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- जनमत का परदा
Written by जनसत्ता; रूस ने यूक्रेन के लुहांस्क, दोनेत्स्क, खेरसान और जेपोरीजिया में पिछले हफ्ते इस बात को लेकर जनमत संग्रह करवाया था कि वहां के लोग रूस के साथ रहना चाहते हैं या नहीं। जाहिर है, इसका नतीजा रूस के मन मुताबिक ही आना था। जैसा कि रूस ने दावा किया है कि इस जनमत संग्रह में 99.2 फीसद वोट पड़े। यानी इन चारों क्षेत्रों के लोगों ने रूस में विलय पर ठप्पा लगा दिया।
पर हकीकत क्या है, यह किसी से छिपा नहीं है। पिछले सात महीने से चली आ रही जंग में रूस ने इन चारों इलाकों में जिस तरह से अभियान चलाया, हमले किए, विरोध करने वालों को रूसी सैनिकों ने ठिकाने लगाया, उसमें जनमत संग्रह का मतलब रूस की मर्जी ही है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय बिरादरी रूस के इस कदम से बौखला गई है। अगर ऐसे आरोप लग रहे हैं कि जनमत संग्रह के नाम पर रूस ने फर्जी मतदान करवाया और रूसी सैनिकों ने स्थानीय नागरिकों को बंदूकों के बल पर धमकाया, तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। याद किया जाना चाहिए कि रूस ने 2014 में क्रीमिया प्रायद्वीप को भी इसी तरह हथिया कर अपने में मिला लिया था।
गौरतलब है कि रूस और यूक्रेन के बीच जंग को सात महीने हो चुके हैं। युद्ध कब और कैसे रुकेगा, कोई नहीं जानता। लेकिन अभी तक दोनों देश जिस तरह से जंग के मैदान में डटे हैं, उसे अच्छा संकेत नहीं कहा जाएगा। जहां शांति के प्रयास होने चाहिए थे, वहां यूक्रेन के इन चार इलाकों पर कब्जे की रूसी कार्रवाई ने आग में घी का काम किया है। जाहिर है, अमेरिका और पश्चिमी देशों को रूस के खिलाफ कदम उठाने के लिए और मौका हाथ लग गया है। अमेरिका, कनाडा और जर्मनी ने रूस के खिलाफ नए प्रतिबंधों की बात कही है और स्पष्ट कर दिया है कि रूस के इस जमनत संग्रह का कोई मतलब नहीं है।
नाटो ने रूस के इस कदम को अंतरराष्ट्रीय कानूनों का खुला उल्लंघन करार दिया। यानी रूस के खिलाफ मोर्चाबंदी अब और तगड़ी होगी। रूस भी युद्ध के मैदान से पीछे हटने वाला नहीं है। बल्कि यह आशंका ज्यादा है कि वह कुछ और इलाकों पर इसी तरह से कब्जे कर यूक्रेन का दायरा छोटा कर सकता है। ये सारी घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि युद्ध थमने के हाल-फिलहाल आसार नहीं हैं।
अब सवाल यह है कि इन चारों इलाकों को रूस में मिला लेने की कार्रवाई के बाद क्रेमलिन का अगला कदम क्या होगा! रूस ने इस बात के संकेत पहले ही दे दिए हैं कि सिर्फ यूक्रेन ही नहीं, बल्कि वह उन सभी देशों को निशाना बनाएगा कि जो नाटो में शामिल होने का सपना देख रहे हैं। अगर ऐसा होता है तो यह स्थिति और खतरनाक होगी। अगर दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध का खतरा सता रहा है तो वह फिजूल नहीं है।
उसकी जड़ें रूस-यूक्रेन संघर्ष में देखी जा सकती हैं। जिन इलाकों पर रूस ने कब्जा जमा लिया है, वे यूक्रेन की अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाते हैं। दोनेत्स्क और लुहांस्क औद्योगिक केंद्र होने के साथ ही कोयले के भंडार वाले क्षेत्र हैं। खेरसान निर्माण गतिविधियों का बड़ा केंद्र है, जबकि जेपोरीजिया में यूक्रेन का सबसे बड़ा परमाणु संयंत्र है। विडंबना यह है कि जिन देशों को शांति की कोशिशें करनी चाहिए, वही इस जंग के मैदान में हित देख रहे हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसी रणनीतियां विनाश की ओर धकेलती हैं।