सम्पादकीय

विजय दिवस : इस तरह देखा बांग्लादेश को बनते हुए

Neha Dani
16 Dec 2021 1:45 AM GMT
विजय दिवस : इस तरह देखा बांग्लादेश को बनते हुए
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ढाका में ही गोधूलि का समय हो गया था और दिल्ली पहुंचते ही रात हो चुकी थी।

पाकिस्तानी सेना ने 25 मार्च, 1971 की रात को पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के नागरिकों पर लगातार दमन की कार्रवाई शुरू की थी। अकेले ढाका में हजारों लोगों को गोली मार दी गई, उन पर बमबारी की गई और जला दिया गया। ढाका अब बांग्लादेश की राजधानी है। मानव क्रूरता के स्याह इतिहास में पूर्वी पाकिस्तान का नरसंहार शायद बोस्निया और रवांडा के नरसंहार की तुलना में ज्यादा भयावह है।

जुलाई, 1971 तक इस नरसंहार के कारण वहां से भागने वाले 65 लाख शरणार्थियों की भीड़ पहुंचने के कारण पड़ोसी देश भारत चिंतित हो उठा। उन शरणार्थियों में से 50 लाख से ज्यादा अकेले भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल में थे। विशुद्ध मानवीय कारणों से भारत को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा। इस कष्टदायी मानवीय समस्या के लिए सैन्य अभियान ही एकमात्र प्रशंसनीय समाधान था।
इन पचास वर्षों में बांग्लादेश के साथ हमारे रिश्ते में धीरे-धीरे प्रगाढ़ता ही आई है। दोनों देशों की वायुसेना में बेहतर पेशेवर रिश्ता बना हुआ है। दोनों देशों की वायुसेना का एक जत्था पर्वतारोहण अभियान पर गया है। बांग्लादेश की सेना के कुछ जवान अब भी हमारे देश में प्रशिक्षण ले रहे हैं। राजनीतिक स्तर पर भी बांग्लादेश हमारे सामरिक रिश्तों की इज्जत करता है। जब चीन की ओर से बांग्लादेश को उनकी परियोजना में शामिल होने के लिए निमंत्रण मिला था, तो बांग्लादेश ने अनौपचारिक रूप से इस बारे में भारत से सलाह ली थी।
यही कारण है कि दक्षिण एशिया में हम और बांग्लादेश एक ही साथ चल रहे हैं। वहां का राजनीतिक नेतृत्व कट्टरपंथी धार्मिक समूह को रोकने का पूरा प्रयास करता है, जो कि हमारी विचारधारा के बिल्कुल अनुरूप है। भारत ने अप्रैल, 1971 से बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों के समूह 'मुक्ति वाहिनी' का समर्थन और पोषण करना शुरू किया, जो कि चार दिसंबर, 1971 को होने वाली सैन्य कार्रवाई की प्रस्तावना थी।
लेकिन इससे पहले पाकिस्तान ने तीन दिसंबर, 1971 को हमारे सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले किए और भारत के खिलाफ युद्ध की घोषणा की। 16 दिसंबर, 1971 तक चले इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना के करीब 92,000 जवानों ने अपने हथियार डाल दिए और भारतीय सुरक्षा बलों के सामने आत्म-समर्पण किया। इस तरह बांग्लादेश अस्तित्व में आया। बांग्लादेश की आजादी के 50 वर्ष पूरे होने पर आयोजित समारोह में भारतीय सशस्त्र बल के एक प्रतिनिधिमंडल को वहां जाने का मौका मिला है, जिसमें मुख्य रूप से 1971 के युद्ध के दिग्गज शामिल हैं।
यह युद्ध भारत के सशस्त्र बलों, थल सेना, नौसेना और वायु सेना के तीनों अंगों के बेहतर तालमेल का एक विशिष्ट प्रदर्शन था। भारतीय वायुसेना के एक पूर्व सदस्य के रूप में मैं दुश्मन की क्षमता को बेअसर करने के उद्देश्य से भारतीय वायुसेना द्वारा किए गए हवाई प्रयासों के कुछ आंकड़े पेश करना चाहता हूं। ईगल्स ओवर बांग्लादेश (संपादन- जगन मोहन और चोपड़ा) में उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, 14 दिनों के युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना द्वारा कुल 2,002 लड़ाकू मिशन शुरू किए गए थे, जिनमें से 1,229 मिशन पूर्वी पाकिस्तान में आगे बढ़ने के दौरान भारतीय सेना के समर्थन में थे, जबकि 368 उड़ानें काउंटर एयर ऑपरेशंस के लिए भरी गईं।
अमेरिका उस समय पाकिस्तान की हत्यारी हुकूमत के साथ गठजोड़ किए हुए था और अपने ही नागरिकों को खत्म करने वाली सैन्य तानाशाही की ओर से हस्तक्षेप करने वाला था। और यह अमेरिकी राज्य का प्रबंधन करने वाले प्रतिष्ठान के भीतर की बेचैनी और भय के बावजूद था। तत्कालीन 'पूर्वी पाकिस्तान' में अमेरिकी दूतावास द्वारा भेजे गए तथाकथित 'ब्लड टेलीग्राम' ने स्पष्ट रूप से इसकी पुष्टि की। तब निक्सन अमेरिकी राष्ट्रपति थे और अमेरिका शीतयुद्ध के सिंड्रोम से गहरे प्रभावित था, जिसका दृढ़ विश्वास था कि सोवियत रूस के रणनीतिक सहयोगी भारत पर भरोसा नहीं किया जा सकता है, जिसके साथ भारत ने अपने संरक्षण के लिए एक पारस्परिक हित संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। माना जाता है कि भारत के प्रति अमेरिका का यह ठंडा और शत्रुतापूर्ण रवैया 1991 में सोवियत संघ के विघटन तक रहा।
सौभाग्यशाली हूं कि मैं 1971 के युद्ध के दौरान भारतीय वायुसेना के नंबर 106 सामरिक टोही स्क्वाड्रन के चालक दल में से एक था, लेकिन युद्ध मेरे लिए थोड़ा आश्चर्य और शायद चुनौती के रूप में आया था। चार दिसंबर, 1971 को चालक दल की कमी के कारण, मैंने स्वेच्छा से एक बमबारी मिशन के तहत पश्चिमी पाकिस्तान के सरगोधा हवाई अड्डे पर मध्यरात्रि अभियान में लगभग 8,000 पाउंड बम गिराए। जब तक हमने सटीक रूप से बम गिराए, तब तक सब ठीक था, लेकिन बम वाले दरवाजे की खराबी के कारण हमें ईंधन की भारी कमी का सामना करना पड़ा। काफी देर तक अनिश्चित स्थिति रही और ईंधन नहीं होने के कारण हमने लैंडिंग रनवे पर एक इंजन खो दिया।
आठ दिसंबर, 1971 का हमारा फोटो मिशन चुनौतीपूर्ण था। जब हम गुवाहाटी में लॉन्चिंग हवाई क्षेत्र पहुंचे, तो ईंधन भरने के लिए समय नहीं बचा था, क्योंकि भारतीय नौसेना के साथ तालमेल बिठाने के लिए हमें दोपहर दो बजे तक कॉक्स बाजार में हमारे पहले लक्ष्य पर पहुंचना अनिवार्य था। फिर हम चटगांव बंदरगाह के लिए रवाना हुए, जहां हमें फोटो लेना था। हम जहाजों से निकलने वाले घने धुएं के बीच से चढ़ गए, जो शायद समय से थोड़ा पहले ही था। हमारा पहला काम चटगांव हवाई क्षेत्र को कवर करना था, फिर हम ढाका में तेजगांव हवाई क्षेत्र को कवर करने के लिए आगे बढ़ने के लिए नीचे उतरे।
13 दिसंबर, 1971 का फोटो मिशन वास्तव में साहसिक कार्य था। विमान के बैटरी वाले डिब्बे में लगी आग के कारण को ठीक करने में हमने बहुत समय गंवाया था। अंत में, जब हम ढाका परिसर को कवर कर रहे थे, तब हम सूर्य की पर्याप्त रोशनी का लाभ उठाने के लिए समय पर पहुंचने की कोशिश रहे थे। हमारे ऊपर बहुत दबाव था और हमें सीधे दिल्ली जाना था। ढाका में ही गोधूलि का समय हो गया था और दिल्ली पहुंचते ही रात हो चुकी थी।

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