सम्पादकीय

विजय दर्डा का ब्लॉगः क्या राहुल गांधी की यात्रा रंग लाएगी...?

Rani Sahu
12 Sep 2022 11:25 AM GMT
विजय दर्डा का ब्लॉगः क्या राहुल गांधी की यात्रा रंग लाएगी...?
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By लोकमत समाचार सम्पादकीय |
बारह राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से गुजरने वाली कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा शुरू हो चुकी है। राहुल गांधी पदयात्रा कर रहे हैं और करीब पांच महीने तक वे हर रोज निर्धारित दूरी तय करेंगे। यात्रा की कुल लंबाई है 3570 किलोमीटर। इतनी लंबी यात्रा कोई आसान काम नहीं है लेकिन राहुल गांधी ने कमान संभाली है तो निश्चय ही उनका उद्देश्य कांग्रेस में नई जान फूंकना है। इस वक्त सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या राहुल गांधी यात्रा को संजीवनी साबित कर पाएंगे?
वैसे तो अधिकृत तौर पर कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा कन्याकुमारी से शुरू हुई है लेकिन यात्रा शुरू होने से पहले राहुल गांधी ने श्रीपेरुम्बुदुर जाकर शहीद स्थल पर जाकर अपने पिता राजीव गांधी को प्रणाम किया इसलिए लोग यह भी मान रहे हैं कि यात्रा का वास्तविक शुरुआत स्थल श्रीपेरुम्बुदुर को ही माना जाना चाहिए। राजीव गांधी वो शख्सियत थे जिन्होंने इंदिराजी की शहादत के बाद देश की कमान संभाली और अगले लोकसभा चुनाव में संसद की 404 सीटें हासिल कीं। निश्चय ही इंदिराजी की हत्या के बाद वो सहानुभूति लहर थी लेकिन राजीव गांधी और कांग्रेस के प्रति लोगों का अगाध विश्वास भी था। आज कांग्रेस के समक्ष विश्वास का संकट है। जड़ें उखड़ रही हैं। ऐसे में राहुल गांधी की यात्रा से उम्मीदें स्वाभाविक हैं।
भारत जोड़ो यात्रा के मार्ग में तिरुअनंतपुरम, कोच्चि, मैसूर, बेल्लारी, रायचूर, नांदेड़, जलगांव, इंदौर, कोटा, दौसा, अलवर, बुलंदशहर, दिल्ली, अम्बाला, पठानकोट और जम्मू जैसे शहरों के अलावा हजारों कस्बे और गांव भी पड़ेंगे। यात्रा श्रीनगर में खत्म होगी। स्वाभाविक सी बात है कि जहां से भी यात्रा गुजरेगी, वहां कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार होगा। नई उम्मीद जगेगी। मैं हमेशा कहता रहा हूं कि कांग्रेस ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसकी जड़ें भारत के गांव-गांव तक फैली हुई हैं। उन जड़ों को सींचने की जरूरत है। बंजर जमीन में खाद-पानी की जरूरत है। पौधा लहलहाने की उम्मीद कभी छोड़नी नहीं चाहिए लेकिन यह सब आसान नहीं रह गया है। यह यात्रा कार्यकर्ताओं में जिस उत्साह और चेतना का संचार करेगी उसे ऊर्जा में परिवर्तित करने की जरूरत है। कार्यकर्ताओं के भीतर यह विश्वास भरने की जरूरत है कि पार्टी करवट ले रही है। कार्यकर्ताओं की बात अब सुनी जाएगी। कांग्रेस में चुनाव की सुगबुगाहट भी अच्छा संदेश है। उम्मीद करें कि जल्दी ही पार्टी को स्थायी अध्यक्ष मिल जाएगा। जब सेनापति को लेकर असमंजस की स्थिति होती है तो इसका प्रभाव पूरी सेना पर पड़ता है।
राहुल गांधी की यह यात्रा भले ही राजनीतिक हो लेकिन यह तो हर कोई महसूस कर रहा है कि इस वक्त भारत को जोड़ने की सबसे ज्यादा जरूरत है। हर ओर जो एक उद्वेग का वातावरण दिखता है, धर्म का चश्मा जिस तरह से गहरा होता जा रहा है। वह हमारे हिंदुस्तान के लिए ठीक नहीं है। अल्पसंख्यक समुदाय के एक व्यक्ति के मन में भी अपने अधिकारों को लेकर यदि कोई शंका उत्पन्न होती है तो उसका निवारण होना चाहिए। भारतीय संविधान ने हर किसी को एक जैसे अधिकार दिए हैं। कोई गरीब हो या फिर अमीर, संविधान सबको अपने विचारों और अपनी जरूरतों के हिसाब से जीने का हक देता है। किसी गरीब को कभी नहीं लगना चाहिए कि उसके साथ जाति, धर्म या गरीबी के कारण किसी तरह का भेदभाव हो रहा है।
मैं अपना एक दिलचस्प अनुभव आपको बताता हूं। जब एच.डी. देवेगौड़ा प्रधानमंत्री थे तब उनके साथ मैं जिम्बाब्वे की राजधानी हरारे गया था। भारतीयों की कुल संख्या वहां 3 हजार भी नहीं थी लेकिन मुझे पता चला कि वहां सरकार धूमधाम से दिवाली मनाती है ताकि किसी को कमतर होने का एहसास न हो। वहां का कृष्ण मंदिर देखकर मैं दंग रह गया! कहने का आशय यह है कि कोई भी नागरिक अपने धर्म के नजरिये से देश को नहीं देखे। माणिक शॉ हों, जनरल करियप्पा हों या फिर अब्दुल कलाम या उन जैसी दूसरी महान हस्तियों को क्या आप धर्म और जाति के चश्मे से देख सकते हैं? कदापि नहीं! सब भारतीय हैं। कोई हिंदू हो, कोई जैन हो, कोई बौद्ध हो, कोई सिख या पारसी या फिर मुस्लिम, हम सभी तिरंगे के नीचे हैं और ये तिरंगा ही हमारी जान है। तिरंगे से अलग कुछ भी नहीं।
तो चलिए, फिर आते हैं राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर! मूल मुद्दा यह है कि यह यात्रा कितनी फलीभूत होगी? देश को जोड़ने से पहले इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि कांग्रेस को जोड़ने का लक्ष्य कितना पूरा होगा? कार्यकर्ताओं को लगता है कि छत्रपों के कारण उनकी पूछपरख ही नहीं रह गई है। क्या एक-दूसरे को निपटाने की जो परिपाटी पार्टी में चल रही है उससे ये क्षत्रप तौबा करने को तैयार होंगे? राहुल गांधी जितनी मेहनत करने निकले हैं, क्या उनके साथ के लोग उसके लिए तैयार हैं? कार्यकर्ताओं के मन में बड़ा सवाल है कि क्या राहुल गांधी खुद बदलेंगे? क्या जिले और राज्य के नेताओं के लिए उनके दर्शन सुलभ होंगे? उनके नेतृत्व में लोकसभा के दो चुनाव कांग्रेस हार चुकी है। अब क्या राहुल खुद को 24 घंटे पार्टी के लिए झोंकेंगे? क्या आलोचना के स्वर सुनने की समझ पैदा होगी? मैं इस बात पर कोई ध्यान नहीं देता कि राहुल गांधी ने कौन सी टी-शर्ट पहन रखी है या आराम करने के लिए उनकी गाड़ी कितनी आलीशान है! सबकी रहती है! मूल सवाल है कि आप क्या संदेश दे रहे हैं? राहुल का संदेश भारत जोड़ो है लेकिन कार्यकर्ताओं के मन में सवाल और शंकाएं कम नहीं हैं। इसीलिए कुछ लोग मुहावरे की भाषा में कहने लगे हैं- कहीं आगे पाठ और पीछे सपाट न हो जाए...!
Rani Sahu

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