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वैसे तो दुनिया में सारे ही धर्म अपने मूल स्वरूप में मानवता का संदेश देने वाले हैं
गिरीश उपाध्याय। वैसे तो दुनिया में सारे ही धर्म अपने मूल स्वरूप में मानवता का संदेश देने वाले हैं, लेकिन इनमें भी सिख धर्म का अपना अलग और विशिष्ट स्थान इसलिए है कि वहां जाति, धर्म, पंथ से परे मानवता की सेवा की बात कही गई है. परमार्थ और सेवा का जितना महत्व सिख धर्म में है, उतना शायद ही किसी धर्म में हो. फिर यह सेवा चाहे उपासना स्थलों की हो, वहां आने वाले श्रद्धालुओं की या फिर कहीं भी किसी भी जरूरतमंद की. सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने भी पीड़ित मानवता की सेवा और मनुष्य मात्र से प्रेम का संदेश ही दिया था.
लेकिन सिख धर्म की पुण्य भूमि पंजाब में हाल ही में जिस तरह की घटनाएं सामने आई हैं, वे चिंताजनक और पीड़ादायक दोनों हैं. वहां धर्म और धर्म के प्रतीकों की बेअदबी के दो मामलों में आरोपियों को पीट-पीट कर मार दिया गया. इनमें से एक घटना अमृतसर के हरमंदिर साहिब की है, तो दूसरी कपूरथला की. इससे थोड़े ही दिन पहले दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के धरने के दौरान एक युवक को बेअदबी के ही आरोप के चलते बर्बरतापूर्वक मार दिया गया था.
निश्चित रूप से किसी भी धर्म या उस धर्म के प्रतीकों की अवमानना, उनका अपमान या उनके साथ किसी भी तरह की बेअदबी स्वीकार्य नहीं है. हर धर्म के अनुयायियों की आस्था अपने धर्म और धार्मिक प्रतीकों व धार्मिक आचरण से जुड़ी रहती है, उनका किसी भी तरह से अपमान उन्हें उत्तेजित करता ही है. लेकिन इसके साथ ही यह देखना भी जरूरी है कि ऐसे मामलों में आरोपित के साथ कैसा सलूक किया जाए. पहले दिल्ली और फिर अमृतसर व कपूरथला में जो कुछ हुआ है उसने निश्चित रूप से सिख जैसे महान एवं मानवतावादी धर्म के बारे में अच्छा संदेश नहीं दिया है.
अमृतसर की घटना के बारे में अलग-अलग जानकारियां सामने आ रही हैं. एक जानकारी कहती है कि वह व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार था, जबकि दूसरी जानकारी में इस घटना के पीछे कोई साजिश बताई जा रही है. लेकिन दोनों ही स्थितियों में आरोपी को इस तरह मार देना उचित नहीं कहा जा सकता. यदि वह मानसिक रूप से बीमार था, तब तो उसे भान ही नहीं रहा होगा कि वह क्या कर रहा है और उसके करने का क्या नतीजा होगा. और जिस व्यक्ति को अपने कृत्य के परिणमों का भान ही नहीं हो उसे यूं मौत के घाट उतार देना कैसे जायज ठहराया जा सकता है.
दूसरे यदि वह घटना किसी साजिश का परिणाम थी तो भी उस व्यक्ति को जिंदा रखा जाना चाहिए था ताकि पता तो चल सके कि उसके पीछे कौन लोग थे और उनका उद्देश्य क्या था. पंजाब में पिछले कुछ सालों से यह बात उठती रही है कि किसी साजिश के तहत इस तरह की घटनाएं हो रही हैं. यदि ऐसा ही है तो फिर आरोपी को मार देने से तो साजिश के सारे सबूत ही नष्ट हो जाते हैं.
इसी तरह कपूरथला की घटना में शामिल युवक के बारे में कहा जा रहा है कि वह बेअदबी के इरादे से नहीं, बल्कि चोरी के इरादे से आया था. उसके पास से चोरी का सामान भी मिला है. दूसरी तरफ पुलिस की आरंभिक जांच कहती है कि गुरुद्वारे में बेअदबी के कोई निशान नहीं मिले हैं. यदि यह सही है तो बिना किसी प्रमाण के यूं किसी को पीट-पीट कर मार डालना किसी भी धर्म में स्वीकार्य नहीं हो सकता. किसी भी व्यक्ति द्वारा किया गया ऐसा हर काम कानून की नजर में अपराध है और उस पर कानून के हिसाब से ही कार्रवाई होनी चाहिए. कानून हाथ में लेकर इस तरह किसी को सरेआम मार डालने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती.
दरअसल जब भी ऐसी घटनाएं होती हैं उनमें सबसे पहले राजनीति का प्रवेश हो जाता है. इन दिनों धार्मिक मामलों में तो राजनीति कुछ ज्यादा ही प्रोएक्टिव रोल अदा कर रही है. पंजाब में चुनाव नजदीक होने के चलते वहां का सियासी पारा वैसे ही चढ़ा हुआ है. लिहाजा पंजाब की सारी पार्टियां अपने अपने हिसाब से इस मामले की व्याख्या करते हुए उसे उठा रही हैं. घटना के बाद मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी भी स्वर्ण मंदिर पहुंचे जहां उन्होंने बेअदबी की जांच कराने का आश्वासन दिया है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अपनी तरफ से अलग से मामले की जांच करवा रही है.
वैसे मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पंजाब में धार्मिक भावनाएं आहत करने या उन्हें भड़काने के मामले में लगातार बढ़ोतरी हो रही है. खबरें कहती हैं कि पंजाब में 2015 से लेकर अब तक 150 से अधिक ऐसे मामले हो चुके हैं जो हिन्दू, सिख, इस्लाम सभी धर्मों से जुड़े हैं. ताजा मामलों की टाइमिंग को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. पंजाब के जानकार कहते हैं कि चूंकि राज्य में विधानसभा के चुनाव नजदीक हैं इसलिए ऐसी घटनाओं के पीछे पाकिस्तान का हाथ होने इनकार नहीं किया जा सकता.
मामला चाहे जो हो लेकिन इसका सबसे दुर्भाग्यजनक पहलू ये है कि इतनी बर्बर घटना हो जाने के बाद भी न तो सामाजिक रूप से और न राजनीतिक रूप से इसके खिलाफ कोई आवाज उठती है. वोट बैंक को खुश रखने के लिए हर दल कोशिश करता है कि मामले को सियासी रूप से भुना लिया जाए. और इसी चक्कर में कानून व्यवस्था की दुर्गति हो जाती है. यह कोई नहीं देखता कि इस तरह की घटनाओं को अंजाम देकर आखिर हम किस तरह का समाज बनाने की तरफ बढ़ रहे हैं. अपराध कैसा भी हो सजा देने का अधिकार भारत के कानून को है किसी व्यक्ति या समुदाय को नहीं.
हालांकि सिख धर्म के अनुयायी अपने धार्मिक आग्रहों को लेकर कुछ ज्यादा संवेदनशील रहे हैं. लेकिन उन्हें भी यह सोचना होगा कि ऐसे मामलों का हल इस तरह मॉब लिंचिग के जरिये न निकाला जाए. सिख एक महान धर्म है. उसमें सामाजिक समरसता के साथ साथ मनुष्य मात्र से प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया गया है. ऐसे में इस तरह की हत्याएं पूरे धर्म को बदनाम करती हैं. ये तो बेअदबी करने वाले बड़े लोग थे, यदि किसी बच्चे के हाथ से अनजाने में ऐसा कुछ हो जाता तो क्या उसे भी इसी तरह मार दिया गया होता?
विडंबना देखिये कि एक तरफ अपने महान गुरुओं गुरु गोबिंदसिंह के परिवार और गुरु तेगबहादुरसिंह पर बर्बर अत्याचार करने वाले औरंगजेब के धर्म इस्लाम के अनुयायियों को नमाज पढ़ने लिए गुड़गांव का एक गुरुद्वारा अपने दरवाजे खोल देता है. वहीं दूसरी तरफ गुरु ग्रंथसाहिब के सामने एक व्यक्ति को बेअदबी के मामले में पीट पीटकर मार डाला जाता है. सिख धर्म मानवता और सहिष्णुता सिखाता है. सिखों ने अपने पराक्रम से हमेशा पीडि़त मानवता की रक्षा की है, खुद का बलिदान देकर लोगों की जान बचाई है. उस धर्म में ऐसी घटनाएं होना स्वयं सिख समाज के लिए चिंता और विचार का विषय होना चाहिए. कोई भी सच्चा सिख और गुरु का भक्त यह नहीं चाहेगा कि उसके धर्म और उसकी कौम पर इस तरह का कोई लांछन लगे.
जहां तक ऐसे मामलों के पीछे किसी साजिश की बात है तो सरकार और प्रशासन को भी इसकी जल्द से जल्द जांच करवाकर उसका खुलासा करना चाहिए. यदि सचमुच ऐसा किसी साजिश के तहत किया जा रहा है तो सजा उन लोगों को मिलनी चाहिए जो यह साजिश रच रहे हैं. ऐसी साजिश रचने वालों के इरादे सामान्य नहीं हो सकते. निश्चित रूप से ऐसी साजिशों का उद्देश्य देश के सामाजिक ताने बाने और सामाजिक समरसता को तोड़ना ही होता है ताकि देश कमजोर हो. ऐसे साजिशकर्ताओं के मंसूबों को नाकाम करने के लिए भी जरूरी है कि हम उत्तेजना में कोई कदम उठाने के बजाय बहुत सोच समझकर अपनी प्रतिक्रिया दें. गुस्से या उत्तेजना में किए गए काम से किसी का भला नहीं होने वाला, न देश का न समाज का और न किसी धर्म का.
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