सम्पादकीय

Violence In Bengal : बंगाल में लिखी जा रही हिंसा से सनी नई सियासत के पीछे का क्या है सच

Gulabi
12 May 2021 6:39 AM GMT
Violence In Bengal : बंगाल में लिखी जा रही हिंसा से सनी नई सियासत के पीछे का क्या है सच
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बंगाल (Bengal) में चुनाव (Election) के बाद भी राजनीतिक टकराव चरम पर होगा ऐसा किसी ने शायद ही सोचा होगा

पंकज कुमार। बंगाल (Bengal) में चुनाव (Election) के बाद भी राजनीतिक टकराव चरम पर होगा ऐसा किसी ने शायद ही सोचा होगा. राज्य में विरोधी दलों के नवनिर्वाचित विधायकों द्वारा केन्द्र से सुरक्षा की मांग करना और केन्द्र सरकार (Central Government) द्वारा इसे मान लेना किसी अभूतपूर्व घटना से कम नहीं है. टीएमसी (TMC) प्रचंड बहुमत से जीती है और बीजेपी (BJP) चुनाव हारी है, इससे कौन इन्कार कर सकता है. लेकिन चुनाव बाद भी केन्द्र और राज्य सरकार के बीच हर मोर्चे पर टकराव, राजनीतिक गतिरोध की अजूबी पटकथा बयां करता है.


ममता बंगाल की लोकप्रिय नेता हैं ये चुनाव बाद साबित हो गया है. जनता जनार्दन ने उन्हें तख़्तोताज सौंपा है, इसका प्रमाण उनको मिला प्रचंड बहुमत है. लेकिन लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका को ममता सिरे से खारिज नहीं कर सकती हैं. आखिरकार चुनाव परिणाम बाद राजनीतिक हत्याओं की जिम्मेदारी से राज्य सरकार कैसे बच सकती है. इसके अलावा 10 अप्रैल को सीताकुलची में हुई घटना के लिए सीआईएसएफ के पांच अफ्सरों को समन भेजना टकराव और बदले की राजनीति की नई बानगी है.

राज्यपाल ने लगाए गंभीर आरोप
राज्य के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे राज्यपाल जगदीप धनखड़ के आरोप भी कम चिंताजनक नहीं हैं. लॉ एंड ऑर्डर मसले पर राज्यपाल द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब चीफ सिक्रेट्री और डीजीपी लिखित में देने से आनाकानी करते हैं और बंगाल के राज्यपाल हिंसाग्रस्त इलाकों में दौरा करने के लिए जब हेलीकॉप्टर की मांग करते हैं तो उन्हें पायलट नहीं होने की बात कह रोजान ना नुकर की जाती है. ज़ाहिर है ऐसे आरोप खुद राज्य के राज्यपाल सरकार पर खुलेआम लगा रहे हैं.

चुनाव से पहले टकराव की स्थितियां थी तो माना जा रहा था कि ये लड़ाई राजनीतिक है और चुनाव के बाद स्थितियां सामान्य हो जाएंगी. लेकिन राज्य में हो रहे ताजा घटनाक्रम केन्द्र और राज्य के बीच बढ़ रहे टकराव की दास्तां बखूबी बयां कर रहे हैं.

बंगाल में डर के माहौल की हकीकत क्या है?
विपक्षी पार्टी के नवनिर्वाचित विधायकों ने सुरक्षा के लिए केन्द्र सरकार के सामने हाथ जोड़कर सुरक्षा की गुहार लगाई है. राज्य के चुने हुए प्रतिनिधियों के सुरक्षा की गारंटी केन्द्र सरकार तय कर रही है. इतना ही नहीं केन्द्र सरकार के वर्तमान केन्द्रीय मंत्री जब बंगाल के दौरे पर गए तो उनपर हमले किए गए और उन्होंने इसके लिए सीधे तौर पर सत्ताधारी दल को जिम्मेदार ठहराया. ज़ाहिर है राज्य में केन्द्रीय मंत्री और विधायक असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और राज्य की पुलिस पर उनका तनिक भी भरोसा नहीं रह गया है.

तीन मई के बाद बीजेपी के अध्यक्ष जे पी नड्डा ने बंगाल में हुई घटना की तुलना 1946 में हुए दंगे से किया जिसमें 4 हजार लोग मारे गए थे और लाखों बेघर हुए थे. राज्य सरकार और केन्द्र सरकार के बीच टकराव का आलम यह है कि बंगाल विधानसभा की सुरक्षा में केन्द्रीय बलों को नहीं लगाया जाएगा और ये फैसला खुद वहां की नवर्निवाचित सरकार ने लिया है.

शुभेन्दु अधिकारी ने खड़े किए सवाल
फिलहाल सत्ता के संग्राम में शीर्ष पदों पर आसीन लोग टकराते तो भी राजकाज को लेकर सवाल ज्यादा मुखर नहीं होते. लेकिन बंगाल में बिरोधी दल के कार्यकर्ताओं की हत्या और डर के मारे राज्य को छोड़कर बाहर भागने की घटनाएं लोकतंत्र के बुनियाद को सीधे तौर पर प्रभावित करने लगी हैं. बंगाल में विपक्ष के नेता शुभेन्दु अधिकारी का बयान इस मायने में गंभीर सवाल खड़े करता है, कि बंगाल के अलावा चार राज्यों में चुनाव हुए लेकिन कहीं भी विपक्षी नेताओं ने हत्या, लूटपाट और दफ्तर में तोड़फोड़ की शिकायत नहीं की है.

शुभेन्दु अधिकारी ने विशेष तौर पर असम और पुडुचेरी का जिक्र करते हुए पूछा है कि इन दोनों राज्यों में एनडीए की सरकार बनी है, लेकिन जीत के बाद विरोधियों का दमन करने की कोई भी एक घटना सामने नहीं आई है.

हिंसा की राजनीति के लिए जिम्मेदार कौन?
राज्य में 7 मई को रविन्द्र नाथ टैगोर जयंती हर साल की भांति इस साल भी मनाया गया. टैगोर जैसी बड़ी शख्सियत इस बात के पुरजोर पक्षधर थे कि जहां मनुष्य निर्भीक रहता है वहां उसका सर गर्व से ऊंचा रहता है. लेकिन राज्य में डर और भय का व्याप्त माहौल टैगोर द्वारा कही हुई बातों के ठीक उलट की कहानी को बयां करता है. राज्य में चुनाव के बाद 16 लोगों की हत्याएं हुई हों या फिर 25 की.. राज्य सरकार सीधे तौर पर सवालों के घेरे में है.

बंगाल में हिंसा की राजनीति का पुराना इतिहास
सत्तर के दशक में जब लेफ्ट सत्ता पर काबिज हुई तो हिंसा का दौर राज्य में शुरू हो चुका था. कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं को बचाने के लिए खास ठोस पहल करती नजर नहीं आ रही थी. तत्कालीन कांग्रेस के दिग्गज नेता सिद्धार्थ शंकर रे केन्द्र बुला लिए गए थे और कांग्रेस धीरे-धीरे लेफ्ट के आगे घुटने टेकने लगी थी. कांग्रेस के इसी रवैये से खफा ममता बनर्जी ने कांग्रेस का साथ छोड़कर टीएमसी पार्टी का गठन किया. ममता बनर्जी खुद राज्य में हिंसा की राजनीति की शिकार कई दफा हुई हैं और विधानसभा से लेकर संसद तक उन्होंने हिंसा के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई है. बंगाल विधानसभा में बुद्धदेव भट्टाचार्य ने साल 2006 ने एक रिपोर्ट पेश करते हुए कहा था कि राज्य में 26 हजार से ज्यादा राजनीतिक हत्याएं हो चुकी हैं.

बंगाल में रक्तरंजित राजनीति का इतिहास पुराना है, लेकिन उस समय एक तरफ लेफ्ट तो दूसरी तरफ कांग्रेस या ममता बनर्जी होती थीं. इस बार ममता राज्य में सत्ता पर काबिज हैं और उनका टकराव सीधा बीजेपी से है. वैसे जो खटास अभी बीजेपी और टीएमसी के बीच है, वही साल 2000 से लेकर 2011 तक टीएमसी और लेफ्ट के बीच थी और ममता लेफ्ट को सत्ता से बेदखल कर सत्ता पर काबिज हुईं.


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