सम्पादकीय

भारत भूमि से बरसते वीएफएक्स विजयी ब्रह्मात्र

Rani Sahu
4 May 2022 4:07 PM GMT
भारत भूमि से बरसते वीएफएक्स विजयी ब्रह्मात्र
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विशाल ठाकुर

ऑस्कर हुए महीना भर से ज्यादा हो गया, लेकिन हॉलीवुड स्टार विल स्मिथ के थप्पड़ की गूंज बरकरार है. बीते दिनों स्मिथ भारत आये. क्यों आये, किससे मिले और क्यों मिले की पुख्ता जानकारी किसी के पास नहीं थी. बस कयास लगाए गये कि थप्पड़ कांड के बाद मन में फैली अशांति और जग में हुई छिछालेदर से मुक्ति प्राप्ति की खोज में आये लगते हैं. इसलिए भी आगमन की खबरें थप्पड़ की गूंज के फॉलोअप से ज्यादा नहीं बढ़ सकीं.
विल स्मिथ को लेकर इतना थप्पड़-थप्पड़ हो गया कि अपने देसी फिल्मलोक का डॉ. डेंग (फिल्म कर्मा (1986) में अनुपम खेर) भी सोचता होगा कि ये कल के लड़के स्मिथ की विल (इच्छाशक्ति) क्या पावरफुल है, थप्पड़ की गूंज तो मेरा डायलॉग था, प्रीमियम इसे मिल रहा है. खैर, सोशल मीडिया में स्मिथ की अगली सार्वजनिक उपस्थिति ट्रेंड करने तक थप्पड़ और उसकी गूंज को विराम देते हैं.
दरअसल, इस घटना के आगे मानो सब गौण सा हो गया. इससे हटकर कुछ देख पाते तो भारतीयों की प्रतिभा पर गर्व होता. अहसास होता कि फिल्म जगत के वैश्विक मंच पर हम आज कहां खड़े हैं. एक भारतीय फिल्म हॉलीवुड की मेगा बजट फिल्म को ओपनिंग कलेक्शन में पछाड़कर नंबर 1 पर पहुंची, लेकिन सुर्खियों में छाई रही मुंबईया सितारों की शादी. ग्लोबल बॉक्स ऑफिस सूची में इस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों की सूची में अब भी यह फिल्म 10वें स्थान पर बनी हुई है. खबर है कि इसके कुल बजट का एक बड़ा हिस्सा इसके वीएफएक्स पर खर्च किया गया है.
एक अन्य भारतीय की प्रतिभा और मेहनत से वीएफएक्स श्रेणी में अमेरिकियों की झोली इस साल फिर ऑस्कर से भर गयी. इसी श्रेणी में नामित एक अन्य फिल्म के वीएफएक्स भी भारतीय सरजमी की प्रतिभा की ही देन है. वीएफएक्स के क्षेत्र में साल दर साल भारतीयों की व्यापक भागीदारी दर्शाती है कि भारतीय वीएफएक्स धुरंधरों बिना हॉलीवुड स्टूडियोज का गुजारा नहीं चलने वाला है. पर एक सच यह भी है कि बीस साल से ज्यादा होने को आये भारतीय फिल्में ऑस्कर में नामांकन तक के लिए संघर्ष कर रही हैं. शायद, अब हमारे फिल्मकारों को बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज श्रेणी में ऑस्कर खोजने के बजाए वीएफएक्स में संभावनाएं तलाशनी चाहिये. हो सकता है जो लक्ष्य कहानी, कलाकारी या कलेवर के जरिये पूरा नहीं हो पा रहा है, वो स्पेशल इफेक्ट्स के माध्यम से हासिल हो जाए, किसे पता? और शायद इसके लिए ज्यादा लंबा इंतजार भी न करना पड़े.
साउथ बनाम बॉलीवुड
बॉलीवुड या साउथ? किसकी फिल्में बेहतर हैं? इधर यह बहस काफी काफी सुनाई दे रही है. वजह है कि दक्षिण भारतीय भाषाओं की कई फिल्में न केवल अपने क्षेत्रों में बहुत शानदार बिजनेस कर रही हैं, बल्कि हिन्दी में डब होकर उत्तर भारत के एक बड़े दर्शक वर्ग को भी अपना दीवाना बना रही हैं. इसमें भी दो राय नहीं कि तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ भाषा की मनोरंजक फिल्में न केवल व्यावसायिक रूप से देश-विदेश में सफल हो रही हैं, बल्कि कंटेंट के लिहाज से भी यह काफी बेहतर नजर आती हैं, जबकि इधर कुछ समय से (बीते 2-3 सालों से) बॉलीवुड फिल्में अच्छे कंटेंट की कमी के साथ-साथ अच्छे बिजनेस को लेकर भी संकट में हैं.
बीते साल हिन्दी पट्टी में तेलुगु फिल्म पुष्पाः दि राइज (106 करोड़ रुपये), हाल में आर.आर.आर. (262 करोड़ रुपये) तथा कन्नड़ फिल्म केजीएफः चैप्टर 2 (360 करोड़ रुपये) ने उम्मीद से कहीं अधिक कलेक्शन कर चौंकाने वाला काम किया है. हिन्दी पट्टी के कलेक्शन को मिलाकर आर.आर.आर. (रिलीज 25 मार्च) की कमाई का आंकड़ा (भारत में) 900 करोड़ रुपये (ग्रॉस) को छूने जा रहा है, जबकि विदेश में इस फिल्म ने 210 करोड़ रुपये (ग्रॉस) बटोरकर अपनी कुल कमाई 1,115 करोड़ रुपये (150 मिलियन अमेरिकी डॉलर) की बुलंदी तक पहुंचा दी है.
दूसरी तरफ 14 अप्रैल को रिलीज हुई अभिनेता यश की केजीएफः चैप्टर 2 ने न केवल उत्तर भारत में कमाई का एक नया इतिहास रच डाला है, बल्कि 1,000 करोड़ रुपये (130 मिलियन डॉलर) बटोरकर (वर्ल्डवाइड ग्रॉस), तू आगे-आगे मैं पीछे-पीछे वाला काम किया है. आप देखेंगे कि कलेक्शन के मामले में न केवल देश में, बल्कि विदेश में भी दो दक्षिण भारतीय फिल्में एक-दूसरे को टक्कर दे रही हैं, जबकि बॉलीवुड फिल्में कमाई के मामले में इनके आस-पास भी नहीं फटकती दिखाई दे रही हैं.
आश्चर्य होगा जानकर कि 1,000 करोड़ तो बहुत दूर की बात है 500 करोड़ बटोरने वाली अंतिम बॉलीवुड फिल्म रणबीर कपूर की संजू थी जो साल 2018 में आयी थी, जबकि हजार करोड़ के करीब पहुंचने वाली अंतिम हिन्दी फिल्म सलमान खान (2015) की बजरंगी भाईजान थी. लेकिन साउथ बनाम बॉलीवुड की यह सारी बहस केवल कमाई को लेकर नहीं की जा सकती है और किसका कंटेंट बेहतर है, इस पर हम पहले भी बात कर चुके हैं.
दरअसल, कंटेंट के अलावा साउथ की फिल्मों का स्टाइल जाना-पहचाना हीरोइज्म और प्रेजेंटेशन लोगों के दिलों में अपनी जगह बना रहा है, जिसमें वीएफएक्स का विशेष योगदान दिखाई देता है. यह एक इतना जबरदस्त फैक्टर है, जिस पर बहुत कम बात हो रही है. बिना वीएफएक्स के पुष्पा, आरआरआर और केजीएफ की सफलता की बात करना बेमानी होगा. आईमैक्स और 3 डी प्रभाव वाली निर्देशक एस. एस. राजामौली की प्रस्तुति आरआरआर के वीएफएक्स पर एक दर्जन से अधिक अग्रणी भारतीय और अमेरिकी कंपनियों ने काम किया है और बताया जाता है कि इसके कुल बजट (550 करोड़ रुपये) का करीब 25 फीसदी से अधिक हिस्सा (करीब 150 करोड़ रुपये) वीएफएक्स पर खर्च किया गया है. वीएफएक्स के क्षेत्र में जो लोग राजामौली के काम (विशेषकर मगधीरा, मक्खी, बाहुबली फिल्में) को जानते हैं, वे समझ सकते हैं कि वह कहानी और कला के संगम के लिए जी जान लगा देते हैं और अपने दर्शकों को कल्पनालोक के चरम पर ले जाने में कतई कंजूसी नहीं करते
वहीं केजीएफ के पहले और दूसरे भाग में जिस तरह प्रभावी ढंग से कोलार गोल्ड फील्ड का चित्रण किया गया है, उसे देश जॉर्ज मिलर की महत्वकांक्षी फिल्म मैड मैक्सः फ्यूरी रोड (2015) की याद आ जाती है, जहाँ धरती के विनाश के बाद एक रेगिस्तान युद्ध का मैदान बन चुका है. अपने काम में जीनियस का दर्जा रखने वाले जॉर्ज मिलर की इस फिल्म में 2000 वीएफएक्स शॉट्स थे, जिसमें से 1500 शॉट्स एक ही कंपनी ने बनाए थे, जबकि तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो आरआरआर में 2,800 शॉट्स है, जिन्हें 18 अलग-अलग कंपंनियों की मदद से सात महीनों में पूरा किया गया.
इसे विशेष प्रभाव का नतीजा ही कहियेगा कि सुकुमार निर्देशित पुष्पाः दि राइज में लाल चंदन के जखीरे को बचाने वाले दृश्यों का रोमांच सीट से हिलने नहीं देता और दिखाता है कि ऊपर से हरे-भरे और शांत दिखने वाला जंगल भीतर से कैसे रहस्यमयी और घातक हो सकता है
वीएफएक्स को लेकर साउथ की फिल्मों की गंभीरता और लगाव रजनीकांत अभिनीत और शंकर निर्देशित रोबोट (2010) के समय से ही देखा जा रहा है. हालांकि, इधर बॉलीवुड में शाहरुख खान की रॉ. वन, जीरो, रितिक रोशन की कृष सीरीज के अलावा संजय लीला भंसाली की पद्मावत, बाजीराव मस्तानी, सलमान खान की टाइगर जिंदा है, किक सरीखी फिल्मों के नाम तो बेशक लिए जा सकते हैं, पर इनकी सफलता में न तो वीएफएक्स एक कारण के रूप में दिखाई देता है और न ही कहीं इसका विशेष जिक्र होता है. सारी सुर्खियां केवल हीरो-हीरोइन के खाते में चली जाती हैं
ऐसी खबरें भी अब सामने आने लगी हैं कि बड़े बजट की नामचीन सितारों वाली फिल्म का करीब 40-50 फीसदी पैसा तो केवल सितारों की मोटी फीस के खर्च पर ही चला जाता है. इसलिए वीएफएक्स, कंटेंट या कहानी पर पैसा कहां से खर्च किया जाए। वैसे, अब इस मामले में साउथ को देखें तो स्थिति बदलती सी दिख रही है. मिसाल के तौर पर मगधीरा में वीएफएक्स के लिए प्रोडक्शन के कुल बजट करीब 12 फीसदी रखा गया था, जबकि मक्खी के लिए करीब 15 फीसदी. इन दोनों फिल्मों की शानदार कामयाबी से राजामौली के हौंसले बुलंद होते गये तो उन्होंने बाहुबली सिरीज के लिए इसे बढ़ाकर 20 फीसदी करने का निश्चय किया. वह अपने निर्णय में किस कदर कामयाब रहे, यह हम सब जानते हैं. और उनकी कामयाबी का ही नतीजा है कि ग्लोबल बॉक्स ऑफिस के मंच पर आरआरआर अपनी ओपनिंग के दौरान मैट रीव्स निर्देशित दि बैटमैन (2022) को टक्कर दे पायी. बता दें कि दि बैटमैन का कुल बजट आरआरआर के बजट का लगभग तीन गुना है. ओपनिंग कलेक्शन में दि बैटमैन ने 45.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर यानी करीब 344 करोड़ रुपये का कारोबार किया, वहीं आरआरआर ने 60 मिलियन अमेरिकी डॉलर यानी 450 करोड़ रु. बटोरकर धूम मचा दी और नंबर 1 का स्थान पाया.

अब आने वाले दिनों में बॉलीवुड के पास एक अच्छा मौका होगा कि वह भी वीएफएक्स के जरिये खुद को न केवल चर्चा में ला सकता है, बल्कि एक बड़े मुनाफे वाले कलेक्शन के साथ-साथ ऑस्कर या उसके समकक्ष किसी पुरस्कार का दावेदार भी बन सकता है.
चर्चा है कि अयान मुखर्जी की बहुप्रतीक्षित फिल्म ब्रह्मास्त्र में बेहद उन्नत किस्म के स्पेशल इफेक्ट्स का इस्तेमाल किया गया है. एक ट्रायलॉजी के रूप में इस साल सितंबर में रिलीज होने वाली रणबीर कपूर, आलिया भट्ट और अमिताभ बच्चन की भूमिकाओं वाली यह फिल्म प्रभावी एवं सफल वीएफएक्स के दावों के साथ खुद को वैश्विक स्तर पर साबित कर सकती है. इसके वीएफएक्स को अंजाम देने वाले वही हैं, जिन्होंने हाल में आरआरआर को विशेष प्रभाव से लैस किया है, साथ ही अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अंग्रेजी फिल्म ड्यून और जेम्स बॉन्ड सिरीज की नो टाइम टू डाय जैसी फिल्मों के लिए वीएफएक्स तैयार किए हैं.
ये लोग दिखते क्यों नहीं?
क्या आम जनता उस इंसान के बारे में नहीं जानना चाहेगी, जिसने अमेरिकी फिल्मकार माइकल बे की अद्भुत कल्पना को वीएफएक्स के माध्यम से साकार किया. याद कीजिए सड़क पर दौड़ती वो कार, जो पलक झपकते ही आदमकद में रोबोट में बदल जाती है, जिसके बाद शुरू होता है धरती पर कहर बरपाते रोबोट्स का महायुद्ध. कहने की जरूरत नहीं कि ट्रांसफामर्स सीरीज की सफलता वीएफएक्स के बिना अधूरी है. विशेष प्रभावों के लिए जानी जाने वाली फिल्में जैसे जेम्स कैमरून की अवतार (2009), स्पेस फिल्में जैसे ग्रेविटी (2013) और इंटरस्टेलर (2014), साइंस फैंटसी फिल्म इंसेप्शन (2010), ट्रॉन लिगेसी (2010), कुछ अन्य बेहद चर्चित और कामयाब फिल्में जैसे, गॉडजिला, किंग कॉग, डेडपूल (2016), एक्समैनः एपोक्लेप्स (2016) , स्पाइडर-मैनः होमकमिंग, दि अवेंजर्स, गार्डियंस ऑफ दि गैलेक्सी सहित बीते दो-ढाई दशक में अनेकों फिल्में हैं, जिनके वीएफक्स या तो भारत में तैयार किए गये या भारतीय कंपनियों द्वारा अन्य देशों में तैयार किए गये हैं. और यह किसी एक भारतीय कंपनी या किसी एक व्यक्ति विशेष की बात नहीं है, बल्कि यह तो उन ढेरों भारतीय प्रतिभाओं पर गर्व करने का क्षण है, जो अपनी मेहनत और रचनात्मकता का इनाम दूसरों के हाथों में जाते हुए देखते रह जाते हैं.
इसी साल 94 वें ऑस्कर समारोह में बेस्ट विजुअल इफेक्ट्स का खिताब जीतने वाली दनि विलनॅव निर्देशित ड्यून के वीएफएक्स लंदन की कंपनी डीएनईजी (पूरा नाम डबल निगेटिव) द्वारा तैयार किए गये हैं, उसके चेयरमैन एवं सीईओ नमित मल्होत्रा हैं. सन 1998 में फिल्म इंडस्ट्री के कुछ अदना से पेशेवरों द्वारा स्थापित इस कंपनी में नमित की भारतीय कंपनी प्राइम फोकस का साल 2014 में विलय हुआ, जिसके बाद मुंबई, चेन्नई, चंढीगड़, बेंग्लुरु के अलावा लॉ एंजेल्स और टोरेंटो वगैराह में भी ऑफिस खोले गये. असल में विलय से एक साल पहले कंपनी को एक बड़ी कामयबी हाथ लगी थी। 86वें ऑस्कर समारोह में बेस्ट विजुअल इफेक्ट्स का खिताब जीतने वाली फिल्मकार अल्फोन्सो क्वारॉन की साइंस-फिक्शन थ्रिलर फिल्म ग्रेविटी के 3डी और पोस्ट-प्रोडक्शन प्राइम फोकस, लंदन द्वारा किया गया था. आप विश्वास करेंगे कि वीएफएक्स के लिए बीते (वर्षों) सात में में पांच ऑस्कर इसी कंपनी ने जीते हैं, जिसमें टेनेट (2021), फर्स्टमैन (2019), ब्लेड रनर 2049 (2019), एक्स मचिना (2016), इंटरस्टेलर (2015) और इंसेप्शन (2011) के नाम शामिल हैं. कई अन्य अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरस्कारों तथा कुछ नई खोजों को लेकर कंपनी द्वारा उल्लेखनीय कार्यों की एक लंबी लिस्ट है, जिसका विस्तृत ब्यौरा रखना यहां मकसद नहीं है. क्योंकि यह एकमात्र वीएफएक्स कंपनी नहीं है, जो ऐसा कर रही है पर अग्रणी जरूरी है और विश्व स्तर पर पावरहाउस का दर्जा रखती है. पर असल में भारत में डिजिटल इमेजिनरी और ग्राफिक्स को लेकर रचनात्मक प्रयोग सन 1950 के दशक से देखे जा रहे हैं लेकिन वीएफएक्स और एनिमेशन इत्यादि के क्षेत्र में हाल के वर्षों में खासी तेजी देखने को मिली है. न केवल विदेशी फिल्मों के लिए देसी फिल्मों के लिए इस तर रूझान काफी बढ़ा है, बल्कि बाहुबली सीरीज की सफलता और 2.0 (रोबोट का सीक्वल) से बढ़ती उत्सुकता ने इस क्षेत्र में संभावनाओं के द्वार खोलने के साथ-साथ एक विश्वास भी कायम किया कि घरेलू कंपनियां विश्वस्तरीय स्पेशल इफेक्ट्स के क्षेत्र में करिश्मा कर सकती हैं.
आज हम देखते हैं कि मुंबई स्थित प्राण स्टूडियो, हैदराबाद का डिजिटल डोमेन, बेंग्लुरु स्थित एमपीसी, फैंटम एफएक्स, पिक्सल डिजिटल स्टूडियो सहित कई कंपनियां हैं जो इस क्षेत्र में तेजी से न केवल आगे बढ़ रही है बल्कि विदेशी स्टूडियोज के साथ मिलकर फिल्मों के शायद सबसे बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही हैं. थॉरः दि डार्क वर्ल्ड (2013) का वीएफएक्स का काम प्राण स्टूडियो तथा साल 2018 की ऑस्कर विजेता फिल्म दि शेप ऑफ वाटर का कार्य बेंग्लुरु की मिस्टर एक्स द्वारा किया गया था. इसके अलावा कुछ बड़े एवं अग्रणी नाम जैसे रिलायंस मीडिया वर्क्स भी है, जिसे देश में पहला आईमैक्स 3डी थियेटर (तब एडलैब्स के साथ) लाने का श्रेय जाता है. साल 2008 में कैलिफोर्निया की लैरी डिजीटल में संपूर्ण हिस्सेदारी के साथ रिलायंस मीडिया वर्क्स ने स्पेशल फेक्ट्स की मसीहा कही जाने वाली फिल्म अवतार के अलावा दि क्यूरियस केस ऑफ बेंजमिन और दि सोशल नेटवर्क जैसी फिल्मों के लिए काम करते हुए हॉलीवुड के बड़े स्टूजियोज के साथ जुड़ना शुरू किया. फिर साल 2014 में प्राइम फोकस के साथ कंपनी का विलय हो गया, लेकिन इससे पहले रिलायंस मीडिया वर्क्स के खाते में साल 2011 में साइंटिफिक एंड टेक्नीकल ऑस्कर आ चुका था, जो दि अकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइसेंस द्वारा दिया जाता है. दरअसल, इसी साल कंपनी द्वारा एक नई तकनीक विकसित की गयी थी या कहिये कि एक नई विधि इजाद की गयी थी, जिसे ऑबेसिडिआन नामक पेंटेंट मिला. यह नई विधि डिजिटल इमेजिज से उन अर्ध पारदर्शी कलाकृतियों को हटाने का कार्य करती है, जो कैमरे के ऑप्टिकल पथ में होते हैं। इसके अलावा शाहरुख खान की रेड चिलिज वीएफएक्स, टाटा एलिक्सिज, अजय देवगन की एनवाय वीएफएक्स वाला भी है.
भारत इस क्षेत्र में एक लंबे सफर के बाद किसी मुकाम पर पहुंचने को अग्रसर दिखाई दे रहा है. साल 2020 में प्रकाश में आई भारतीय उद्योग परिसंघ (सीसीआई) और बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट (मीडिया एवं एंटरटेन्मेंट उद्योग) के अनुसार भारतीय एनिमेशन और विजुअल इफेट्स उद्योग की वैश्विक हिस्सेदारी करीब 10 प्रतिशत है, जो साल 2025 तक 20 से 25 प्रतिशत तक पहुंचने की क्षमता रखती है. रिपोर्ट में इस ओर इशारा भी किया गया है कि भारत को स्वंय के एनिमेशन, विजुअल इफेक्ट्स, गेमिंग कॉमिक्स (एवीजीसी) उद्योग बनाने के लिए अपनी ताकत का लाभ उठाना सीखना चाहिए. कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र जैसे राज्य, वित्तिय प्रोत्साहनों और बुनियादी ढांचे के जरिये एवीजीसी को बढ़ावा देने में अग्रणी हैं. दूसरी तरफ देखें तो वीएफएक्स का जो काम अमेरिका में 100 मिलियन डॉलर में होता है, वही भारत में 10 मिलियन डॉलर में हो जाता है जबकि गुणवता वही रहती है.
लेख के अंत में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की कही एक बात याद आ रही है. साल 2014 में पीएसएलवी सी23 रॉकेट के सफल प्रक्षेपण के बाद भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की लागत प्रभावी प्रकृति की प्रशंसा करते हुए अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा था कि देश के मंगल मिशन की लागत बड़े बजट की हॉलीवुड फिल्म ग्रेविटी से कम थी. बता दें कि 86वें ऑस्कर में कुल 10 नामांकन पाने वाली ग्रेविटी ने विजुअल इफेक्ट्स सहित ऑस्कर जीते थे और फिल्म का बजट 80 से 180 मिलियन डॉलर था. वहीं इस मिशन की लागत 450 करोड़ रुपये (करीब 6 करोड़ 90 लाख डॉलर) थी. बॉक्स ऑफिस पर ग्रेविटी ने 723 मिलियन डॉलर कमाए थे.
Rani Sahu

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