सम्पादकीय

Violence on Prophet Remarks: भावनाएं आहत होने की आड़ में पथराव, आगजनी और तोड़फोड़, कानून के शासन को खुली चुनौती

Neha Dani
12 Jun 2022 5:14 AM GMT
Violence on Prophet Remarks: भावनाएं आहत होने की आड़ में पथराव, आगजनी और तोड़फोड़, कानून के शासन को खुली चुनौती
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असहमति दर्ज करने के बहाने उत्पात मचाना-आतंक पैदा करना अलग बात।

शुक्रवार को देश के तमाम शहरों में हिंसा का जैसा नंगा नाच देखने को मिला, वह कानून के शासन को दी जानी वाली खुली चुनौती के अलावा और कुछ नहीं। जिन तत्वों ने अपनी भावनाएं आहत होने की आड़ में सड़कों पर उतरकर पथराव, आगजनी और तोड़फोड़ के जरिये देश में दहशत पैदा की, उनका दुस्साहस कितना बढ़ा हुआ है, इसका पता कुछ शहरों और खासकर बंगाल के कई स्थानों पर दूसरे दिन भी हिंसक घटनाओं को अंजाम दिए जाने से पता चलता है। नि:संदेह कानून एवं व्यवस्था राज्यों का विषय है, लेकिन बीते दो दिन की घटनाओं ने आंतरिक सुरक्षा के समक्ष गंभीर किस्म के नए खतरे पैदा करने के साथ जिस तरह देश की छवि को भी प्रभावित किया है, उसे देखते हुए केंद्र सरकार को भी सजगता और सख्ती का परिचय देना होगा।

इसमें संदेह नहीं कि बीते दो दिनों की घटनाएं और उसके पहले कानपुर में जो कुछ हुआ, उससे यही पता चलता है कि हिंसा के इस खौफनाक दौर के पीछे कोई सुनियोजित षड्यंत्र है, लेकिन बात तब बनेगी जब इसके लिए जिम्मेदार तत्वों को एक तय अवधि में कठोर दंड का भागीदार बनाया जाएगा। इसके लिए आवश्यक हो तो केंद्र को उन राज्यों को कठोर संदेश देना चाहिए, जो उपद्रवियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के बजाय राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं। इस सस्ती राजनीति से कुल मिलाकर अराजक तत्वों का मनोबल ही बढ़ रहा है।
आखिर अन्य राज्य सरकारें अराजक तत्वों के खिलाफ वैसी ही सख्ती का परिचय क्यों नहीं दे पा रही हैं, जैसी उत्तर प्रदेश सरकार दे रही है? अपनी हरकतों से सामाजिक सद्भाव को छिन्न-भिन्न करने वाले हिंसक तत्वों के प्रति नरमी बरतना एक प्रकार से कानून एवं व्यवस्था को जानबूझकर खतरे में डालने वाला कृत्य है। शुक्रवार को देश के विभिन्न हिस्सों में जो कुछ हुआ, वह कहीं न कहीं उस अराजकता की अनदेखी का भी नतीजा है, जो पहले नागरिकता संशोधन कानून और फिर कृषि कानूनों के विरोध के नाम पर की गई।
यह खेद की बात है कि उस अराजकता के सामने शासन-प्रशासन के साथ-साथ न्यायपालिका ने भी ढुलमुल रवैया अपनाया। इसी कारण जहां लाखों लोगों की नाक में दम करने वाला शाहीन बाग का कुख्यात धरना करीब तीन महीने तक जारी रहा, वहीं किसान हित के बहाने लगभग एक साल तक सड़कों पर कब्जा करके रखा गया। यदि यह सब नहीं होने दिया गया होता तो शायद गत दिनों जो कुछ देखने को मिला, वह नहीं मिलता। किसी मामले में पुलिस-प्रशासन या फिर सरकार की कार्रवाई से असहमत होना अलग बात है और असहमति दर्ज करने के बहाने उत्पात मचाना-आतंक पैदा करना अलग बात।

सोर्स: जागरण

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