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- पूजा-स्थल कानून की...
पूजा-स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 की विरोधाभासी व्याख्या की जा रही है। ज्ञानवापी परिसर के संदर्भ में यह कानून बेहद महत्त्वपूर्ण है। मुस्लिम पक्ष के नेता, प्रवक्ता और मौलाना-मौलवी एक ही सुर में दलीलें दे रहे हैं कि ज्ञानवापी परिसर का सर्वे करा और कथित शिवलिंग की विशेष सुरक्षा करा निचली अदालत ने 1991 के कानून का उल्लंघन किया है। दूसरी तरफ भाजपा और हिंदू पक्ष का स्पष्टीकरण है कि उक्त कानून की संवैधानिक वैधता सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है, लिहाजा इस कानून की दलीलें देना गलत है। चूंकि 1991 का कानून संसद और भारत सरकार के जरिए पारित किया गया है, लिहाजा वह आज भी 'लागू' कानून है। बेशक कानून तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव के कार्यकाल के दौरान बनाया गया और आज भाजपा की मोदी सरकार है, लेकिन फिर भी कानून भारत सरकार का है। जब तक संसद इस कानून में संशोधन पारित नहीं करती अथवा सरकार इसे खारिज करने का प्रस्ताव संसद में पारित नहीं कराती, तब तक यह संवैधानिक कानून है और देश भर के पूजा-स्थलों के बुनियादी धार्मिक चरित्र पर लागू होता है। मुस्लिम पक्ष यह दुहाई भी दे रहा है कि 1991 के कानून को नजरअंदाज़ करने से संविधान के अनुच्छेद 14,15, 20, 21, 25 आदि के तहत उन्हें नागरिक के तौर पर जो अधिकार प्राप्त हैं, उनका भी हनन किया जा रहा है। ज्ञानवापी मंदिर था अथवा मस्जिद है, इसकी तह तक जाने से पहले अदालत के लिए कानून की संवैधानिक वैधता तय करना अनिवार्य है।