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कोरोना संक्रमण और उससे होने वाली मौतों को लेकर राज्यों की तरफ से रोजाना जारी किए जाने वाले आंकड़े काफी समय से सवालों के घेरे में रहे हैं।
कोरोना संक्रमण और उससे होने वाली मौतों को लेकर राज्यों की तरफ से रोजाना जारी किए जाने वाले आंकड़े काफी समय से सवालों के घेरे में रहे हैं। कुछ देशी और विदेशी समाचार माध्यमों ने अपने स्तर से कराए अध्ययनों के आधार पर बताया था कि राज्य सरकारों की तरफ से जारी किए गए मौत के आंकड़ों और वास्तविक संख्या में काफी अंतर है। खासकर बिहार के आंकड़ों को लेकर शुरू से संदेह जताया जा रहा था, मगर वहां का स्वास्थ्य विभाग अपने पक्ष पर कायम था। इसे लेकर पटना उच्च न्यायालय ने सरकार को फटकार लगाते हुए जिलावार वास्तविक आंकड़े जुटाने का निर्देश दिया था। तब सरकार ने इसके लिए जिलों में समितियां गठित की थी।
उन समितियों ने अस्पतालों और श्मशानों आदि से इकट्ठा करके जो आंकड़े उपलब्ध कराए हैं, उससे जाहिर है कि सरकारी स्तर पर कोरोना से हुई मौतों की संख्या सही नहीं बताई गई। सरकारी आंकड़ों की तुलना में मौत के नए आंकड़े करीब तिहत्तर फीसद अधिक दर्ज हुए। इसके अलावा कुल संक्रमित होने वालों और इलाज के बाद ठीक होने वालों की संख्या भी छिपाई गई। हालांकि बिहार सरकार ने अपने आंकड़ों को दुरुस्त कर दिया है, पर सवाल है कि इस तरह आंकड़े छिपाने या सही ढंग से पेश न कर पाने की क्या वजह हो सकती है।
इसके पीछे कुछ वजहें साफ है। बिहार सरकार शुरू से कोरोना संक्रमण से पार पाने को लेकर शिथिलता बरतती रही है। पहली लहर के दौरान भी पिछले साल जांच कराने और उपचार सुविधाएं उपलब्ध कराने को लेकर वह लंबे समय तक टालमटोल की मुद्रा में ही नजर आई थी। तब भी चौतरफा आलोचनाओं के बाद वह सक्रिय हुई थी।
दूसरी लहर के दौरान वहां बड़े पैमाने पर संक्रमण फैलना शुरू हुआ, तब भी उसका रवैया पहली लहर जैसा ही था। अव्वल तो वहां स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति ठीक नहीं है, जिसके चलते दूर-दराज के गांवों में संक्रमण की शृंखला तोड़ने की दिशा में प्रभावी कदम उठाए जा सकें। फिर सरकार ने इस दिशा में कुछ बेहतर उपाय जुटाने के प्रयास भी नहीं किए। ऐसे में वहां के प्रशासन ने सबसे आसान तरीका यही समझा होगा कि संक्रमण से जुड़े तथ्यों को छिपाया जाए, जिससे कि राज्य सरकार और प्रशासन की बदनामी न होने पाए। मगर इससे यह तो स्पष्ट हो गया कि सरकार कोरोना संक्रमण रोकने को लेकर शुरू से संजीदा नहीं है। टीकाकरण को लेकर उसकी धीमी गति भी इसकी गवाही देती है।
हालांकि कोरोना से हुई मौतों के आंकड़े छिपाने के मामले में बिहार अकेला राज्य नहीं है। गंगा में बहाई और रेती पर दफ्न की गई लाशों, शवदाह गृहों में लगने वाली भीड़ और लाचारी की तस्वीरों के बरक्स रोज होने वाली मौतों के सरकारी आंकड़ों का मिलान खुद-ब-खुद शक की गुंजाइश पैदा कर दे रहा था। इसलिए अनेक सरकारें इस गुनाह में शामिल हैं।
यह ठीक है कि दूसरी लहर में संक्रमण जिस तेजी से फैला और पूरे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई, उसमें सही-सही आंकड़े जुटाना मुश्किल रहा होगा। मगर जिस तरह कोरोना से हुई मौतों को भी सामान्य मौत बताया गया, घरों में होने वाली मौतों का आंकड़ा जुटाने का प्रयास नहीं किया गया, वह सरकारों की जानबूझ कर की गई घपलेबाजी ही कही जाएगी। अभी कोरोना का खतरा टला नहीं है, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक रोज एक लाख के आसपास लोग संक्रमित हो रहे हैं, पांच हजार से ऊपर मौतें हो रही हैं। अगर अपनी नाकामी छिपाने की गरज से सरकारों का यही रवैया रहा, तो मुश्किलें बढ़ेंगी ही।
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