सम्पादकीय

आभासी जीवन

Subhi
5 Sep 2022 5:37 AM GMT
आभासी जीवन
x
इंटरनेट के आविष्कार मानव जीवन में एक क्रांति लेकर आई। इंटरनेट की मदद से हर क्षेत्र में विकास की नई इबारत लिखी गई है। आज सोशल मीडिया का दौर चरम सीमा पर है।

Written by जनसत्ता: इंटरनेट के आविष्कार मानव जीवन में एक क्रांति लेकर आई। इंटरनेट की मदद से हर क्षेत्र में विकास की नई इबारत लिखी गई है। आज सोशल मीडिया का दौर चरम सीमा पर है। सोशल मीडिया पर छोटी-सी खबर भी चंद मिनटों में पूरी दूनिया में फैल जाती है। सोशल मीडिया के सहारे दुनियाभर के लोग आसानी से एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं। आज लोगों का बहुत अधिक समय मोबाइल पर व्यतीत हो रहा है। लोगों को अकेले रहने की आदत पड़ चुकी है। वे मोबाइल पर अपनी आभासी दुनिया बना चुके हैं और वास्तविक जीवन से दूर होते जा रहे हैं।

कोरोना काल से आभासी चुनावी सभा, पढ़ाई, मीटिंग आदि का दौर शुरू हो गया है। अब आभासी स्कूल और कालेज भी खुल रहे हैं। आज लोगों के सोशल मीडिया पर हजारों मित्र होते हैं, लेकिन जब वास्तविक जीवन में मित्रों की आवश्यकता होती है, तो कोई भी साथ खड़ा नहीं होता है। आज आभासी दुनिया की बढ़ती दखलंदाजी की वजह से सामाजिक संबंध पीछे छूटते जा रहे हैं। आभासी दुनिया में ही लोग रिश्ते-नाते स्थापित कर रहे हैं।

लोगों को इस बात का अंदाजा तक नहीं है कि अगर यह आभासी दुनिया में इस कदर व्यस्त या लीन होगा तो आने वाले वक्त में वह किस तरह की मनोवैज्ञानिक समस्याओं से घिर जा सकता है। प्रकृति को अनदेखा करना उसके समूचे व्यक्तित्व और शरीर को खोखला कर दे सकता है। इसके बाद का जीवन कैसा होगा, इसकी महज कल्पना ही की जा सकती है। यह स्थिति समाज के लिए उचित नहीं है। सामाजिक संबंधों को बनाए रखने के लिए लोगों को आभासी दुनिया से बाहर निकलना चाहिए।

सरकारों की उदासीनता की वजह से भ्रष्टाचार आज मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा हो चुका है। संस्कृति की शुरुआत से बल-प्रदर्शन जीवन का एक घटक रहा है। अलग-अलग सरकारों के दौर में भ्रष्टाचार, घोटाला, सरकार तोड़ना, सरकार गिराना, आयकर चोरी और आय से ज्यादा धन रखने का मामला विवादों में रहा है और इसके लिए सरकार की जो स्वतंत्र इकाइयां रही हैं, वे जांच कर अधीनस्थ न्यायालय को रिपोर्ट साझा करती रही हैं। मामला न्यायालय में चलता रहा है। इस विषय पर चर्चा चौपालों पर होती रही है। स्कूल-कालेज में भाषणों में इस पर बोला जाता रहा है।

यह जरूरी भी है। लेकिन मौजूदा सरकार में भी सब वही चल रहा है, जैसे आय से ज्यादा धन रखने का मामला हो या कहीं घोटाला और चोरी का मामला हो। विडंबना यह है कि आजकल समाज ईडी और सीबीआइ के छापे को मजाक और दुर्भावना से ग्रसित बताया जा रहा है। यह समझ से परे है कि क्या सरकार सच में ईडी और सीबीआइ को अपनी महत्त्वाकांक्षा के लिए उपयोग कर रही है या विपक्ष के द्वारा समाज में यह सिर्फ निराधार संदेश दिया जा रहा है। सत्य क्या है यह समझ से परे है। अगर सरकार अपने राजनीतिक फायदे के लिए इन संस्थाओं का इस्तेमाल कर रही है तो आने वाले दिनों लोकतंत्र का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।


Next Story