सम्पादकीय

विजय दर्डा का ब्लॉगः ये डिप्रेशन नहीं, खतरनाक सप्रेशन है...!

Rani Sahu
10 Oct 2022 6:00 PM GMT
विजय दर्डा का ब्लॉगः ये डिप्रेशन नहीं, खतरनाक सप्रेशन है...!
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By लोकमत समाचार सम्पादकीय
अमिताभ बच्चन के कार्यक्रम कौन बनेगा करोड़पति में जब दीपिका पादुकोण ने अपने डिप्रेशन की बात की तो उनकी हिम्मत की सबने दाद दी। अभिनेता टाइगर श्राफ, अनुष्का शर्मा, वरुण धवन की हिम्मत की भी लोगों ने दाद दी थी जब उन्होंने खुलकर स्वीकार किया कि वक्त के किसी मोड़ पर वे भी डिप्रेशन का शिकार हुए और उन्हें उपचार की जरूरत पड़ी। जरा सोचिए कि इस देश में मानसिक स्वास्थ्य के मामले में आम आदमी की क्या हालत है?
आप सोच रहे होंगे कि इस बार अपने इस कॉलम में मैं मानसिक स्वास्थ्य की बात क्यों कर रहा हूं। दरअसल आज 10 अक्तूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की पहल पर 1992 में पहली बार मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया गया। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर इस पहल के 30 वर्ष होने को आए हैं। इस दौरान हमने क्या हासिल किया? मानसिक स्वास्थ्य समस्या का पहला पायदान है तनाव। हम सब जानते हैं कि वक्त के साथ जीवन में तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है। यही तनाव बाद में लोगों को डिप्रेशन यानी अवसाद का रोगी बना देता है। आंकड़े कहते हैं कि करीब 5 करोड़ 60 लाख लोग डिप्रेशन और करीब 3.8 करोड़ लोग चिंता से संबंधित विकार के शिकार हैं। मेरी नजर में ये कागजी आंकड़े हैं। हकीकत तो यह है कि चाहे वो कोई मशहूर हस्ती हो, धनाढ्य हो या फिर आम आदमी, हर कोई किसी न किसी रूप में तनाव का शिकार है। क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तनाव नहीं रहता होगा? राहुल गांधी, ममता बनर्जी या अरविंद केजरीवाल को या फिर अमिताभ बच्चन को तनाव नहीं रहता होगा? जो जिस जगह पर है, उसी के अनुरूप तनाव है। मुख्य बात है कि तनाव से आप कैसे निपटते हैं, आपका जीवन प्रबंधन कैसा है।
तनाव का कोई एक कारण नहीं होता है। बहुतेरे कारण हो सकते हैं। ज्यादातर तो खुद की समस्याओं से तनाव उपजता है। कुछ लोग अत्यंत छोटी-छोटी बातों को लेकर भी तनाव में आ जाते हैं। दूसरे लोग वो होते हैं जो ईर्ष्या का शिकार हैं और दूसरों की प्रगति देखकर तनाव पाल लेते हैं। ...और तीसरा कारण व्यवस्थागत है। हमारा जीवन काफी हद तक राष्ट्रीय विचारों की व्यवस्था से प्रभावित होता है। उस व्यवस्था की खामियां भी बहुत तनाव पैदा करती हैं। सरकारी कार्यालयों में हालांकि अब बहुत बदलाव आया है लेकिन क्या आज भी वह सुगमता है जो होनी चाहिए? आपको कोई प्रमाण पत्र बनवाना है तो कई तरह के पापड़ बेलने पड़ेंगे। किसी गरीब को राशन की दुकान से राशन लेना हो या फिर सरकारी अस्पताल में इलाज कराना हो या कोई और सरकारी काम हो, कहीं नौकरी की बात हो तो तनाव का शिकार होना लाजिमी है। यदि घर की बच्ची बाजार गई है तो मां तब तक तनाव में रहती है जब तक बच्ची वापस घर न आ जाए! जाहिर सी बात है कि यदि जीवन को तनावमुक्त बनाना है तो सामाजिक, शासकीय और निजी व्यवस्था को सुचारु करना होगा। वर्ना तनाव बढ़ता रहेगा।
मैं छोटे-छोटे बच्चों की हालत देख कर बेचैन हो जाता हूं। अभी वे 6 साल के भी नहीं होते कि उन्हें तनाव की भट्ठी में झोंक दिया जाता है। ...वो देखो अमुक का बच्चा इतने प्रतिशत अंक ला रहा है, तुम्हारा इतना कम क्यों है? वो देखो अमुक का बच्चा कितना अच्छा गाता है, तुम क्यों नहीं गाते...वगैरह...वगैरह! माता-पिता की उम्मीदों से उपजे इस तनाव ने बच्चों का बचपन छीन लिया है। तरुणाई तो खत्म ही हो गई है! इन सबके बीच केवल बच्चे ही नहीं, उनकी मां और उनके पिता खुद भी तनाव अर्जित कर लेते हैं। यह सारा तनाव जमा होता जाता है और विकराल रूप धारण कर लेता है।
वैसे समाज में ऐसे लोग भी हैं जो बिल्कुल ही तनाव नहीं पालते। वो कर्ज लेते हैं और भूल जाते हैं। कुछ लोग बैंकों से लाखों-करोड़ों का कर्ज लेते हैं और विदेश भाग खड़े होते हैं। ऐसे लोग यदि देश में रहें भी तो खुद को दिवालिया घोषित कर देते हैं। यह अलग बात है कि दिवालिया होने पर भी उनके पास रहने को आलीशान घर होता है, उड़ने के लिए दूसरों के नाम पर हवाई जहाज होता है। एक आम किसान को यदि गाय खरीदने के लिए कर्ज चाहिए तो उससे पूछा जाएगा कि गाय का दूध निकालना आता है या नहीं? लेकिन किसी को 50 करोड़ का कर्ज देने के लिए किसी का एक फोन ही काफी होता है। ऐसी हरकतें भी आम आदमी के मन में तनाव पैदा करती हैं। मैं आपको दो उदाहरण देता हूं। प्रख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. नित्यानंद उर्फ नीतू मांडके मुंबई में एक अस्पताल बना रहे थे लेकिन उसमें आ रही समस्याओं के कारण उन्हें कार में ही अटैक आ गया और उन्हें बचाया नहीं जा सका। एक लड़का इंटरव्यू के लिए बस से जा रहा था। बस ट्रैफिक में फंस गई। उसे लगा कि वह इंटरव्यू के लिए समय पर नहीं पहुंच पाएगा। इस तनाव के कारण उसे अटैक आ गया और बस में ही उसने दम तोड़ दिया। कहने का आशय यह है कि तनावमुक्त रहना केवल आपके हाथ में नहीं है। पूरा वातावरण तनावमुक्त होगा, तभी आम आदमी भी तनावमुक्त होगा।
अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि तनाव पर नियंत्रण के लिए भारतीय जीवन पद्धति सबसे बेहतर है। यदि हम योग और ध्यान को पूरी ईमानदारी से जीवन में शामिल कर लें तो तनाव प्रबंधन में निश्चय ही सहूलियत होगी। आधुनिक विज्ञान भी इसे मानता है लेकिन जीवन की आपाधापी में ज्यादातर लोग इसे भुलाते जा रहे हैं। याद कीजिए कि हमारे जितने भी महान नेतृत्वकर्ता रहे हैं, चाहे वो महात्मा गांधी हों, पंडित नेहरू हों, इंदिरा गांधी या राजीव गांधी हों या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, इन सबने योग और साधना को अपना साथी बनाया इसीलिए सोलह घंटे काम करने के बाद भी कभी थके नहीं! अपनी धरोहर को समझिए। संतुलित रहिए। हंसने-हंसाने वालों के बीच रहिए। मस्त रहिए और व्यस्त रहिए..तनाव को खुद से दूर रखने में आप जरूर कामयाब होंगे। एक पुरानी कहावत याद रखिए...जहां चाह है वहां राह भी है!
Rani Sahu

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