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अग्निपथ योजना की घोषणा के बाद शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि उसका इतना उग्र विरोध हो सकता है
अवधेश कुमार
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
अग्निपथ योजना की घोषणा के बाद शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि उसका इतना उग्र विरोध हो सकता है। भारत जैसे देश में निर्णय चाहे जितना सही हो उसका विरोध होगा या प्रश्न उठाया जाएगा इसकी संभावना तो हर समय बनी रहती है किंतु इस ढंग की हिंसा, तोड़फोड़, आगजनी आदि अप्रत्याशित है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसका ऐलान किया तो लगा कि आने वाले दिनों में इस लघुकालीन युवा भर्ती योजना या शॉर्ट टर्म यूथ रिक्रूटमेंट स्कीम का व्यापक स्वागत होगा। आखिर 17.5 वर्ष से 21 वर्ष के बीच के दसवीं से बारहवीं पास युवाओं को क्या चाहिए? उन्हें अग्निवीर बनकर सेना में जाने का अवसर मिलेगा। 4 वर्ष वे काम करेंगे। उस बीच उनकी योग्यता क्षमता में बढ़ोत्तरी होगी।
वहां से निकलने पर उन्हें 12वीं पास की डिग्री मिले इसकी भी व्यवस्था की जा रही है। 4 वर्ष उनको वेतन मिलेगा तथा निकलते समय 11 लाख 71 हजार रुपए लेकर बाहर आएंगे। बाहर आने के बाद वे अनेक क्षेत्र में नौकरियों के लिए पहले से ज्यादा योग्य हो जाएंगे। तो इसमें गलत क्या है?
कहा गया है कि 4 वर्ष बाद उनका भविष्य क्या होगा इसकी स्पष्ट नीति नहीं है। विरोधी दल इसे सरकार की चुनावी रणनीति का शगूफा बता रहे हैं। कई सैन्य विशेषज्ञों ने इसे किंडर गार्डन आर्मी कहा है। कुछ लोगों ने तो इसे भाजपा की फासिस्टवादी यानी सैन्यकरण योजना का ही अंग बता दिया है। इनका मानना है कि इससे तो समाज का सैनिकीकरण हो जाएगा। सरकार से प्रश्न पूछा गया है कि क्या यह अनिवार्य सैन्य शिक्षा की योना है?
अगर ऐसा है तो एनसीसी को क्यों नहीं सक्रिय किया गया? वैसे ये सारे प्रश्न अलग-अलग लोगों या समूहों के दिमाग में उठ रहे होंगे। एक आशंका यह भी है कि अगर अग्निवीर हर वर्ष सेना में जाएंगे तो फिर स्थायी जवानों की संख्या घटती चली जाएगी। कुछ लोग यह कह रहे हैं कि 4 साल बाद जब युवा अपनी सेवा पूरी कर निकलेंगे और इनको हथियार चलाने का प्रशिक्षण मिल चुका होगा तो ये अपराध की ओर जा सकते हैं। ऐसे और भी कई प्रश्न और शंकाएं उठाई जा रही हैं।
सरकार ने कहीं नहीं कहा है कि सेना में स्थायी भर्ती रोक दी जाएगी। सेना के तीनों अंगों थल सेना, नौसेना और वायुसेना ने अग्नि वीरों को अपना 25 प्रतिशत पद देने की घोषणा की है। यानी अग्निवीर के लोग सेना में 25 प्रतिशत स्थायी रूप से शामिल होंगे। तो शेष 75 प्रतिशत का क्या होगा? गृह मंत्रालय ने घोषणा कर दी है कि इन्हें केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और असम राइफल्स की भर्ती में प्राथमिकता मिलेगी।
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा और मध्य प्रदेश सरकार ने भी राज्य पुलिस में इन्हें प्राथमिकता से भर्ती करने का ऐलान किया है। इस तरह और भी घोषणाएं अलग-अलग राज्यों से हो सकती हैं। तो इनमें काफी संख्या में सेवा देकर बाहर निकले अग्निवीर जा सकते हैं। विरोध करने वाले जो भी कहें लेकिन पहले भी शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत सेना में गए लोगों को अलग-अलग जगह प्राथमिकता दी गई है।
उदाहरण के लिए चीन के साथ युद्ध के समय यानी वर्ष 1962 में शॉर्ट सर्विस कमीशन से सेना में गए लोगों में से अनेक को स्थायी किया गया। जिन्हें स्थायी नहीं किया गया उन्हें विकल्प दिया गया कि वे किस अंग में जाना चाहते हैं। उन्हें केंद्रीय सिविल सेवा में भी मौका मिला। देखा जाए तो रोजगार के लिए छटपटाते दसवीं से बारहवीं पास युवाओं के लिए अत्यंत ही अच्छी योजना है तथा सेना में सुधार की दृष्टि से अब तक का सबसे बड़ा कदम है।
नई पीढ़ी को राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत करने तथा उनमें सकारात्मक दृष्टि से संघर्ष करने, बहादुर बनने की प्रेरणा का इससे बेहतर कदम कुछ नहीं हो सकता है। देखा जाए तो यह भारत में सैन्य नियुक्ति की दृष्टि से सबसे बड़ा सुधार है। सेना के तीनों अंगों को पहले से काफी हद तक प्रशिक्षित लोग मिल जाएंगे।

Rani Sahu
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