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- मतदान का हिस्सा
Written by जनसत्ता: लेकिन क्या कारण है इस उत्सव में आज तक देश का प्रत्येक नागरिक सम्मिलित नहीं हुआ है और क्यों आज तक कभी भी शत प्रतिशत मतदान नहीं हो पाया? स्वतंत्रता के साथ ही सार्वभौम वयस्क मताधिकार मिलने के इतने वर्षों बाद भी हम कभी शत-प्रतिशत मतदान के आंकड़े के इर्द-गिर्द भी नहीं पहुंच पाए। विश्व की सबसे अधिक युवा आबादी होने के बाद भी हम इस आंकड़े से दूर हैं, यह चिंतन का विषय है। इस दिशा में मतदान अधिकारियों एवं जनता को साथ आकर कार्य करने की आवश्यकता है।
कई लोग मतदान के दिन मिलने वाली छुट्टी को मतदान करने की बजाय पिकनिक या आराम करने के लिए उपयोग करते है। यह हमारी गिरती वैचारिक परिपक्वता को दर्शाता है। इसलिए कुछ ऐसे सुधार किए जाने की जरूरत है, जिससे हर कोई मतदान में उत्साह और उमंग के साथ हिस्सा लेकर अपने मताधिकार का उपयोग करे।
ऐसी जागरूकता की आवश्यकता है, जहां मतदान मात्र एक कार्य न रहकर जीवन का हिस्सा बन जाए और जिसे करना अनिवार्य हो। भारत जैसे युवा आबादी और सबसे बड़े लोकतंत्र में शत-प्रतिशत मतदान की तरफ कदम बढ़ाकर हम समस्त दुनिया के सामने नए प्रतिमान खड़े कर सकते है जहां हर नागरिक देश के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए तत्पर रहता है। सबसे बड़े लोकतंत्र में पूर्ण या शत-प्रतिशत मतदान दुनिया मे लोकतंत्र के तथाकथित ठेकेदारों के लिए दर्पण साबित होगा।
शिक्षित व्यक्ति का ज्ञान कोई चुरा नहीं सकता, बल्कि वह अपने ज्ञान के बल पर बहुत कुछ और जीत सकता है। लेकिन बिहार में बहुत सारे लोग इसका महत्त्व नहीं समझ पा रहे हैं। शायद इसीलिए शिक्षा व्यवस्था गिरती हुई नजर आ रही है और बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है।
सरकार अपनी पार्टी बचाने और बनाने के बजाय एक नजर शिक्षा पर डाल लेती तो बिहार की किसी भी विद्यार्थी को अपना घर परिवार दिल के पास बिहार को छोड़कर अन्य राज्यों में जाने की जरूरत नहीं पड़ती। बिहार में न तो योग्य शिक्षकों की कमी है और न ही होनहार मेहनती विद्यार्थियों की कमी है। कमी है तो राजनीतिक इच्छाशक्ति की।