सम्पादकीय

वीपी सिंह, मुफ्ती, फारूक से थी हिंदू 'एथनिक क्लींजिंग'!

Triveni
12 Aug 2021 5:04 AM GMT
वीपी सिंह, मुफ्ती, फारूक से थी हिंदू एथनिक क्लींजिंग!
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कश्मीर पर आगे बढ़ें उससे पहले कलियुगी हिंदू, कलियुगी भारत रचना में झूठ की नियति को बूझने के लिए इन चंद शब्दों का अर्थ-अनुभव याद करें- धर्मनिरपेक्षता, कश्मीरियत, इंसानियत, एक्सोडस (exodus- निर्गमन-विदाई), फ्ली (flee- भागना), ‘एथनिक क्लींजिंग’ (Ethnic cleansing- जातीय सफाया), मैसकर (massacre- जातीय संहार, कत्लेआम) व हॉलोकास्ट (holocaust- सर्वनाश)।

कश्मीर पर आगे बढ़ें उससे पहले कलियुगी हिंदू, कलियुगी भारत रचना में झूठ की नियति को बूझने के लिए इन चंद शब्दों का अर्थ-अनुभव याद करें- धर्मनिरपेक्षता, कश्मीरियत, इंसानियत, एक्सोडस (exodus- निर्गमन-विदाई), फ्ली (flee- भागना), 'एथनिक क्लींजिंग' (Ethnic cleansing- जातीय सफाया), मैसकर (massacre- जातीय संहार, कत्लेआम) व हॉलोकास्ट (holocaust- सर्वनाश)। सोचें, इन आठ शब्दों में किसका अर्थ-सत्य कश्मीर घाटी में हिंदुओं के अनुभव में सच्चा व सटीक है? क्या मुसलमान से कश्मीरी पंडितों को धर्मनिरपेक्षता, कश्मीरियत, इंसानियत का अनुभव हुआ? क्या घाटी में अब मौजूद इस्लामियत को धर्मनिरपेक्षता, कश्मीरियत, इंसानियत का पर्याय मानेंगे? क्या 19 जनवरी 1990 की आधी रात में श्रीनगर की मस्जिदों से अल्लाह हो अकबर, काफिरों इस्लाम अपनाओ, नहीं तो भागो, मरो के नारों व सड़कों पर मुसलमानों ने शोर बनाकर (जैसे जंगल में शिकार के लिए हांका लगता है) कश्मीरी पंडितों को इकठ्ठा कर भगाया, मारा और घाटी को हिंदुओं से खाली कराया गया उसे कश्मीरी पंडितों का एक्सोडस (घाटी से विदाई), फ्ली (घाटी से भागना) कहेंगे या इतिहास की वह घटना 'एथनिक क्लींजिंग' (जातीय सफाए), मैसकर (जातीय संहार, कत्लेआम) व हॉलोकास्ट (सर्वनाश) शब्द के अर्थ की पर्याय हैं?

जवाब को गूगल में तलाशें। मालूम होगा हम हिंदू और भारत कितने झूठ में जीते हैं! गूगल पर 19 जनवरी 1990 की घटना को खोजेंगे तो आम हेडिंग मिलेगी 'एक्सोडस ऑफ कश्मीरी पंडित!' मतलब पंडितों का घाटी छोड़ना या विदाई, निर्गमन! हां, 1990 में मीडिया की सुर्खियों से लेकर आज तक घाटी में हिंदुओं के सफाए की 'एथनिक क्लींजिंग' को 'एक्सोडस ऑफ कश्मीरी पंडित या फ्ली ऑफ कश्मीरी पंडित (कश्मीरी पंडित भागे) का शीर्षक मिला हुआ है। क्या वह विदाई थी, भागना था? नहीं, वह मुसलमानों का हिंदुओं को डरा कर, मार कर भगाना था? घाटी में हिंदुओं का जो कुछ था (लोग, परिवार, घर, संपत्ति, मंदिर, रोजी-रोटी) उस सबका सर्वनाश था। घाटी से हिंदुओं का जातीय सफाया था। क्या नहीं? तब कैसे बना यह झूठ कि वे भागे या उन्होंने घाटी छोड़ी?
इसलिए कि भारत की तब की वीपी सिंह सरकार, हिंदू बौद्धिकों, विचारमनाओं और धर्मनिरपेक्षता, कश्मीरियत, इंसानियत शब्दों के रूमानियत में खोए लोगों को डर व यह चिंता थी कि यदि घाटी में मुसलमानों द्वारा कश्मीरी पंडितों के जातीय सफाए, उनके सब कुछ के सर्वनाश को सत्यता में 'एथनिक क्लींजिंग', मैसकर या हॉलोकास्ट शब्द मिला तो मुसलमान की बदनामी होगी और धर्मनिरपेक्षता-कश्मीरियत की कश्मीर प्रयोगशाला की असलियत, पोल खुलेगी।
तभी कश्मीर जैसा वाकया 20वीं-21वीं सदी के इतिहास में दूसरा कोई नहीं मिलेगा। दुनिया की ऐसी कौन सी नस्ल, धर्म व देश है, जिसके भीतर अल्पसंख्यक समुदाय ने क्षेत्र विशेष में देश की बहुसंख्यक आबादी के लोगों का जातीय सफाया किया लेकिन देश ने उस सत्य को दबाया! खुद बहुसंख्यकों ने सच्चाई छुपाई। अंधे को अंधा न बताकर सूरदास बताने मतलब 'एथनिक क्लींजिंग' को 'एक्सोडस ऑफ कश्मीरी पंडित' बतला दुनिया से सच्चाई छुपाई! 20वीं-21वीं सदी में किसी दूसरे देश में ऐसा नहीं हुआ जो घाटी में जनवरी 1990 में हुआ था। दुनिया के रिकार्ड में ऐसी कोई दूसरी घटना नहीं है, जिसमें जिस धर्म-नस्ल की बहुलता में जो देश बना है उसी का उसके भीतर इलाके विशेष से अल्पसंख्यक 'एथनिक क्लींजिंग' कर दें! और वह इलाका फिर मूल-बहुसंख्यक आबादी के लिए वर्जित बना रहे! दुनिया के किसी ईसाई, मुस्लिम, धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसा एक भी वाकया नहीं हुआ कि ब्रिटेन के एक प्रांत में माइनोरिटी मुस्लिम वहां के बहुसंख्यक ईसाईयों को खदेड़, इलाके से गोरों की 'एथनिक क्लींजिंग' में उनका सफाया कर दें और ब्रितानी महारानी व पार्लियामेंट उसे बरदाश्त करते हुए ऐसा होना नियति माने। अपने पड़ोस में श्रीलंका में तमिल उग्रवादियों का जाफना से सिंहलियों (श्रीलंका के बहुसंख्यक) के सफाए का वाकया है लेकिन श्रीलंका राष्ट्र-राज्य ने उसे बरदाश्त नहीं किया। सिंहली सरकार ने तमिल आबादी को न केवल दुरूस्त किया, बल्कि जाफना और उत्तरी प्रांत में आज सिंहलियों का पूरा वर्चस्व है। तभी भारत राष्ट्र और झूठ-मूर्खताओं में जीने वाले हिंदू हुक्मरानों को श्रीलंका के सिंहलियों से सीखना चाहिए कि राज कैसे किया जाता है!
मुझे कभी समझ नहीं आया कि गांधी-नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी के हिंदू राज को 1947 में मीरपुर, राजौरी, पुंछ याकि जम्मू इलाके में 'एथनिक क्लींजिंग' की झांकियों और 19 जनवरी 1990 की आधी रात में घाटी के मुसलमानों द्वारा भेड़ियाई भो-भो से हिंदुओं के जातीय सफाए के बावजूद क्यों कश्मीरियत-इंसानियत का राग रिपीट करना होता है? क्या यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि अनुभव सामने होने के बावजूद सत्य से मुंह चुराते हुए हिंदू भयाकुलता से झूठ में जीने की नियति में बंधे हैं!
तभी 1722 में इस्लाम में धर्मांतरित पंडित राघोराम कौल के वंशज शेख अब्दुल्ला ने पूर्वज कश्मीरी पंडितों से बनी कश्मीरियत, इंसानियत को दफनाने की जमीन-कब्र बनाने का काम जहां बेखौफ किया तो उनके बेटे फारूक ने भी घाटी में इस्लामियत के तमाम चेहरों के साझे से 19 जनवरी 1990 को निश्चिंतता से कश्मीरियत को दफन किया। वे कभी इस चिंता में नहीं थे कि कहीं मानवता के खिलाफ अपराध का मुकद्दमा न चल पड़े।
इसलिए कि हिंदू मानस को पहले तो सच्चाई पूरी नहीं बतलाई गई। दूसरे कुछ मालूम भी हुआ तो समझ नहीं पड़ा कि घाटी से हिंदुओं के सफाए का सभ्यतागत क्या अर्थ है? सत्य है जो हुआ वह इस्लाम के चलते है। यह सत्य बिना किंतु-परंतु के है क्योंकि न श्रीनगर-घाटी के कश्मीरी पंडितों ने कभी मुसलमानों को आंखें दिखाई, न देश के नेहरू-गांधी-कर्ण सिंह याकि हिंदू नेतृत्व ने ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम से इंसानियत सिखलाने में कमी रखी और न ही भारत राष्ट्र-राज्य जुल्मी व जालिम था। भारत सिर्फ मुस्लिम लीग-आईएसआई की आग को बुझाने, क्रिया पर प्रतिक्रिया, आंतक के प्रतिकार की पुलिस-सेना लिए हुए था। बावजूद इस सबके घाटी के मुसलमानों ने पूर्वजों की विरासत, साझा चुल्हे और कश्मीरियत को दफनाया तो उससे बना एक सत्य यह भी है कि वह दिन था और आज का दिन है, भारत का मुसलमान अब कीमत अदा करते हुए है। क्या भारत का मुसलमान अब नैतिक बल के साथ यह कहने की हैसियत में है कि उन्हें संविधान-कानून और सेकुलर व्यवस्था में जीने का हक है।
नहीं! नोट रखें यह सत्य (खास कर उन लोगों को जिन्होंने घाटी में जातीय सफाए को सच्चाई से नहीं स्वीकारा) कि 1990 में घाटी से मुसलमान ने कश्मीरी पंडितों का सफाया किया तो आठ महीने बाद पूरे देश में हिंदू राम का नाम लेता हुआ था। आडवाणी की रथयात्रा सुपर हिट थी। हिंदुओं ने बाबरी मस्जिद ढहा दी। भारत की राजनीति में हिंदुवादी सोच का झंड़ा गड़ा और नतीजा?…. कश्मीर घाटी से आज न केवल अनुच्छेद 370 खत्म है, बल्कि फारूक, उमर और मेहबूबा मुफ्ती सब नरेंद्र मोदी-अमित शाह के आगे मिमियाते हुए हैं।.. सत्य है पूरे देश का मुसलमान अब बिना सत्ता के लावारिस है! हैसियत दो टके की है!
क्या मैं गलत लिख रहा हूं? क्या है घाटी के मुसलमानों के लिए आगे का रास्ता? क्या वे तालिबान को बुला कर जिएंगे? संभव है मैं गलत हूं लेकिन मेरा मानना है कि आने वाले सालों में घाटी की बात तो दूर पाकिस्तानी-आजाद कश्मीर के मुसलमान भी तालिबान के खौफ में भागते मिलेंगे। नोट रखें यदि तालिबान से भारत को खतरा है तो भारत से ज्यादा इमरान खान एंड पार्टी और वहां के उन उत्तरी सूबों के पाकिस्तानियों, पीओके के मुसलमानों की जान सूखनी है, जहां कि डूरंड सीमा में तालिबानी घुसने वाले हैं और जिन्होंने इस्लामियत का जहर फैला घाटी पर तालिबान की नजर लगवाई है!
तभी भारत की धर्मनिरपेक्षता, हिंदू-मुस्लिम रिश्तों का भविष्य और घाटी के भविष्य व मानवता के विचार सभी पहलूओंम में 19 जनवरी 1990 का दिन भयावह था। उस दिन के अपराधी शेख अब्दुल्ला थे तो भारत के प्रधानमंत्री-रक्षा मंत्री वीपी सिंह, गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद और राज्यपाल जगमोहन भी थे। ऐसा आजाद भारत में पहले कभी नहीं हुआ। हां, 1984 में दिल्ली में सिख जनसंहार भी दहलाने वाला था लेकिन घाटी का मामला इसलिए जघन्य है कि वह एक इलाके से हिंदुओं के पूरे सफाए वाली 'एथनिक क्लींजिंग' थी। घाटी में कश्मीरी पंडितों का सफाया और जातीय सर्वनाश औरंगजेब की क्रूरता को मात देने वाली थी। जैसा मैं पहले लिख चुका हूं कश्मीर के छह सौ साल के गुलामी के राज में हमलावर सिकंदर सुल्तान, अफगान दुर्रानी और औरंगजेब की धर्मांतरण की हरसंभव जोर-जबरदस्ती के बावजूद घाटी में हिंदुओं का समूल खात्मा नहीं हुआ था। 1947 की 32-35 लाख आबादी में भी छह-सात प्रतिशत हिंदू थे लेकिन 1989-90 के एक साल में मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला, प्रधानमंत्री वीपी सिंह, गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने सोची-समझी साजिश या आंखें बंद कर घाटी से हिंदुओं का सफाया होने दिया तो वह घाटी के इतिहास की निर्णायक, अंतिम 'एथनिक क्लींजिंग' और ˈमैसकर' की परिभाषा वाली घटना है या नहीं?
सवाल है कि ऐसा किस वक्त हुआ? भारत के सर्वाधिक सेकुलर प्रधानमंत्री वीपी सिंह और उनके द्वारा देश-दुनिया के मुसलमानों को धर्मनिरपेक्षता का संदेश देने के लिए भारत के पहले मुस्लिम गृह मंत्री बनाए गए मुफ्ती मोहम्मद सईद के कार्यकाल में! दोनों कांग्रेस से पैदा हुए, दोनों भाजपा के समर्थन से सत्ता में बैठे हुए थे और दोनों की सौ टका शह व अनदेखी में हुई थी हिंदुओं की 'एथनिक क्लींजिंग'!
सत्य कटु होता है। सत्य है कि मैं, 'जनसत्ता' अखबार और उसमें मेरे बतौर संपादक-न्यूज व गपशप कॉलम लिखने में 'राजा नहीं फकीर है देश की तकदीर है' नारे के झूठ में बहने व वीपी सिंह को बनाने-निखारने के नैरेटिव में अग्रणी था। पत्रकारी जीवन में मैंने जिन दो नेताओं वीपी सिंह और नरेंद्र मोदी से देश बदलने की सर्वाधिक उम्मीद पाली उन्हीं से मेरा शपथ के बाद पालने के लक्षणों से सर्वाधिक व बहुत जल्दी मोहभंग हुआ। वीपी सिंह का देवीलाल को उप प्रधानमंत्री और मुफ्ती मोहम्मद सईद को गृह मंत्री बनाना ही बतला देने वाला था कि उनसे समाज और देश का क्या बनेगा।
मुफ्ती मोहम्मद सईद के असर और धर्मनिरपेक्षता के अपने पाखंड में वीपी सिंह ने बतौर प्रधानमंत्री और बतौर रक्षा मंत्री अपने कर्तव्य से वह द्रोह किया, जिससे उनका इतिहास 19 जनवरी 1990 के दिन हिंदुओं की 'एथनिक क्लींजिंग' वाला है। हां, यह भी मानें कि वीपी सिंह, मुफ्ती के पाप से ही भारत का बीस करोड़ मुसलमान अपने घर में अपने को बेगाना फील कर रहा है। हिंदू कितना ही भयाकुल, गुलाम व झूठ में जीता हुआ हो लेकिन मनुष्य होने के नाते वह दिमाग में यह अचेतन तो लिए हुए है कि मुसलमान से इतिहास के घाव हैं और उनके साथ जैसे का तैसा क्यों न हो।
तो वीपी सिंह आजाद भारत के अकेले क्या वे प्रधानमंत्री नहीं, जिनके राज में एक इलाके से हिंदुओं का जातीय सफाया, 'एथनिक क्लींजिंग' हुई? क्या वीपी सिंह, फारूक अब्दुल्ला, मुफ्ती मोहम्मद 'एथनिक क्लींजिंग' के, उसकी साजिश रचने, उसकी रीति-नीति-परिस्थितियां बनवाने के


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