- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- विजय दर्डा का ब्लॉग:...

x
जब कोई प्रशासक या लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर कुर्सी पर बैठने वाला लोकप्रतिनिधि सत्ताधीश बन जाता है
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
जब कोई प्रशासक या लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर कुर्सी पर बैठने वाला लोकप्रतिनिधि सत्ताधीश बन जाता है, भ्रष्टाचार में आकंठ डूब जाता है, युवाओं को छलता है, जनता से विश्वासघात करता है और उसे भूख से तड़पने के लिए छोड़ देता है तो जनता विद्रोह पर उतर आती है. श्रीलंका में इस वक्त यही हो रहा है. वहां न कोई राजनीतिक तख्तापलट जैसी बात है और न ही एथनिक झगड़ा है.
श्रीलंका भुखमरी से उपजे असंतोष की आग में जल रहा है. हमने रूस में महानायकों की मूर्तियां टूटते देखी हैं, इराक में सद्दाम की आदमकद मूर्तियों को जमींदोज होते देखा है लेकिन जो श्रीलंका में हुआ, वैसा कोई दूसरा उदाहरण देखने में नहीं आता है.
इस सबके लिए सीधे तौर पर राजपक्षे परिवार जिम्मेदार है जिसने श्रीलंका को जी भर कर लूटा है और तबाह किया है! लोगों की गाड़ी में एक लीटर पेट्रोल नहीं और उनके बच्चे वो गाड़ी चला रहे थे जो एक लीटर में बस चार किलोमीटर चलती है...लोगों को पीने का पानी नहीं मिल रहा है और वे शराब की अय्याशी में डूबे जा रहे थे. लोगों के पास खाने के लिए दो वक्त की रोटी नहीं है और वे खाने की उल्टियां कर रहे थे!
जब हालात ऐसे हों तो जनता क्या करे? पेट की आग यदि नहीं बुझती तो सल्तनत जल जाती है. हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रकृति से बिल्कुल शांत रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं ने भी सल्तनत के खिलाफ मशाल उठा ली है. वे भी जनता के साथ खड़े हो गए हैं.
राजपक्षे परिवार ने किस तरह श्रीलंका को लूटा है, इसके उदाहरण चौंकाने वाले हैं. 2005 से 2015 तक राष्ट्रपति के रूप में सत्ता में रहने वाले महिंदा राजपक्षे ने उस दौर में विदेशों में 18 अरब डॉलर की संपत्ति जमा कर ली. विद्रोह के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. उनके छोटे भाई गोटबाया राजपक्षे ने राष्ट्रपति पद से तब इस्तीफा दिया जब जनता राष्ट्रपति भवन में घुस गई. गोटबाया फरार हो गए अन्यथा जनता उनके चीथड़े उड़ा देती. 2015 में जब वे रक्षा सचिव थे तब सैन्य खरीद में 10 मिलियन डॉलर का घोटाला हुआ था.
महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई बासिल राजपक्षे श्रीलंका के वित्त मंत्री रहे और उन पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे. उनके भ्रष्टाचार के कारण ही उन्हें मिस्टर 10 परसेंट कहा जाता था. 2016 में श्रीलंका की एक अदालत ने बासिल के 16 एकड़ में फैले लग्जरी विला को नीलाम करने का फरमान सुनाया था. तमिल समस्या को लेकर जब श्रीलंका जल रहा था तब भी सत्ताधीश चैन की बांसुरी बजा रहे थे और पैसा कूटने में लगे थे.
जब सारे आर्थिक विशेषज्ञ श्रीलंका को चेतावनी दे रहे थे कि वह चीन से बेवजह कर्ज न ले तब भी राजपक्षे परिवार चीन के साथ गलबहियां कर रहा था. आरोप तो यहां तक है कि राजपक्षे परिवार ने चीन से भी काफी दौलत कमाई है. बहरहाल, श्रीलंका भीख मांगने के कगार पर खड़ा है. वहां के पीएम रानिल विक्रमसिंघे ने भी इस्तीफा दे दिया है. और दुर्भाग्य से यही हालत पाकिस्तान की भी है. आर्थिक रूप से पाक भी कंगाल हो चुका है. किसी दिन श्रीलंका जैसा विद्रोह पाकिस्तान में भी हो जाए तो आश्चर्य नहीं.!
शिंजो आबे: दोस्त खोने का गम...
इस वक्त मेरा दिल बैठा जा रहा है. जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की मौत ने मुझे अंदर तक हिला कर रख दिया है. मेरे मन में बार-बार यह सवाल पैदा हो रहा है कि शिंजो जैसे शख्स से किसी की ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती है कि उन्हें गोली मार दे? शांतिप्रिय और संवेदनाओं से परिपूर्ण जापान में ऐसा कभी नहीं हुआ. हत्या के कारणों का खुलासा अभी होना बाकी है लेकिन पता नहीं क्यों मुझे इस हत्याकांड के पीछे सुदूर बैठी किसी सत्ता के षड्यंत्र की आशंका होती है क्योंकि शिंजो जो भूमिका निभा रहे थे उससे दमनकारी और अधिनायकवादी प्रवृत्ति को सख्त चुनौती मिल रही थी.
शिंजो आबे का जाना भारत के एक खास हितैषी का अवसान तो है ही, मेरे लिए यह निजी रूप से भी अत्यंत गहरा जख्म है. मैंने अपना एक सच्च दोस्त खो दिया है. उनके साथ गुजारे हर पल की याद मुझे आ रही है. टोक्यो में उनसे मेरी पहली मुलाकात कराई थी भारत-जापान संबंधों के लिए कार्यरत इंडिया फाउंडेशन के विभव कांत उपाध्याय ने. मैं भारत-जापान दोस्ती के विचारों का समर्थक रहा हूं. शिंजो आबे से उस मुलाकात में ही कुछ ऐसी केमिस्ट्री बैठी कि शिंजो के साथ दोस्ती हो गई.
सितंबर 2006 में अचानक मुझे उनके प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण समारोह की पूर्व संध्या पर आयोजित डिनर का निमंत्रण प्राप्त हुआ. मुझे याद है कि उन्होंने मेरे साथ काफी वक्त गुजारा और वे भारतीय मीडिया तथा राजनीति को समझने की गंभीर कोशिश कर रहे थे. मुझे याद है वो वक्त जब परमाणु परीक्षण के बाद भारत पर प्रतिबंध लगे थे.
उस वक्त अटलजी के निर्देश पर भारत से एक प्रतिनिधिमंडल जापान गया था. उसमें मैं भी शामिल था. हम वहां की संसद डायट के नाराज युवा सांसदों को यह समझाने में सफल रहे कि भारत के लिए शांतिपूर्ण परमाणु शक्ति क्यों आवश्यक है. मुझे खुशी है कि भारत-जापान संबंधों में कुछ तिनके जोड़ने का सौभाग्य मुझे भी मिला.
प्रधानमंत्री के रूप में शिंजो आबे जब भारत आए तो इंडिया फाउंडेशन की ओर से कार्यक्रम आयोजित किया गया था. गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी, जॉर्ज फर्नांडीस, वसुंधरा राजे, सीतराम येचुरी और मैं मंच पर मौजूद थे. जब भी हमारी मुलाकात होती थी तब इस बात पर ज्यादा जोर होता था कि भारत और जापान के संबंधों को किस तरह मधुरतम स्थिति में रखा जाए. उनका जाना वाकई हमारे लिए बहुत बड़ी क्षति है.

Rani Sahu
Next Story