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सम्पादकीय
मतदाता विधानसभा और लोकसभा चुनावों में एक-दूसरे से बहुत भिन्न जनादेश देते हैं
Gulabi Jagat
26 March 2022 8:32 AM GMT

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2022 के विधानसभा चुनावों को सेमीफाइनल और 2024 के आम चुनावों को फाइनल कहा जा रहा था
संजय कुमार का कॉलम:
2022 के विधानसभा चुनावों को सेमीफाइनल और 2024 के आम चुनावों को फाइनल कहा जा रहा था। सेमीफाइनल के नतीजे तो आ चुके हैं, लेकिन अब एक नई चर्चा शुरू हो गई है। यह कि क्या ये नतीजे हमें 2024 के बारे में कोई पूर्वानुमान दे पाते हैं। जिस तरह से भाजपा ने पांच में से चार राज्यों में जीत दर्ज की, उसके बाद क्या हमें मान लेना चाहिए कि बहस समाप्त हो चुकी है या क्या 2024 के चुनाव अभी भी हमें चकित कर सकते हैं?
इस बारे में दो विपरीत विचार प्रचलित हैं। एक तो यह कि 2024 के चुनाव अभी भी खुले हैं और भाजपा को विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों समेत कांग्रेस से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल सकती है। अनेक राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों का मजबूत जनाधार है और वे वोट पाने में सफल रहेंगी। देश की अर्थव्यवस्था बुरी दशा में है, बेरोजगारी और महंगाई दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। आम चुनावों में अभी दो साल बाकी हैं।
हो सकता है इतने समय में कांग्रेस वापसी के लिए खुद को तैयार करे और कुछ राज्यों में भाजपा के सामने चुनौती पेश कर सके। कुछ विश्लेषकों का मत है कि विपक्षी दल एक साझा मोर्चा बनाकर भाजपा का मुकाबला करने में कामयाब रहेंगे। दूसरा विचार इसके विपरीत है और वो यह कि 2024 में भाजपा की टक्कर में कोई नहीं है।
हाल में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन देखकर उसकी वापसी की निकट-भविष्य में कोई संभावनाएं नहीं दिखतीं और आम आदमी पार्टी को छोड़कर शेष क्षेत्रीय पार्टियां केवल अपने राज्यों में लोकप्रिय हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपार लोकप्रियता और उनके कद का कोई विपक्षी नेता नहीं होने का भी फायदा भाजपा को मिलेगा।
कुछ क्षेत्रीय नेता अपने राज्यों में भले प्रधानमंत्री से भी लोकप्रिय हों, लेकिन अखिल भारतीय लोकप्रियता से कोसों दूर हैं। यह भी याद रखना चाहिए कि मतदाता विधानसभा चुनावों में अलग तरह से वोट डालते हैं, और लोकसभा चुनावों के समय उनका दृष्टिकोण राष्ट्रीय हो जाता है। विगत अनेक चुनावों में यह रूझान देखा गया है।
इसलिए चार राज्यों में भाजपा की बड़ी जीत से 2024 के बारे में कोई निर्णय ले लेना आसान नहीं होगा। 2019 के चुनावों से पहले अनेक राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए थे। उनके परिणामों और 2019 के आम चुनावों के परिणामों में कोई सम्बंध नहीं था। 2019 के आम चुनावों से महज छह माह पूर्व भाजपा तीन बड़े राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव हार गई थी।
लेकिन लोकसभा चुनावों में इन तीनों राज्यों में उसने 65 में से 63 सीटें जीत लीं। इन राज्यों में 2018 के विधानसभा चुनावों की तुलना में 2019 के आम चुनावों में भाजपा का वोट-शेयर भी नाटकीय तेजी से बढ़ा। ये सच है कि दोनों चुनावों के बीच बालाकोट हमले की घटना हुई थी, जिसका असर वोटिंग पर पड़ा था। लेकिन महज छह माह पहले इन राज्यों में हारने के बाद आम चुनावों में इतनी बड़ी जीत दर्ज करना तो केवल यही बताता है कि मतदाता विधानसभा और लोकसभा के चुनावों में एक-दूसरे से बहुत भिन्न जनादेश देते हैं।
2019 के आम चुनावों के बाद हुए विधानसभा चुनावों पर भी नजर डालें। दिल्ली के मतदाताओं ने लोकसभा में भाजपा को सातों सीटें जितवाई थीं, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने आम आदमी पार्टी को भारी बहुमत दिलाया। हरियाणा और झारखंड में भी भाजपा ने लोकसभा चुनावों में बड़ी जीत हासिल की थी, लेकिन कुछ ही महीनों बाद हुए विधानसभा चुनावों में वह इन राज्यों में बहुमत नहीं पा सकी।
हरियाणा में उसे गठबंधन सरकार बनाना पड़ी, लेकिन झारखंड में वह 2014 से 2019 तक सत्तारूढ़ दल होने के बावजूद चुनाव हार गई। राजनीति में पूर्वानुमान लगाना खतरनाक होता है और हमें इससे बचना चाहिए। विधानसभा चुनावों के परिणाम लोकसभा चुनावों के लिए इंडिकेटर का काम नहीं करते हैं। इसका ये मतलब नहीं कि पार्टियों को अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करने की जरूरत नहीं।
जहां भाजपा आज हर लिहाज़ से मजबूत स्थिति में है, वहीं वह निश्चिंत नहीं हो सकती और एक चुनावी रणनीति तो उसे भी बनाना होगी। कांग्रेस और विपक्षी दलों को तो जनाधार बढ़ाने के साथ ही उपयोगी गठबंधन बनाने पर भी विचार करना होगा। एक बात तो तय है कि 2024 में कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियां अकेले ही भाजपा को हरा नहीं सकती हैं।
कांग्रेस और विपक्षी दलों को 2024 में अपना जनाधार बढ़ाने के साथ ही उपयोगी गठबंधन बनाने पर भी विचार करना होगा। एक बात तो तय है कि कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियां अकेले भाजपा को हरा नहीं सकतीं।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Gulabi Jagat
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