सम्पादकीय

वर्चुअल शिखर सम्मेलन : अमेरिका से दूर होता पाकिस्तान

Gulabi
17 Dec 2021 2:40 PM GMT
वर्चुअल शिखर सम्मेलन : अमेरिका से दूर होता पाकिस्तान
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अमेरिका से दूर होता पाकिस्तान
हाल ही में लोकतंत्र के लिए वर्चुअल शिखर सम्मेलन आयोजित करने के अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के फैसले ने पाकिस्तान में प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश विभाग में भारी भ्रम पैदा किया। विश्व की राजधानियों में कोविड-19, जलवायु परिवर्तन और अफगानिस्तान में भुखमरी जैसे इतने सारे जरूरी मुद्दों पर चर्चा हो रही है, तब लोकतंत्र पर शिखर सम्मेलन क्यों? पाकिस्तान में, इस सम्मेलन की मेहमान देशों की सूची को लेकर भी तीखी आलोचनाएं हुईं, जिसमें बांग्लादेश और भूटान सहित कई अन्य कामकाजी लोकतंत्रों को आमंत्रित नहीं किया गया। आखिर वह पैमाना क्या था, जिसके आधार पर अमेरिका ने तय किया कि कौन-सा देश लोकतंत्र है और कौन-सा देश नहीं है?
चीन और रूस को आमंत्रित नहीं किए जाने से साफ था कि यह एक नया राजनीतिक ब्लॉक बनाने का प्रयास है। ताईवान को निमंत्रण दिए जाने से स्पष्ट हो गया कि चीन को संदेश दिया गया है। विशेषज्ञ कह सकते हैं कि लोकतंत्र को लेकर यह शिखर सम्मेलन चीन को अलग-थलग करने के इरादे से आयोजित किया गया। जिन्होंने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के आखिरी दिनों में कभी न भूलने वाले दृश्यों में देखा था कि अमेरिकी लोकतंत्र की कैसी बदतर हालत हो गई थी, अमेरिकी लोकतंत्र के केंद्र कैपिटल हिल पर कैसे भीड़ ने हमला किया था, वह नहीं जानते कि आखिर बाइडन किस तरह के लोकतंत्र की कल्पना कर रहे हैं।
पूर्व राजनयिक डॉ. मलीहा लोधी के मुताबिक अमेरिका में लोकतांत्रिक क्षरण ने एक अलग रूप ग्रहण किया है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप वहां पतन भी हुआ है। हाल के वर्षों में ट्रंपवादी लोकलुभावनवाद ने नस्लवादी और श्वेत वर्चस्ववादी समूहों को मुख्यधारा में लाकर उन्हें सशक्त किया है, जिससे वहां नस्लीय भावनाएं भड़की हैं और इसने देश को गहरे तक विभाजित कर दिया है। वैसे यदि आप पूरी दुनिया की ओर नजर दौड़ाएं तो कहीं भी कोई विशुद्ध लोकतंत्र नहीं है, विश्व की प्रत्येक राजधानी की अपनी चुनौतियां हैं, क्योंकि लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ती असहिष्णु ताकतें चुनौती दे रही हैं।
वास्तव में कोई भी दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी लोकलुभावनवाद को और अधिक उभरते देख सकता है। प्रत्येक देश की अपनी कमजोरियां हैं और केवल वे ही उससे बाहर निकलने का रास्ता तलाश सकते हैं, बजाय किसी बाहरी शक्ति के दखल के। यह भी महत्वपूर्ण है कि जो बाइडन ने जहां पाकिस्तान को एक लोकतंत्र के रूप में मान्यता देकर इस सम्मेलन में आमंत्रित कर प्रधानमंत्री इमरान खान तक पहुंचने की कोशिश की, वहीं ओवल कार्यालय में जिम्मेदारी संभालने के करीब साल भर बाद तक उन्होंने इमरान की उपेक्षा की है।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने विश्व के अधिकांश नेताओं से मुलाकात की है और उन्हें टेलीफोन किया है, लेकिन आज तक उन्होंने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को एक टेलीफोन कॉल तक नहीं किया है। उनके सैन्य और नागरिक दोनों प्रशासन ने अफगानिस्तान में अमेरिकी नीति की नाकामी के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया है और तालिबान की नई अंतरिम सरकार का समर्थन करने की वजह से उसे आड़े हाथ लिया है। लोकतंत्र के शिखर सम्मेलन की रूपरेखा इस तरह की थी कि उसमें इमरान खान के लिए अन्य नेताओं मसलन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह, लाइव भाषण देने का अवसर नहीं था। इसके बजाय पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से कहा गया था कि वह अपना भाषण रिकॉर्ड करें, जिसे कार्यक्रम में जोड़ा जाएगा।
आखिरी दिन तक पाकिस्तान के विदेश विभाग ने चुप्पी साधे रखी कि क्या इस्लामाबाद लोकतंत्र से संबंधित इस सम्मेलन में हिस्सा ले रहा है या नहीं। खबरों के मुताबिक पाकिस्तान ने इस बारे में चीन से मशविरा किया, क्योंकि वह इस सम्मेलन में शामिल होकर जिसमें ताईवान भी शामिल हो रहा था, इस क्षेत्र में अपने सबसे मजबूत सहयोगी को नाराज नहीं करना चाहता था। पाकिस्तान ने शिखर सम्मेलन के बाद अमेरिका से यह भी कहा कि वह द्विपक्षीय संबंधों के पुराने स्वरूप से अलग होना चाहता है।
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा, 'हम अमेरिका से अपने दीर्घकालीन रिश्ते का सम्मान करते हैं। भविष्य की ओर देखते हुए हम अमेरिका के साथ लेन-देन वाला रिश्ता नहीं चाहते। हम ऐसा बहुआयामी संबंध चाहते हैं, जो क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय नीतियों की अनियमितताओं के प्रति अतिसंवेदनशील न हो। हम भू-राजनीति से लेकर भू-अर्थशास्त्र में बदलाव चाहते हैं, हम अमेरिका के साथ एक ऐसा संबंध चाहते हैं, जो हमारी बदली हुई प्राथमिकता के अनुरूप हो।'
अमूमन अमेरिका के मामले में पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व की राय पर भी गौर किया जाता है। लेकिन इन दिनों इमरान खान और सैन्य मुख्यालय के बीच तनाव चल रहा है, इसलिए यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि क्या सैन्य मुख्यालय से इस बारे में कोई मशविरा किया गया। विपक्षी दलों ने भी इसमें कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई, सिवाय पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता बिलावल भुट्टो के। बिलावल ने मीडिया से कहा कि सम्मेलन में हिस्सा न लेकर पाकिस्तान ने बड़ी चूक की है।
पाकिस्तानी विदेश विभाग ने राजनयिक स्तर पर सम्मेलन में शामिल होने से इन्कार करने के बाद कहा, 'हम लोकतंत्र के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए पाकिस्तान को आमंत्रित करने के लिए अमेरिका के आभारी हैं। हम कई मुद्दों पर अमेरिका के संपर्क में रहते हैं और मानते हैं कि हम भविष्य में इस विषय पर उपयुक्त समय पर जुड़ सकते हैं।' पाकिस्तान के अस्वीकार करने पर अमेरिका की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन यह साफ है कि बाइडन इस बात को लेकर बहुत स्पष्ट हैं कि वह पाकिस्तान से क्या चाहते हैं।
अमर उजाला
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