सम्पादकीय

उपराष्ट्रपतिः सांकेतिक लड़ाई

Subhi
19 July 2022 3:11 AM GMT
उपराष्ट्रपतिः सांकेतिक लड़ाई
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उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए की ओर से पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ का चयन पहली नजर में बहुतों को चौंका सकता है। इससे पहले गठबंधन ने राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू के रूप में ऐसा प्रत्याशी पेश किया

नवभारत टाइम्स; उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए की ओर से पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ का चयन पहली नजर में बहुतों को चौंका सकता है। इससे पहले गठबंधन ने राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू के रूप में ऐसा प्रत्याशी पेश किया, जिन्हें विपक्ष के भी बड़े वर्ग का समर्थन मिल रहा है। लेकिन धनखड़ ऐसे प्रत्याशी नहीं हैं। पश्चिम बंगाल में वह तीन साल से राज्यपाल हैं। इस बीच, उनका वहां की मुख्यमंत्री और तृणमूल नेता ममता बनर्जी से कई बार टकराव हो चुका है। कुछ जानकारों का मानना है कि इन्हीं वजहों से उन्हें उपराष्ट्रपति पद का एनडीए का प्रत्याशी बनाया गया है। क्यों, इसे समझने के लिए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद की अलग-अलग भूमिकाओं पर ध्यान देना होगा। राष्ट्रपति देश के संवैधानिक प्रमुख होते हैं। वह सक्रिय राजनीति और शासन के रोजमर्रा के कामकाज से बिल्कुल ऊपर होते हैं। उपराष्ट्रपति यूं तो राष्ट्रपति की गैरमौजूदगी में उनकी भूमिकाएं अदा करते हैं, लेकिन वह संसद के ऊपरी सदन यानी राज्यसभा के पदेन अध्यक्ष होते हैं। इस लिहाज से वह देश और खासकर संसद के अंदर की राजनीतिक गतिविधियों से अछूते नहीं रह सकते। चूंकि राज्यसभा में एनडीए के बहुमत का अंतर लोकसभा से कम है, इसलिए वहां उसे ऐसे अध्यक्ष की जरूरत स्वाभाविक ही ज्यादा महसूस होगी, जो विपक्ष की आलोचना या उसके हमलों, आरोपों से तुरंत दबाव में न आ जाए।

वैसे यह बात भूलनी नहीं चाहिए कि धनखड़ लंबे समय तक वकालत कर चुके हैं और वह कानून की अपनी बारीक समझ के लिए जाने जाते हैं। इसके साथ ही जाट बिरादरी से वास्ता रखने वाले धनखड़ का चयन वोटों के समीकरणों से भी मेल खाता है। यूपी, हरियाणा और राजस्थान- तीनों राज्यों में इस बिरादरी के वोट चुनाव नतीजों को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करते हैं। स्वाभाविक ही इस चयन को इन राज्यों में वोटों के गणित को प्रभावित करने की मंशा से बिल्कुल अलग करके नहीं देखा जा सकता। बहरहाल, विपक्षी खेमे की बात करें तो उसने उपराष्ट्रपति पद के लिए प्रत्याशी चुनने की खातिर एक बैठक पिछले हफ्ते की थी। लेकिन उम्मीदवार के नाम पर कोई फैसला नहीं किया गया। वह नहीं चाहता था कि राष्ट्रपति की तरह ही इस बार भी एनडीए के प्रत्याशी के नाम की घोषणा उसे सकते में डाल दे। सो, एनडीए प्रत्याशी के बारे में जान लेने के बाद रविवार को अपनी दूसरी बैठक में विपक्षी दलों ने मारग्रेट अल्वा को अपना प्रत्याशी घोषित किया। प्रत्याशियों के गुण-दोषों से अलग, दोनों सदनों में सत्तारूढ़ पक्ष के स्पष्ट बहुमत को देखते हुए छह अगस्त को होने वाले चुनावों में एनडीए प्रत्याशी की जीत तय मानी जा रही है। इस लिहाज से यह भी एक सांकेतिक ल़डाई ही है, लेकिन अगर कोई भी पक्ष इसे दिलचचस्प बना सका तो इसके अप्रत्याशित संकेत कुछ महत्वपूर्ण सबक जरूर दे सकते हैं।


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