सम्पादकीय

मुखर: सरकार के विरोध में पाकिस्तानी मीडिया

Gulabi
24 Sep 2021 6:15 AM GMT
मुखर: सरकार के विरोध में पाकिस्तानी मीडिया
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इस हफ्ते पकिस्तान के लोग काफी गुस्से में हैं

इस हफ्ते पकिस्तान के लोग काफी गुस्से में हैं, बहुत ज्यादा गुस्से में। ऐसा लगता है, मानो पाकिस्तान गुस्सैल लोगों का देश बन गया है। एक मामले को लेकर मीडिया, विपक्षी राजनीतिक पार्टियां और नागरिक समाज बहुत नाराज और परेशान हैं, तो दूसरे मामले को लेकर खैबर से लेकर कराची तक हर पाकिस्तानी बहुत ज्यादा गुस्से में है। प्रेस लाउंज और प्रेस गैलरी में प्रवेश करने के लिए सीढ़ियों पर चढ़ते ही संसद कवर करने वाले पत्रकारों को यह देखकर झटका लगा कि सभी दरवाजे बंद थे।

वे राष्ट्रपति आरिफ अल्वी द्वारा संसद के वार्षिक संबोधन में भाग लेने आए थे, जो आम तौर पर एक उबाऊ मामला है, क्योंकि भाषण पाकिस्तान तहरीक-ए इंसाफ (पीटीआई) सरकार द्वारा लिखा जाता है और अधिकांश समय राष्ट्रपति अपनी ही सरकार की प्रशंसा करते हैं, जिसने उन्हें राष्ट्रपति के रूप में नामित किया था। बहुत साल पहले जियाउल हक के मार्शल लॉ को हटाए जाने के बाद संसद के पूर्व स्पीकर सैयद फखर इमाम के एक फैसले में घोषणा की गई थी कि प्रेस गैलरी अब संसद का हिस्सा है। तो फिर संसद को कैसे बंद किया जा सकता है?
संसद के इतिहास में कभी भी स्पीकर द्वारा दरवाजे बंद नहीं करवाए गए थे। मौजूदा स्पीकर के नाराज होने का कारण यह था कि मीडिया कई हफ्तों से प्रस्तावित सरकारी कानून के खिलाफ आंदोलन और विरोध कर रहा था। प्रस्तावित पाकिस्तान मीडिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (पीएमडीए) विधेयक में प्रिंट, टेलीविजन, रेडियो, फिल्मों, विज्ञापनों और डिजिटल मीडिया सहित सभी मीडिया को सरकार द्वारा नियंत्रित करने का प्रावधान है।

स्पीकर को यह भय था कि सैन्य नेताओं, महत्वपूर्ण राजदूतों और अन्य विशिष्ट मेहमानों के सामने मीडिया राष्ट्रपति के भाषण का बहिष्कार करने के लिए चुपचाप अपनी सीट छोड़ देगा, जो सरकार के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी की बात होगी। संसद के बाद के सत्रों में जब प्रेस गैलरी के दरवाजे खोले गए, तो पत्रकारों ने बड़े सफेद चिह्न के साथ काले मास्क पहन रखे थे, जिसका अर्थ है 'नहीं'। अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के बाद उन्होंने बहिर्गमन किया और संसदीय सत्र का बहिष्कार किया।

वे अब भी बहिष्कार कर रहे हैं। मीडिया को डर है कि पीडीएमए स्वतंत्र मीडिया के खिलाफ युद्ध की घोषणा है और यदि यह विधेयक कानून बन गया, तो यह स्वतंत्र मीडिया के ताबूत में आखिरी कील होगा। यह विधेयक कानून बना, तो कानून का उल्लंघन करने वाले को तीन साल तक की जेल और लाखों रुपये का जुर्माना भरना होगा। अंग्रेजी दैनिक द न्यूज ने कहा, 'प्रस्तावित कानून वैश्विक सत्तावादी प्लेबुक से लिया गया प्रतीत होता है।'

पूर्व संपादक और राजदूत डॉ. मलीहा लोधी का कहना है कि पाकिस्तान का इतिहास इस बात का गवाह है कि जब मीडिया सरकारी दबाव का विरोध करने के लिए एकजुट हुआ, तो जनता द्वारा चुनी हुई कोई भी सरकार मीडिया से लड़ाई नहीं जीत पाई। वह कहती हैं, 'पिछली सैन्य सरकार को भी प्रेस से टकराव की भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। हाल के वर्षों में अधिकांश सरकारों ने प्रिंट और प्रसारण मीडिया में जोड़-तोड़ करने के लिए 'फूट डालो और राज करो' की रणनीति का इस्तेमाल किया- यह ऐसा प्रयास है, जो हमेशा क्षणिक होता है और लंबे समय तक काम नहीं करता।

मौजूदा सरकार में समय-समय पर मीडिया के कुछ हिस्से को संरक्षण देने के साथ आलोचनात्मक मीडिया को दंडित करने की रणनीति जारी है।' आइए, अब एक ऐसे मुद्दे की बात करते हैं, जिससे पूरा मुल्क गुस्से में है, और वह मुद्दा यह है कि सुरक्षा कारणों से न्यूजीलैंड और इंग्लैंड ने पाकिस्तान में अपने क्रिकेट सीरीज रद्द कर दिए हैं। ब्रिटिश उच्चायुक्त डॉ. क्रिस्टीन टर्नर का, जो पाकिस्तान के बहुत बड़े मित्र हैं, कहना है कि क्रिकेट की जीत होगी।

वह परेशान पाकिस्तानियों को देखकर खुद भी इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) के फैसले से नाराज और परेशान थे। वह एक टेलीविजन शो में दिखाई पड़े और एक छोटा वीडियो भी जारी किया, जिसमें कहा गया कि पाकिस्तान पूरी तरह से सुरक्षित है। उन्होंने जो कहा, वह बेहद दिलचस्प है कि इस्लामाबाद स्थित ब्रिटिश उच्चायोग और ब्रिटिश सरकार ईसीबी के फैसले से सहमत नहीं है। उनके मुताबिक, यह ईसीबी का 'स्वतंत्र' निर्णय है।

यह लगभग ऐसा ही है, जैसे ईसीबी इंग्लैंड के अंदर कोई दूसरा मुल्क हो। उन्होंने कहा कि दौरा रद्द करने का निर्णय ईसीबी का है, जो खिलाड़ी के कल्याण की चिंताओं के आधार पर ब्रिटिश सरकार से स्वतंत्र है। ब्रिटिश सरकार और इस्लामाबाद स्थित ब्रिटिश उच्चायोग ने दौरे का समर्थन किया था और सुरक्षा के मसले पर ईसीबी को कोई सलाह नहीं दी। अब पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड और पाकिस्तान सरकार न्यूजीलैंड और ईसीबी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने पर विचार कर रहे हैं।

ब्रिटिश, भारतीय और अन्य क्रिकेट खेलने वाले राष्ट्रों की तरह टर्नर देख सकते हैं कि पाकिस्तान की जनता मैच रद्द होने से कितनी निराश और परेशान है। डॉ. टर्नर ने कहा कि, 'मैं पाकिस्तान के लोगों की इस निराशा को समझता हूं और इस फैसले का समर्थन नहीं करता। मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगा कि दौरा रद्द करने में ब्रिटिश सरकार की कोई भूमिका नहीं है। मेरा ध्यान अब वर्ष 2022 की शरद ऋतु में पाकिस्तान का दौरा करने से संबंधित ईसीबी की लंबे समय से चली आ रही प्रतिबद्धता पर है।' क्रिकेट की जीत तो हो गई।
क्रेडिट बाय अमर उजाला
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