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ओडिशा के एक पिछड़े जिले के अत्यंत पिछड़े आदिवासी संताल समाज की द्रौपदी मुर्मू आज भारत के राष्ट्रपति के आसन पर विराजमान हो रही हैं
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
ओडिशा के एक पिछड़े जिले के अत्यंत पिछड़े आदिवासी संताल समाज की द्रौपदी मुर्मू आज भारत के राष्ट्रपति के आसन पर विराजमान हो रही हैं. द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति पद पर पहुंचना हमारे भारतीय लोकतंत्र की ताकत को दर्शाता है. यहां चाय बेचने वाला एक गरीब का बेटा प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंच सकता है तो समाज के अंतिम छोर से निकल कर एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति की कुर्सी पर पहुंच सकती है.
पिछली बार जब राष्ट्रपति पद के लिए रामनाथ कोविंद का नाम आया था तब भी लोग चौंक पड़े थे कि ये नाम कैसे आ गया? इस बार भी यही हुआ. किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक संताल महिला को भारतीय जनता पार्टी एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना देगी! ...लेकिन मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि मैं मुर्मू जी के जीवन संघर्ष, श्रेष्ठ विधायक के रूप में उनके कार्यों और झारखंड के राज्यपाल के रूप में उनके कामकाज को जान रहा था.
मुझे इसलिए भी आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि मैं मोदीजी की शैली को समझने की कोशिश करता रहता हूं. जो दूसरे लोग कल्पना भी नहीं कर सकते, वे उसे साकार कर देते हैं. मुर्मू को मैदान में उतार देना उनकी इसी दूरदर्शिता का परिणाम है. एक महिला, वह भी आदिवासी! विपक्ष के पास उनका कोई विकल्प नहीं था.
मैं लगातार यह कहता रहा हूं कि लोकतंत्र को शक्तिमान बनाए रखने के लिए विपक्ष का शक्तिशाली होना अत्यंत जरूरी है. इसमें कांग्रेस की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है. लेकिन मैं देख रहा हूं कि मोदीजी और अमित शाह की गिरफ्त से विपक्ष खुद को निकाल नहीं पा रहा है. हर बार विपक्ष बुरी तरह पिटता है. आखिर कारण क्या है? कारण स्पष्ट है कि विपक्ष के पास कोई सोच नहीं है, नियोजन नहीं है, दृष्टि का अभाव है.
द्रौपदी मुर्मू को मैदान में उतार कर मोदीजी ने विपक्ष को चुनाव के पहले ही धराशायी कर दिया. आदिवासी दलित, मुस्लिम, ओबीसी कांग्रेस के परंपरागत वोट रहे हैं. धीरे-धीरे सब खिसकते जा रहे हैं. विपक्ष तितर-बितर होता जा रहा है. दूसरी तरफ मोदीजी की भाजपा सबको जोड़ रही है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने खुद को वनवासियों के बीच स्थापित कर लिया है जबकि कांग्रेस उनसे दूर होती चली गई.
कितनी बड़ी वडंबना है कि विपक्ष राष्ट्रपति पद के लिए ऐसा उम्मीदवार नहीं ढूंढ़ पाया जो टक्कर दे सके. शरद पवार, फारूक अब्दुल्ला और गोपालकृष्ण गांधी ने भी मना कर दिया. यशवंत सिन्हा मेरे अच्छे मित्र हैं, हमेशा मुझे उनका प्यार भी मिलता रहा है. मगर यहां व्यक्ति की बात नहीं है. वे भारतीय समाज के संभ्रांत और कुलीन वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं जबकि मुर्मू इस देश के अंतिम छोर पर खड़े बड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं.
हालांकि चुनाव में उनका स्कोर अच्छा रहा है लेकिन विपक्ष के लिए चिंता की बात है कि उसके लोग टूटे. क्रॉस वोटिंग हुई. क्षेत्रीय दलों की बात छोड़ दीजिए लेकिन कांग्रेस के लोगों का टूटना ज्यादा चिंताजनक है. पहले महाराष्ट्र में टूटे थे, अब राष्ट्रपति के चुनाव में टूटे.
दरअसल मोदीजी के धोबी पछाड़ के आगे विपक्ष चारों खाने चित हो गया. राजनीति के शतरंज की बिसात पर उसके पास ढंग की कोई राजनीतिक चाल थी ही नहीं!
बात केवल इतनी सी नहीं है. मोदीजी ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति भवन पहुंचाकर लंबी चाल चली है. जाहिर सी बात है कि मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से आदिवासी समाज तो खुश है ही, सामान्य तबका भी बहुत खुश है. देश में 8.9 फीसदी वोटर अनुसूचित जनजाति के हैं. अगले दो वर्षों में 18 राज्यों में चुनाव होने हैं.
इनमें ओडिशा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र शामिल हैं. इन सभी राज्यों की 350 से ज्यादा सीटों पर अनुसूचित जनजाति का अच्छा खासा प्रभाव है. 2024 में लोकसभा के चुनाव हैं. 47 लोकसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. 2019 के चुनाव में इनमें से 31 सीटें भाजपा की झोली में गई थीं. मुर्मू फैक्टर इन सीटों पर कब्जा बनाए रखने के साथ ही कुछ और सीटों पर जीत की उम्मीदें बढ़ा सकता है.
इसके साथ ही मुर्मू को राष्ट्रपति भवन में पहुंचा कर मोदीजी ने देश की आधी आबादी यानी महिलाओं का दिल जीत लिया है. कई सर्वेक्षणों से यह जाहिर हो चुका है कि महिलाओं में मोदीजी का काफी क्रेज है. मुर्मू फैक्टर इस क्रेज को और बढ़ा सकता है! निश्चय ही द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना भारतीय लोकतंत्र में समानता के अधिकार की पुष्टि करता है. दुनिया के स्तर पर भी भारत की साख बढ़ेगी.
नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने निम्नवर्गीय राजनीति की धार को लगातार तेज किया है. पहले यह माना जाता था कि भाजपा अगड़ों की पार्टी है. इस मिथक को मोदी-शाह की जोड़ी ने तोड़ दिया है. पिछली बार दलित वर्ग से रामनाथ कोविंद और इस बार द्रौपदी मुर्मू को सर्वोच्च शिखर पर पहुंचाना आइडेंटिटी पॉलिटिक्स का हिस्सा है. खुद को केवल शहरी पार्टी से बाहर निकाल कर गांवों और जंगलों में भी पहुंचाने में इस शैली ने बड़ी मदद की है.
स्वाभाविक सी बात है कि राजनीति है तो सब अपनी-अपनी रणनीति से ही काम करेंगे. मुद्दे की बात है कि देश आगे बढ़ते रहना चाहिए...लोकतंत्र जिंदा रहना चाहिए. मुझे गर्व है अपने लोकतंत्र पर... स्वागत और बहुत-बहुत बधाई आदरणीय द्रौपदी मुर्मू जी!
Rani Sahu
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