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- रोजगार का इंतजार

Written by जनसत्ता: हम जानते हैं कि भारत के पास दुनिया की सबसे अधिक युवा आबादी है और अगर हमने इस युवा आबादी का बेहतर मानव संसाधन के रूप में प्रयोग नहीं किया तो निश्चित तौर पर यह हमारे लिए भविष्य में एक चिंता का विषय होगा। इसलिए सरकारों को इनके लिए अवसर के पर्याप्त मौके उपलब्ध कराने चाहिए। हमने पिछले कुछ वर्षों में देखा है कि सरकारी पदों पर भर्तियां न के बराबर हुर्इं, चाहे बात केंद्र स्तर की हो या राज्य स्तर की।
इसके चलते न जाने कितने प्रतिभाशाली युवा उम्रदराज हो चुके, लेकिन उन्हें रोजगार का अवसर नहीं मिला। केंद्रीय स्तर पर एसएससी, रेलवे की भर्तियां सालों से अटकी हुई हैं। हाल यह है कि परीक्षाएं समय पर नहीं कराई जाती है और अगर परीक्षाएं समय पर हो भी जाती हैं तो परिणाम समय से नहीं आते हैं, जिसके चलते परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं पर भयंकर मानसिक दबाव और तनाव बढ़ता है। इसके अलावा, राज्यों की हालत भी कोई बेहतर नहीं है। उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में शिक्षकों की भर्ती को लेकर आज भी असमंजस बना हुआ है। चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरियों के विज्ञापन तो बड़े पैमाने पर जारी हुए, लेकिन इनमें अंतिम चयन कब होगा, यह कोई नहीं जानता।
सरकारी भर्तियों को लेकर सभी राज्यों का हाल एक-सा है, क्योंकि हर राज्य में हजारों सरकारी पद खाली पड़े हैं, जिसमें पुलिस विभाग, शिक्षा विभाग, स्वास्थ्य विभाग प्रमुख हैं। मसलन, राजस्थान में पिछले कुछ वर्षों से अलग-अलग विभागों में कोई बड़ी भर्ती नहीं हुई है। मध्यप्रदेश में पिछले तीन से चार सालों में कोई बड़ी और महत्त्व की भर्ती नहीं आई है। मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग 2019 की परीक्षा अभी तक पूरी नहीं करा पाया है।
ऐसा नहीं है कि इन भर्तियों को पूरा कराने के लिए इनकी तैयारी कर रहे युवाओं ने कोई प्रयास नहीं किया है। एसएससी और रेलवे की भर्ती पूरी कराने के लिए तो युवाओं ने ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर प्रधानमंत्री से लेकर हर मंत्री से गुहार लगाई, लेकिन किसी के कान पर जूं नहीं रेंगी। खानापूर्ति के नाम पर हर बार कोई नई विज्ञप्ति जारी कर दी जाती है। युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
यह बात कई बार सोचने पर विवश करती है कि ऐसी क्या मजबूरी है कि सरकारें सरकारी भर्तियों को लेकर इतनी निष्क्रिय रहती हैं, जबकि इन बेरोजगारों से आवेदन पत्र भरवा कर अच्छी-खासी रकम सरकार द्वारा वसूल ली जाती है। क्या अब सरकारी भर्तियां या इनका विज्ञापन केवल चुनावी काल में ही देखने को मिलेंगे? जैसे ही चुनाव खत्म, तो भर्तियों पर रोक लगना शुरू। फिर अगले चुनाव तक भूल जाइए कि कोई सरकारी भर्ती होगी भी या नहीं! इसलिए हम सरकारों से उम्मीद करते हैं कि यदि वाकई वह है, तो देश में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक विकास, कल्याणकारी राज्य, आत्मनिर्भर भारत जैसे महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को पाना चाहती है तो उसे युवाओं के साथ हो रहे अन्याय को रोकना चाहिए और इनके भविष्य को सुरक्षित करना चाहिए।
भ्रामक विज्ञापन देकर कोई व्यक्ति झांसे में रखकर अपने उत्पाद को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की होड़ लगे रहते हैं और अवैध धन कमाना उनका पेशा बन जाता है जो लोगों की वास्तविकता को दूर करती है और काल्पनिक चीजों में विश्वास उत्पन्न कर देती है। मसलन, सूरत संवारने, दांत चमकाने, काला-गोरा बनाने और आंख की रोशनी बढ़ाने जैसे विज्ञापन। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि ऐसे भ्रामक विज्ञापन और प्रचार पर बड़े-बड़े सेलिब्रिटी, प्रतिष्ठित पदों पर रहने वाले लोग करते हैं और ऐसी कंपनियों के उद्घाटन में जाते हैं।
ऐसी कंपनी किसी राजनीतिक संरक्षण के बलबूते चलना बेहतर समझती है, जिसका जन सरोकार पर बेहद असर पड़ता है। लोग इसके पीछे आदी हो जाते हैं। उपभोक्ता को ठगने वाली गतिविधि पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण का गठन करना जरूरी है। इसके लिए कंपनी के उत्पाद एवं प्रचारक वाले व्यक्ति पर उच्च स्तरीय जुर्माना लगाने की जरूरत है।