सम्पादकीय

Valentine's Day: मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखा..!

Rani Sahu
12 Feb 2022 9:38 AM GMT
Valentines Day: मकतब-ए-इश्क़ का दस्तूर निराला देखा..!
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बहुत फसाने लिखे गए, बहुत अफसाने गाए गए। फिर भी फ़क़त ढाई आखर प्रेम के समझ में न आए

स्वाति शैवाल

तुमने आंखों में देखा,
वो वहां नहीं था।
वो तो नजरों में तैर रहा था,
सपनों के जैसे।

तुमने चेहरे पर देखा,
वो वहां भी नहीं था।
वो सिक्स पैक एब्स में भी नहीं था,
न था इंच टेप के पैमानों में।
वो फूले हुए बटुए में भी नहीं था,
न था उस बड़ी सी गाड़ी के काले शीशों के भीतर।
क्या तुमने सच में उसको खोजा था?
जैसे रूह खोजती है आसमान के परे।

अपना वो ठिकाना जहां सिर्फ,
रुई से सफेद बादल हैं और।
ख्वाबों सा नीला आसमान,
जिस पर प्रेम की परत चढ़ी है।
वो अभी तुम्हारे पीछे से ही तो गुजरा है,
हवा के ताजे झोंके की तरह।

साइकिल के कैरियर पर मुस्कुराता,
जिसके तेल लगे बालों में बंधे हुए थे सस्ते से लाल रिबिन।
उसके प्रेम की निशानी हैं,
उसके स्याह चेहरे पर चमकते हैं हज़ारों सूरज।
पसीने की बूंदें उसपर चमकती हैं,
हीरों के अनमोल गहनों की तरह।

बिखेर देती है वो असंख्य फूल प्रेम के,
जो उसी को नजर आते हैं जो प्रेम में है।
बहुत फसाने लिखे गए, बहुत अफसाने गाए गए। फिर भी फ़क़त ढाई आखर प्रेम के समझ में न आए। प्रेम, सोचो तो सात आसमानों के पार की रूमानी सैर, एक पल में तमाम शरीर में कैमिकल लोचे की बहार और जब करने बैठो तो आंसुओं का दरिया, आग का समंदर।
क्या वाकई प्रेम इतना कठिन है, जटिल है कि समझ न आए। असल में प्रेम एकदम सरल है, जो जिसको समझ आया वो किसी और को शब्दों में बता नहीं पाया। जिसने सच्चे प्रेम के लिए जीवन दिया उसके लिए हर दिन प्रेम दिवस और हर पल प्रेम है।
प्रेम एक शब्द से कहीं आगे भावना की तरह बहता है। इसलिए प्रेम शरीर भर नहीं है। ये बात आप उस दिन जान जाते हैं जिस दिन प्रेम की इस भावना को आप बाकी चीजों के इतर देखना शुरू कर देते हैं। जब बड़ी ही सहजता से अपनी थाली में रखी कोई खास डिश भी मां बच्चे की प्लेट में रखकर खुश हो जाती है, जब दफ्तर में अपनी डेस्क पर रखी फैमिली की फोटो टारगेट अचीव न करने पर आपकी ताकत बन जाती है। तब प्रेम तमाम बाधाओं पर विजय पा जाता है।
मां अपने कॉलेज के दिनों की एक बात अक्सर साझा किया करती हैं। उनके एक प्रोफेसर थे इंग्लिश लिटरेचर के। गजब के हैंडसम और टैलेंटेड। कॉलेज की लड़कियां उनकी एक झलक देखने के लिए बहाने ढूंढा करतीं। चाहे वो दूसरे सब्जेक्ट की स्टूडेंट्स ही क्यों न हों।
मगर जब प्रोफेसर साहब ने कॉलेज की ही एक बेहद साधारण सी दिखने वाली प्रोफेसर से प्रेम विवाह किया तो सब सकते में थे। कुछ का कहना था ये शादी ज्यादा नहीं टिकेगी तो कुछ कहते थे जरूर प्रोफेसर साहब ने कोई फायदा देखा होगा। साल दर साल गुजरे और वो जोड़ा प्रेम की मिसाल की तरह कायम रहा।
दुर्भाग्य से कुछ सालों बाद प्रोफेसर साहब की पत्नी एक गम्भीर मर्ज की शिकार हो गईं। प्रोफेसर साहब ने अपनी सारी जमापूंजी अपनी सामर्थ्य खर्च कर डाली। वे उस जमाने में प्लेन से अपनी पत्नी को विदेश ले गए इलाज के लिए लेकिन ज्यादा फायदा नहीं हुआ।
इलाज के दौरान खुद प्रोफेसर साहब अपने हाथों से पत्नी को खिलाते, नहलाते, दवाई देते और पूरा दिन उनका हाथ थामे बैठे रहते। आखिरकार एक दिन उनकी पत्नी अनन्त यात्रा पर चली गईं। और प्रोफेसर साहब ने तब भी साथ नही छोड़ा। वे उनके हमसफर बन गए। सुनने में यह बात आदर्शों वाली लगती है लेकिन सच्चा प्यार वही है जहां निभाने की ताकत मन से मिले।
दुनिया जितनी तेजी से बदल रही है वहां प्यार का मतलब सबने अपनी सुविधा के हिसाब से तय कर लिया है। किसी के लिए प्यार महज आकर्षण है तो किसी के लिए बड़े खर्च उठाने वाला एटीएम। किसी के लिए यह मात्र शारीरिक सुख पाने का जरिया है तो किसी के लिए मन बहलाने का।
इसलिए अब का प्यार ज्यादातर प्रीपेड कनेक्शंस जैसा है जिसकी वैलिडिटी जल्द खत्म हो जाया करती है। जबकि प्यार को तो अनलिमिटेड वैलिडिटी वाला होना चाहिए। लेकिन ऐसा होता बहुत ही कम है और जहां होता है वहां सच्चा प्यार होता है।
प्रेम वो है जब आगे के दो टूटे दांतों के साथ पहली कक्षा में आप अपने टिफिन की सबसे पंसदीदा डिश क्लास में किसी एक के साथ शेयर करना चाहें या नकली दांतों और झुकी कमर के साथ भी आप शाम की चाय के लिए उसी एक व्यक्ति का इंतजार करें जो सालों से आपकी बक बक सुनकर भी बोर नही हुआ।
मर्द और औरत से परे प्रेम इंसान होने की भावना है। यह भावना वही है जिस भावना से इंसान किसी इंसान के प्रति, इंसान किसी प्राणी, प्रकृति या देश के प्रति प्रेम रखता है। जब आप किसी की इतनी फिक्र करते हैं कि उसकी तकलीफ आपको अपनी लगने लगे, उसकी खुशी में जश्न मनाने को दिल करे, उसको आगे बढ़ाने में आप खुद को भूल जाएं तो यह असली प्रेम है। और यही प्रेम आज की दुनिया की सबसे बड़ी ताकत और जरूरत भी है।
दुआ कीजिए की स्वार्थ के लिए इंसान को इंसान के खिलाफ करने और लालच के लिए हर सीमा भुला देने वालों के ऊपर कोई क्यूपिड तीर मारे। ताकि सरहदों पर खड़े सिपाही भी खुश होकर प्रेम के गीत गाएं। प्रेम की हवा बेरोकटोक इतराती हुई हर सरहद के पार लोगों को अपना बनाती चलती चली जाए।
Rani Sahu

Rani Sahu

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