सम्पादकीय

हिंसा से नहीं निकल सकता किसान आंदोलन का हल, सरकार को पूरी संजीदगी, ईमानदारी और निष्पक्षता से इस मामले में कार्रवाई करनी चाहिए

Rani Sahu
6 Oct 2021 8:35 AM GMT
हिंसा से नहीं निकल सकता किसान आंदोलन का हल, सरकार को पूरी संजीदगी, ईमानदारी और निष्पक्षता से इस मामले में कार्रवाई करनी चाहिए
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सरकार को पूरी संजीदगी, ईमानदारी और निष्पक्षता से इस मामले में कार्रवाई करनी चाहिए

ओम गौड़ उत्तरप्रदेश के लखीमपुर खीरी में जिस तरह किसान आंदोलन हिंसा में तब्दील हुआ और उस पर जो राजनीति हुई, उसने देश को शर्मसार कर दिया। कैसे एक दिन पहले केंद्रीय गृृृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा ने किसानों के आंदोलन को कुचलने के लिए धमकाने वाली भाषा का इस्तेमाल किया और दूृसरे ही दिन आंदोलित किसानों पर हिंसक हमला हो गया। दोनों तरफ से हुई हिंसक झड़प में 9 लोगों को जान गंवानी पड़ी। किसानों पर हुई यह कार्रवाई प्रदेश की राजनीतिक सेहत के लिए उपयुक्त नहीं है।

उत्तरप्रदेश में चुनाव सिर पर हैं। सभी राजनीतिक दलाें के दिमाग पर चुनावी भूत सवार है। ऐसे में सभी पार्टियों ने इस हिंसा में अपने-अपने हाथ सेंकने शुरू कर दिए हैं। अभिव्यक्ति की आजादी सभी दलों को है। लोकतंत्र में पक्ष-विपक्ष का अपना एक अलग स्थान है। सरकार ने इस मामले की गंभीरता को समझने का प्रयास किया होता तो इस हिंसक घटना को टाला जा सकता था।
इस पूरे घटनाक्रम में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा का नाम उभरकर सामने आया कि उसके इशारे पर ही किसानों पर जीप चढ़ाई गई। इसकी सच्चाई आज नहीं तो कल सामने आ ही जाएगी। सरकार ने आखिरकार मृतक किसानों के परिवारों को 45-45 लाख रुपए और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की शर्त पर मामला फिलहाल शांत तो कर दिया है, लेकिन सवाल उठता है कि किसानों की निर्मम हत्या करवाने के पीछे किसका दिमाग था? वह है कौन? जिसने एक साधारण किसान आंदोलन को हिंसक उपद्रव में बदल दिया।
इस उपद्रव के बीसों वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जिसमें कथित तौर पर दावा किया जा रहा है कि मंत्री का बेटा जीप से उतरकर भाग रहा है। सरकार को सबसे पहले इस घटना की तह में जाकर उस शख्स को गिरफ्तार करना चाहिए, जो इसका जिम्मेदार है। चाहे वह कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो। नहीं तो जनता का सरकार और व्यवस्था पर से भरोसा उठ जाएगा। सरकार को सोचना चाहिए कि यह वही शख्स है, जसने विपक्ष को घर बैठे राजनीति चमकाने का मौका और सरकार के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा दिया है।
अब किसान आंदोलन का कोई हल तो निकालना ही होगा। 11 माह पहले शुरू हुआ यह आंदोलन पहुंचते-पहुंचते अब लखीमपुर खीरी तक आ गया है। आगे इस आंदोलन का रुख और स्वरूप इस बात पर निर्भर है कि सरकार किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए इस हिंसक उपद्रव की कड़ियों को जोड़कर किस तरह मामले को हल करती है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार को पूरी संजीदगी, ईमानदारी और निष्पक्षता से इस मामले में कार्रवाई करनी चाहिए। नहीं तो यह मामला सुलझने के बजाय उलझता ही जाएगा।


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