबंध बड़ी तेज़ी से बदल रहे हैं. चीन इस बात से चिंतित है कि अमेरिका के नेतृत्व में उसके मित्र देशों और NATO संगठन के सदस्य देशों द्वारा रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों का कितना व्यापक असर हुआ है.
हालांकि फरवरी 2022 में चीन में आयोजित शरद ओलिंपिक के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग और रूस के राष्ट्राध्यक्ष व्लादिमीर पुतिन ने कहा था की चीन और रूस की मित्रता असीमित है. लेकिन रूस यूक्रेन युद्ध के शुरू होने बाद तुरन्त ही चीन ने रूस के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार किया और कहा है कि यूक्रेन में चल रहे युद्ध को तुरन्त विराम दिया जाए. चीन अमेरिका के साथ व्यापार के क्षेत्र में अभी चल रही उठा पटक से भी परेशान है. उसे इसके चलते काफी नुकसान हो रहा है. State Of The Art अमेरिकी टेक्नोलॉजी अभी उसके गिरफ्त से बाहर है. नैनो टेक्नोलॉजी पर आधारित नैनो चिप्स और सैनिक साज़ोसामान के लिए ज़रूरी टेक्नोलॉजी जिन पर चीन की अगली पीढ़ी के हथियार, मिलिट्री ड्रोन, युद्धक विमानों के लिए स्टेल्थ टेक्नोलॉजी और अंतरिक्ष मिशन आधारित होंगे, अभी उसे नहीं मिल पा रहा है.
चीन रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत की विदेश नीति और दृढ़ रवैये से भी प्रभावित हुआ है. उसे लग रह है कि तेज़ी से बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भारत एक उपयोगी और मज़बूत सहयोगी साबित हो सकता है. इसलिए चीन की कोशिश है कि इस वर्ष होने वाली BRICS, RIC सम्मेलनों में भारतीय प्रधानमंत्री स्वयं शामिल हों जिनकी मेज़बानी चीन कर रह है. लेकिन नरेंद्र मोदी के लिए तब तक ऐसे किसी भी सम्मेलन में शिरकत करना संभव नहीं होगा जब तक चीन के साथ भारत के रिश्तों में वास्तव में महत्वपूर्ण प्रगति न दिखे. इसलिए वांग यी की यह भारत यात्रा संभावनाओं से भरी है. चीन के विदेशमंत्री नई दिल्ली में क्या और कितना हासिल कर पाएंगे यह स्वयं उनके लचीले या अड़ियल रुख से साफ़ हो जाएगा.
Rani Sahu

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