सम्पादकीय

उपराष्ट्रपति: विपक्ष फिर हारा

Subhi
8 Aug 2022 3:04 AM GMT
उपराष्ट्रपति: विपक्ष फिर हारा
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जगदीप धनखड़ देश के नए उपराष्ट्रपति चुने गए हैं। राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्याशी चयन के मोर्चे पर मात खाने के बाद विपक्ष के लिए यह दूसरा मौका था, जब वह खुद को बेहतर तालमेल से युक्त और ज्यादा चुस्त-दुरुस्त दिखा सकता था। मगर यह मौका भी उसके हाथ से निकल गया।

नवभारत टाइम्स: जगदीप धनखड़ देश के नए उपराष्ट्रपति चुने गए हैं। राष्ट्रपति चुनाव में प्रत्याशी चयन के मोर्चे पर मात खाने के बाद विपक्ष के लिए यह दूसरा मौका था, जब वह खुद को बेहतर तालमेल से युक्त और ज्यादा चुस्त-दुरुस्त दिखा सकता था। मगर यह मौका भी उसके हाथ से निकल गया। राष्ट्रपति चुनावों की ही तरह इस बार भी विपक्ष अपने प्रत्याशी के लिए उतने वोट भी सुनिश्चित नहीं कर सका, जो चुनावों से पहले उसके खेमे के तय वोट माने जा रहे थे। शिवसेना में विभाजन जैसे घटनाक्रम को छोड़ दें, तब भी विपक्ष की एक प्रमुख पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने इन चुनावों से अलग रहने का फैसला किया और आखिर तक भी उसे पलटने को राजी नहीं हुई। यह आश्चर्य की बात इसलिए भी कही जाएगी क्योंकि जगदीप धनखड़ पिछले तीन वर्षों से पश्चिम बंगाल के राज्यपाल पद पर हैं, जहां मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच उस तरह के सौहार्दपूर्ण रिश्ते कभी नहीं रहे जैसे झारखंड में द्रौपदी मुर्मू के राज्यपाल रहते उनके मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से थे। बल्कि सीएम ममता बनर्जी और राज्यपाल धनखड़ के रिश्ते ज्यादातर संवैधानिक संकट का रूप लेने को उतावले ही नजर आए। इसके अतिरिक्त ममता बनर्जी विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों के बीच भी बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से टकराव मोल लेने के मामले में सबसे आगे दिखती रही हैं। ऐसे में उनका अन्य विपक्षी दलों द्वारा संपर्क न करने का कारण बताते हुए चुनावों से अलग होने का एलान निश्चित रूप से विपक्ष के लिए धक्का कहा जाएगा।

आश्चर्य नहीं कि विपक्षी प्रत्याशी मार्गरेट अल्वा चुनाव नतीजे आने के बाद दिए गए अपने औपचारिक बयान में भी इस पर निराशा जताने से खुद को रोक नहीं पाईं। उन्होंने जगदीप धनखड़ को जीत की बधाई देने के बाद कहा, 'दुर्भाग्य से कुछ विपक्षी दलों ने इन चुनावों में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बीजेपी को समर्थन देने का काम किया। मेरा मानना है कि ऐसा करके उन विपक्षी दलों और उनके नेताओं ने अपनी विश्वसनीयता को ही नुकसान पहुंचाया है।' बहरहाल, चुनाव हो चुके हैं। जगदीप धनखड़ उपराष्ट्रपति चुने जा चुके हैं और उनके सामने पांच वर्षों का कार्यकाल है। कहना होगा कि उनके अब तक के कामकाज की पृष्ठभूमि को ध्यान से देखा जाए तो जहां अच्छे प्रदर्शन की उम्मीदें जगाने वाले कारक बहुतायत में मौजूद हैं, वहीं कुछेक बातें ऐसी भी हैं, जिनसे कुछ हलकों में थोड़ी-बहुत आशंकाएं पैदा हुई हैं। खासकर, पश्चिम बंगाल का राज्यपाल रहने के दौरान वह इस संवैधानिक पद को विवादों से दूर नहीं रख पाए। उम्मीद है कि उपराष्ट्रपति बनने के बाद ऐसा नहीं होगा। वैसे भी धनखड़ का लंबा सार्वजनिक जीवन और संविधान तथा कानून की उनकी गहरी समझ आश्वस्त करती है कि वह बतौर उपराष्ट्रपति अपने कार्यकाल को बेहतर कारणों से यादगार बनाएंगे।

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