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By: divyahimachal
भूगोल के नए अर्थों में हिमाचल में बढ़ती कनेक्टिविटी ने पांव पसारने शुरू किए हैं और अगर अगले दो साल में तमाम परियोजनाएं लक्ष्यों की काफी हद तक प्राप्ति कर लें, तो परिदृश्य की आर्थिक मजबूती भी न•ार आएगी। कीरतपुर से नेरचौक तक फोरलेन की शुरुआत ने ही अगर 37 किलोमीटर कम कर दिए, तो कल समस्त रास्तों में कम होती दूरियां हिमाचल की प्रगति को नए पैमानों से मापेंगी। आपस में जुड़ते फोरलेन प्रोजेक्ट प्रदेश के यात्रा चक्र को भी बदलेंगे। मसलन कीरतपुर से नेरचौक आती फोरलेन सडक़ का मटौर से शिमला को जोड़ती फोरलेन से मिलन भगेड़ को सारे रथ सौंप देगी। यानी कल कांगड़ा व हमीरपुर की ओर से तय होती चंडीगढ़-दिल्ली की मंजिलें वाया भगेड़-घुमारवीं भी जुड़ सकती हैं। पाठकों को याद होगा कि हमने इन्हीं कालमों में बार-बार कहा था कि हिमाचल को जोडऩे के लिए हमीरपुर के पास सबसे बड़ा संपर्क पैदा होगा, तो हवाई यात्राओं के लिए कांगड़ा एयरपोर्ट सबसे सक्रिय माध्यम बनेगा। प्रदेश की सुक्खू सरकार ने जिस गति से इस हवाई अड्डे को विस्तार देने की इच्छा शक्ति जाहिर की है, निश्चित रूप से अगले कुछ सालों में हवाई यात्रा का आयाम बदल जाएगा। हमने यह भी कहा था कि प्रदेश में रेल संपर्क केवल ऊना ट्रेन परियोजना के मार्फत होगा और अंब-अंदौरा केंद्रीय भूमिका में आ सकता है। आज जब देश के 508 रेलवे स्टेशनों में अंब-अंदौरा पर भी 20.74 करोड़ व्यय होने जा रहे हैं, तो रेल विस्तार का सपना अगले कुछ सालों में जरूर पूरा होने का विश्वास दिलाता है।
भले ही सांसद एवं केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर की हमीरपुर रेल परियोजना पर अभी सन्नाटा है, लेकिन हिमाचल में रेल विस्तार की संभावना ऊना रेल परियोजना का रुख, मंदिरों और छावनियों की परिक्रमा की ओर मोडक़र ही पूरा होगा। जैसा कि हम कहते रहे हैं अंब-अंदौरा से ज्वालाजी तक अगर केंद्र सरकार की रेल परियोजना को प्राथमिकता नहीं मिल रही, तो इसे राज्यों को पचास-पचास प्रतिशत के सहयोग से मंदिर रेल परियोजना के तहत पूरा करना चाहिए। अंब-अंदौरा से ज्वालाजी तक आते-आते यह परियोजना चिंतपूर्णी को भी जोड़ देगी, जबकि आगे चल कर एक हमीरपुर की दिशा में दियोटसिद्ध और दूसरी ब्रांच कांगड़ा, चामुंडा और बैजनाथ के मंदिरों को जोड़ देगी। ज्वालाजी के केंद्र बिंदु से मंडी और रिवालसर जैसे धार्मिक स्थल भी जुड़ जाएंगे। मंदिर रेल परियोजना की आधी लागत अदा करने में मंदिरों की आय का एक बड़ा हिस्सा, कोंकण रेल परियोजना की तरह वित्तीय पोषण कर सकता है, जबकि भविष्य में इसी के माध्यम से मंदिरों की आय कई गुना बढ़ जाएगी। हिमाचल में कनेक्टिविटी के तमाम माध्यमों से पर्यटन, आईटी सेक्टर तथा कृषि-बागबानी उत्पादों की आर्थिक क्षमता का निश्चित रूप से विस्तार होगा।
इतना ही नहीं, हिमाचल के लोक निर्माण विभाग को पर्वतीय आर. एंड डी. की प्रमुख संस्था बनते हुए वैकल्पिक परिवहन माध्यम की रूपरेखा सशक्त करनी होगी। प्रदेश में रज्जुमार्गों के विस्तार से कई पर्वतीय विडंबनाओं पर पार पाया जा सकता है। पहले ही सुक्खू सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों का उपयोग बढ़ाने के मानचित्र व प्रोत्साहन तक कर दिए हैं। यह सरकार अगर तमाम बाधाओं के बीच कांगड़ा एयरपोर्ट विस्तार कर पाती है, तो यह परियोजना आने वाली कई सदियां बदल देगी। इसी तरह की इच्छा शक्ति से अगर अंब-अंदौरा से ज्वालामुखी तक मंदिर रेल परियोजना का श्रीगणेश कर दिया जाए, तो ऊना, कांगड़ा, हमीरपुर से मंडी तक रेल विस्तार का नक्शा उभर जाएगा, वरना केवल केंद्र पर निर्भर होकर आने वाली कई सदियां यूं ही इंतजार में गंवानी पड़ेंगी।
Rani Sahu
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