सम्पादकीय

Violence on Prophet Remarks: कट्टरता के खिलाफ कमर कसने का समय, हिंदू भी मुस्लिमों की भांति भड़कने लगें तो देश के हर शहर में होगी रोज हिंसा

Gulabi Jagat
12 Jun 2022 11:21 AM GMT
Violence on Prophet Remarks: कट्टरता के खिलाफ कमर कसने का समय, हिंदू भी मुस्लिमों की भांति भड़कने लगें तो देश के हर शहर में होगी रोज हिंसा
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देश के विभिन्न भागों में सांप्रदायिक तनाव की बेलगाम घटनाएं चिंता का कारण हैं
ए. सूर्यप्रकाश। देश के विभिन्न भागों में सांप्रदायिक तनाव की बेलगाम घटनाएं चिंता का कारण हैं। ये घटनाएं एक ऐसे समय सामने आ रही हैं, जब हिंदुओं का एक बड़ा वर्ग इतिहास की गलतियों को सुधारने के लिए अदालतों और प्रशासनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से अपनी पहल आगे बढ़ा रहा है। इसका आरंभ वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर और मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान से लगी मस्जिद के मामले फिर से सतह पर आने से हुआ। हिंदू समाज इस्लामिक शासकों द्वारा अतीत में किए गए कदाचार को दुरुस्त करने के प्रयास में लगा है। हिंदू संगठन उन तमाम उपासना स्थलों पर दावे कर रहे हैं, जिन्हें मस्जिदों में बदल दिया गया। इन दावों को लेकर मीडिया में भी हंगामा हुआ। खासतौर से टीवी चैनलों पर अनर्गल बयानों का सिलसिला चल निकला। चैनलों पर चल रही इस जुबानी जंग को देख यही अंदाजा लगेगा कि देश में कानून का शासन तार-तार हो गया है। टीवी चैनलों पर चलने वाली इन बहसों में न केवल मर्यादी का बलि चढ़ गई, बल्कि सड़कों पर हिंसा भड़काने वाली बयानबाजी तक हुई। इस सबके बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने सही समय पर समाज को चेताने का काम किया।
संघ प्रमुख ने यह उचित ही कहा कि हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना? उनके कथन में निहित यह संदेश स्पष्ट है कि अब संघ मंदिर-मस्जिद मामले में किसी नए आंदोलन का पक्षधर नहीं है। ज्ञानवापी प्रकरण पर देश के विभिन्न इलाकों में बढ़ रहे सामाजिक तनाव के संदर्भ में उनके शब्दों पर गौर करना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी का एक इतिहास है, जिसे हम अब नहीं बदल सकते। न तो आज के मुस्लिम और न हिंदू इस ऐतिहासिक तथ्य के लिए जिम्मेदार हैं। भारत में आक्रांताओं के साथ ही इस्लाम ने दस्तक दी और हिंदुओं का मनोबल तोड़ने के लिए मंदिरों का विध्वंस किया गया। सच है कि यह सब इतिहास का हिस्सा है, लेकिन इस मुद्दे को तूल देकर क्यों हर मस्जिद में शिवलिंग खोजा जाए? मोहन भागवत ने यह भी कहा कि लोगों को हर दिन एक नए मुद्दे को नहीं उछालना चाहिए। उनका यह कहना भी उल्लेखनीय है कि जो लोग अदालत का रुख करते हैं, उन्हें अवश्य ही उसके निर्णय को भी स्वीकार करना चाहिए। संविधान और न्यायिक तंत्र पवित्र हैं, जिनका सम्मान हर हाल में किया जाना चाहिए।
इंटरनेट मीडिया और टीवी चैनलों पर होने वाली बहसों में जिस प्रकार की भद्दी, अश्लील एवं ओछी भाषा एवं भाव-भंगिमाओं का प्रदर्शन हो रहा है, उससे यही लगता है कि ऐसा करने वाले शायद भारतीय दंड संहिता यानी आइपीसी की धारा 295 के प्रविधानों या ऐसे ही उन अन्य कानूनों से परिचित नहीं हैं, जो आपत्तिजनक बयानों के मामले में कड़ी कार्रवाई निर्धारित करते हैं। ऐसे मामलों में तीन साल तक की सजा और हर्जाना या दोनों ही भुगतने पड़ सकते हैं। टेलीविजन पर होने वाली बहसें बेलगाम होकर सांप्रदायिक स्थिति को बिगाड़ने में अहम भूमिका निभा रही हैं। यदि इन बहसों में मर्यादा रेखा लांघने वालों पर आइपीसी की इस धारा का उपयोग नहीं किया गया तो स्थिति इतनी बिगड़ सकती है कि उस पर नियंत्रण करना मुश्किल हो जाए।
मोहन भागवत के विवेकसम्मत सुझाव पर अमल करते हुए भाजपा ने कदम भी उठाए हैं। इसी कड़ी में पार्टी ने अपनी एक प्रवक्ता पर कार्रवाई करते हुए उन्हें निलंबित कर दिया। दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज की है। उन्होंने माफी मांगने के साथ अपनी सफाई में यह भी कहा कि टीवी चैनल पर हो रही बहस में भगवान शिव को लगातार अपमानित करने से उनका धैर्य जवाब दे गया और उन्होंने आवेश में वह बात कह दी, जिस पर हंगामा खड़ा कर दिया गया। उनकी मानें तो उन्होंने जो कहा वह हदीस का हिस्सा है और मुस्लिम समाज उससे अवगत भी है। प्रतीत होता है कि उबाल उस टिप्पणी की विषयवस्तु को लेकर नहीं, बल्कि उस लहजे को लेकर है, जिसमें वह बात कही गई। जो भी हो, इसका निर्धारण तो अदालत ही करेगी। इसीलिए कानून एवं व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों के लिए यह आवश्यक है कि वे पूरी फुटेज देखकर यह पड़ताल करें कि किसने आइपीसी के प्रविधानों का उल्लंघन कर धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाली बयानबाजी की। भाजपा ने अपने एक अन्य प्रवक्ता को भी उनके विवादित ट्वीट के लिए निष्कासित किया है। इस प्रवक्ता के खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज की गई है।
कानून एवं व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों को सजगता दिखाना इसलिए और जरूरी है, क्योंकि टीवी चैनलों पर आने वाले मेहमान हिंदुत्व को लेकर धुआंधार अनर्गल प्रलाप में लगे हुए हैं। टीवी चैनलों की बहसों में हिंदू देवी-देवताओं को लेकर जिस प्रकार की ओछी एवं अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा, उस पर अगर हिंदू भी मुस्लिमों की भांति भड़कने लगें तब देश के हर शहर में रोज हिंसा होगी। ट्विटर, फेसबुक और वाट्सएप के इस दौर में भारत में जिस तरह के नए लोकतंत्र का उभार हो रहा है, उसमें मुसलमानों को धीरज रखने और सहिष्णु होने का अभ्यस्त होने की आवश्यकता है। जब उनके मुल्ला और कथित प्रवक्ता हिंदुओं को लेकर सार्वजनिक रूप से गैर-जिम्मेदाराना बयान देने के साथ, मौत की धमकी देते, जगह-जगह हिंसा भड़काते या जुमे की नमाज के बाद सड़कों पर लामबंद होने की कवायद करते दिखते हों तो उन्हें अति-संवेदनशील होने का कोई अधिकार नहीं रह जाता। यदि हम देश के पंथनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक ढांचे को सुरक्षित रखना चाहते हैं तो इस प्रकार की हिंसक गतिविधियों से कड़ाई से निपटना होगा। इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक मिसाल कायम की है। योगी सरकार कानपुर में हिंसा भड़काने वालों के बैंक खाते खंगालने से लेकर उनकी संपत्तियों पर बुलडोजर चलाकर कड़ा संदेश दे रही है। जब भाजपा ने अपने प्रवक्ताओं पर कार्रवाई कर अपनी ओर से पहल कर दी है, तब पूरा दारोमदार आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड और ऐसे ही अन्य मुस्लिम संगठनों पर है कि वे इस कार्रवाई और संघ प्रमुख मोहन भागवत के कथन के मर्म को समझें। यदि वे स्वतंत्रता के बाद से देश में कायम पंथनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक परंपराओं का सम्मान करते हैं और सामाजिक सौहार्द की दिशा में योगदान देना चाहते हैं तो उन्हें भी अपने पाले में खड़े कट्टरपंथी तत्वों पर लगाम कसनी होगी।

(लेखक लोकतांत्रिक विषयों के विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
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