सम्पादकीय

हताशा में हिंसा

Subhi
11 Aug 2021 2:57 AM GMT
हताशा में हिंसा
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कश्मीर घाटी में दहशतगर्दों की हताशा लगातार बढ़ रही है। कुलगाम के एक सरपंच और उनकी पत्नी की हत्या उनकी हताशा का एक और उदाहरण है।

कश्मीर घाटी में दहशतगर्दों की हताशा लगातार बढ़ रही है। कुलगाम के एक सरपंच और उनकी पत्नी की हत्या उनकी हताशा का एक और उदाहरण है। पिछले कुछ समय में वे कश्मीर पुलिस में भर्ती हुए कई युवाओं की हत्या कर चुके हैं। कुछ दिनों पहले पुलिस में विशेष अधिकारी के रूप में काम कर रहे एक व्यक्ति और उसकी पत्नी को भी इसी तरह उसके घर में घुस कर मार डाला था। ताजा घटना में मारे गए सरपंच का संबंध भारतीय जनता पार्टी से था। अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनसे दहशतगर्दों की क्या खुन्नस रही होगी। हालांकि आतंकी शुरू से अपने खिलाफ काम करने वालों को निशाना बनाते रहे हैं। खासकर सत्ता पक्ष के लोगों और सुरक्षाबलों को। इस तरह वे सरकार को चुनौती पेश करते रहे हैं। मगर अब ज्यादातर हमले वे हताशा में कर रहे हैं। पिछले कुछ सालों में सुरक्षाबलों ने सघन तलाशी अभियान चला कर ज्यादातर आतंकी ठिकाने खत्म कर दिए हैं। उन्हें बाहर से मिलने वाली वित्तीय मदद रुक गई है। जबसे राज्य का विशेष दर्जा खत्म करके उसे केंद्र शासित प्रदेशों में विभक्त कर दिया गया है, उनकी मुश्किलें और बढ़ गई हैं। स्थानीय लोगों का भी उन्हें पहले जैसा सहयोग नहीं मिल पा रहा। इसलिए उनकी खीज बढ़ती जा रही है।

यह महज संयोग नहीं कि जिस दिन आतंकियों ने सरपंच और उनकी पत्नी की हत्या की, उस दिन राष्ट्रीय जांच एजेंसी जमात-ए-इस्लामी के ठिकानों पर छापेमारी कर रही थी। इन संस्थाओं पर आरोप है कि उनके जरिए आतंकियों को वित्तीय मदद पहुंचाई जाती है। आतंकियों को सरपंच से पहले भी परेशानी रही होगी, पर जब यह छापेमारी शुरू हुई तो उसकी प्रतिक्रिया में उन्हें आसान निशाना समझ कर गोली मार दी। पिछले कुछ सालों से दहशतगर्द पोस्टर चिपका कर गांव वालों को धमकाते रहे हैं कि जो भी उनके खिलाफ जाएगा, पुलिस या सुरक्षाबलों की मदद करने की कोशिश करेगा, उसका अंजाम अच्छा नहीं होगा। ऐसे कई लोगों को वे मौत के घाट उतार चुके हैं, जिन्होंने उनके फरमान की नाफरमानी की। ऐसे ही कुछ साल पहले उन्होंने हिदायत दी थी कि कोई भी व्यक्ति अपने बच्चों को कश्मीर पुलिस में भर्ती होने को न भेजे। मगर बेरोजगारी की मार झेल रहे कश्मीरी युवकों ने उनके इस फरमान को दरकिनार कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि अब तक वे ऐसे कई युवकों को उनके घर में घुस कर मार चुके हैं। उनकी वही हताशा सरपंच पर भी फूटी।
दरअसल, घाटी में माहौल अब काफी कुछ बदल चुका है। राज्य का विशेष दर्जा हटने के बाद सियासी उकसावे के चलते जरूर कुछ लोगों में नाराजगी थी, मगर अब वह काफी हद तक पिघल चुकी है। वहां संसाधनों की कमी नहीं है, मगर अलगाववादी आंदोलनों के चलते लंबे समय से कश्मीर देश की मुख्यधारा से कटा रहा है, इसलिए वहां रोजगार के नए अवसर पैदा नहीं हो पाए। वहां के युवा कुल मिला कर सरकारी नौकरियों या फिर पर्यटन से जुड़े व्यावसायों में जगह तलाशते रहते हैं। स्थानीय लोग भी इस बात को अच्छी तरह समझ गए हैं कि तरक्की के रास्ते ही उनके बच्चों का भविष्य बेहतर हो सकता है। उन्होंने अलगाववादी ताकतों को समर्थन देना लगभग बंद कर दिया है। युवा भी अब पहले की तरह उनके बरगलाने में नहीं आ रहे। ऐसे में दहशतगर्द बची-खुची ताकत से का


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