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सम्पादकीय
शांति से की गई प्रतीक्षा विरह की पीड़ा को आनंद में बदल देती है
Gulabi Jagat
26 April 2022 11:17 AM GMT

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दिल पसंद पनाह सबको नसीब नहीं होती। जिनकी पनाह में हम रहते हैं, यदि उन्हीं का विरह हो जाए तो पीड़ा और बढ़ जाती है
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
दिल पसंद पनाह सबको नसीब नहीं होती। जिनकी पनाह में हम रहते हैं, यदि उन्हीं का विरह हो जाए तो पीड़ा और बढ़ जाती है। श्रीराम के आने की सूचना मिल चुकी थी और भरतजी बेसब्री से उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। यहां तुलसीदासजी ने लिखा- 'रहेउ एक दिन अवधि अधारा। समुझत मन दुख भयउ अपारा।। कारन कवन नाथ नहिं आवउ। जानि कुटिल किधौं मोहि बिसरायउ।'
एक ही दिन शेष है, यह सोचकर भरत के मन में अपार दुख हुआ कि राम क्यों नहीं आए। कहीं कुटिल समझकर मुझे भुला तो नहीं दिया। विरह में पीड़ा और भय दोनों उतर आते हैं। जब हम किसी से दूर हो जाते हैं, किसी की राह देख रहे होते हैं तब पीड़ा तो होती ही है, कई तरह के भय और नकारात्मकता भी आ जाती है। फिर, कुछ देर बाद भरतजी ने सकारात्मक सोचा- 'मोरे जियं भरोस दृढ़ सोई। मिलिहहिं राम सगुन सुभ होई।।'
मेरे हृदय में पक्का भरोसा है कि राम अवश्य आने ही वाले हैं। मन बाहर की ओर देखे तो निगेटिविटी पैदा करता है और भीतर देखे तो पॉजिटिविटी पैदा होती है। जब किसी के विरह में हों, इंतजार कर रहे हों और बेचैनी बढ़ जाए तो विचारों को खो देना चाहिए। तब हम नि:शब्द हो जाते हैं और यहीं से शांति शुरू होती है। जीवन में स्थितियों की, व्यक्तियों की प्रतीक्षा सबको करना पड़ती है, लेकिन शांति से की गई प्रतीक्षा विरह की पीड़ा को आनंद में बदल देती है।

Gulabi Jagat
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