सम्पादकीय

कुंठा की हिंसा

Subhi
2 Sep 2022 4:30 AM GMT
कुंठा की हिंसा
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दिल्ली के संगम विहार इलाके में एकतरफा प्रेम के नाम पर एक छात्रा को स्कूल से लौटते समय गोली मारने की पिछले हफ्ते हुई घटना अब सामने आई है। गनीमत बस यह रही कि गोली लगने के बावजूद छात्रा की जान किसी तरह बच गई।

Written by जनसत्ता; दिल्ली के संगम विहार इलाके में एकतरफा प्रेम के नाम पर एक छात्रा को स्कूल से लौटते समय गोली मारने की पिछले हफ्ते हुई घटना अब सामने आई है। गनीमत बस यह रही कि गोली लगने के बावजूद छात्रा की जान किसी तरह बच गई। हमला करने वाले मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है। उसके दो अन्य साथियों को पहले ही गिरफ्तार कर लिया गया था। दिल्ली की यह घटना तब सामने आई है, जब झारखंड के दुमका में भी प्रेम के नाम पर एक युवती को जिंदा जला डालने की खबर अब भी चर्चा में है और आम लोगों के बीच इसे लेकर भारी रोष है।

पिछले कुछ दिनों में सुर्खियों में आए ये मामले दरअसल इस तरह की घटनाओं की महज अगली कड़ियां हैं, जिसमें कथित तौर पर एकतरफा प्रेम और उसकी नाकामी से कुंठित होकर हिंसक हुए किसी युवक ने लड़की पर किसी हथियार से हमला कर दिया, तेजाब या पेट्रोल डाल कर जिंदा जला दिया या फिर सरेआम चाकू से गोद कर मार डाला। इनमें से कुछ घटनाएं अलग-अलग समुदायों से संबंधित होने या किसी अन्य कारण से व्यापक चर्चा का विषय बनती हैं, लेकिन उस पर होने वाली राजनीति कई बार ऐसे मामलों की गंभीरता को कम कर देती हैं।

अक्सर सामने आने वाले ऐसे वाकये अब एक प्रवृत्ति के रूप में पलने लगे हैं और यही वजह है कि इस मसले ने लोगों को गंभीरता से सोचने पर मजबूर कर दिया है। यह कैसा समाज बन रहा है, जिसमें किसी युवती का प्रेम पाने में नाकाम युवक हताश होकर हिंसा या हमले में इसका हल खोजता है और इस तरह अपनी बर्बादी का भी कारण बनता है। हो सकता है कि पुलिस हर वक्त हर जगह मौजूद नहीं रह पाए, लेकिन क्या यह प्राथमिक तौर पर पुलिस और प्रशासन की ही व्यवस्थागत नाकामी नहीं है कि ऐसे अपराध को अंजाम देने वाले के भीतर कानून का खौफ काम नहीं करता?

अगर एकतरफा प्रेम के नाम पर हिंसा करने वाले युवकों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई के उदाहरण रखे जाते तो संभव है कि ऐसे अपराध करने से पहले किसी को सोचना पड़ता। एक बड़ी समस्या यह है कि अक्सर एकतरफा प्रेम में नाकामी के बहाने हत्या या जानलेवा हमले की घटनाएं सामने आती हैं, लेकिन जिन मामलों में धार्मिक कोण खोज लिया जाता है, उन पर चर्चा होती है और बाकी को लेकर लोग बहुत ज्यादा नहीं सोचते। जबकि यह एक गंभीर सामाजिक समस्या बनती जा रही है, जिसमें प्रेम जैसे उदात्त मूल्य में भले ही नतीजे के तौर पर, लेकिन हिंसा और नफरत को एक आम प्रतिक्रिया के तौर पर सहज माना जाने लगा है।

अगर किसी व्यक्ति के भीतर प्रेम अपने वास्तविक मूल्यों और उसकी भावनाओं के साथ होता है तो वह उसकी संवेदना का विस्तार करता है, त्याग को प्रेम का हिस्सा मानने की सलाहियत देता है। लेकिन यह आपसी बर्ताव और रिश्तों को लेकर समाज में कायम कब्जे और एकाधिकार की धारणाओं और व्याख्याओं से जुड़ी समस्या है कि कोई युवक प्रेम की संवेदना को इस कदर कम करके आंकता है कि उसके नाम पर उसे ही मार डालता है, जिससे वह प्यार करने का दावा करता है। यह सामाजिक विकास में एक दोष है, जिसका विस्तार प्रशासनिक विफलता की वजह से होता है। फिर इस पर होने वाली राजनीति इस मसले की गंभीरता को कम कर देती है। जरूरी यह है कि ऐसी घटनाओं पर लोग, समाज और सत्ता संवेदनशील होकर विचार करें और एकतरफा प्रेम के नाम पर हिंसा को एक प्रवृत्ति बनने से रोकें। वरना इंसानी सभ्यता के सबसे सुंदर मूल्य के रूप में प्रेम एक डर का भी कारण बनने लगेगा।


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