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रूस द्वारा यूक्रेन पर किए गए हमले को दो सप्ताह हो चुके हैं
रघोत्तम शुक्ल
रूस द्वारा यूक्रेन पर किए गए हमले को दो सप्ताह हो चुके हैं। विकट ध्वंस जारी है। संपदा और संसाधनों की भारी क्षति के साथ यूक्रेन के दो हजार से अधिक लोग भी मारे गए हैं। लगभग 20 लाख लोग पलायन कर चुके हैं। यूक्रेनी राजकीय सूत्रों के अनुसार उन्होंने पांच हजार से अधिक रूसी सैन्यबलों को मारा है और उनके सैन्य उपकरणों को नष्ट किया है। यह आंकड़ा कुछ अतिरंजित भी हो सकता है, किंतु रूस की क्षति हुई अवश्य है। यूक्रेनी महिलाएं तक युद्धरत हैं। वे बम बना रही हैं। टैंकों के सामने आकर खड़ी हो जाती हैं।
यूक्रेन के ध्वंस के साथ साथ रूस का भी प्रतिदिन लगभग सवा लाख करोड़ रुपया युद्ध व्यय आ रहा है। रूस में युद्ध के विरुद्ध जन प्रदर्शन हो रहे हैं। दुर्भाग्यवश इस युद्ध की चपेट में आकर एक भारतीय छात्र का निधन हो गया, जबकि एक घायल हो गया। हालांकि वहां पढ़ रहे हजारों भारतीय छात्रों पर भी युद्ध का संकट था, परंतु अच्छी बात यह हुई कि भारत सरकार वहां से आने के इच्छुक लगभग सभी छात्रों को लाने में सफल रही। फिर भी वहां मानवता कराह रही है। परमाणु युद्ध की आशंका से समूचा विश्व सशंकित है।
एक दशक पूर्व इसी रूस में इस्कान यानी इंटरनेशनल सोसायटी फार कृष्ण कांसशनेस के संस्थापक भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद जी महाराज द्वारा विरचित श्रीमद्भगवद्गीता के रूसी अनुवाद और विश्लेषण 'भगवद्गीता एज इट इजÓ पर वहां प्रतिबंध लगाए जाने की बयार चली थी। सरकारी अभियोजक इसे प्रतिबंधित करने के लिए अदालत गए थे। उनका सोच था कि गीता उग्रवाद और युद्धोन्माद बढ़ाने वाला ग्रंथ है। आखिरकार वहां के हिंदू, अन्यान्य प्रबुद्ध लोग और भारत सरकार व जनमानस का रुख देखकर वह बयार थमी। पर इतना तो सच ही है कि कभी इतनी शांतिप्रियता की लाठी भांजने वाले आज एक संप्रभु देश पर केवल इसलिए आक्रमण कर रहे हैं, क्योंकि वह उनके अनुसार, अमेरिका नीत 'नाटोÓ सैन्य संगठन का सदस्य बनने की सोच रहा था और अपने देश में शायद नाटो का सैन्य प्रशिक्षण केंद्र खुलवाता।
19वीं सदी में नेपोलियन द्वारा रूस पर आक्रमण के बाद तत्परिणामी विभीषिका देखकर रूस के महान साहित्यकार लियो टाल्सटाय ने 'वार एंड पीसÓ (युद्ध और शांति) नामक कालजयी कृति सृजित की, जिसमें दर्शन, अध्यात्म, इतिहास, सामाजिकता लिए पारिवारिक जीवन की खुशहाली को रेखांकित किया गया। लेखक युद्ध क्षेत्रों में भी गए और वास्तविकताएं देखीं। वे इसी रूसी धरती के सपूत थे, जहां के शासक आज अत्यंत लचर आधार पर विश्व को युद्ध की विभीषिका में झोंके दे रहे हैं।
Rani Sahu
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