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नए साल के पहले दिन जम्मू स्थित वैष्णो देवी मंदिर में मची भगदड़ के कारण हुई 12 श्रद्धालुओं की मौत विचलित करने वाली है। हालांकि घायलों को तत्काल हॉस्पिटल पहुंचाने की व्यवस्था हुई।
नए साल के पहले दिन जम्मू स्थित वैष्णो देवी मंदिर में मची भगदड़ के कारण हुई 12 श्रद्धालुओं की मौत विचलित करने वाली है। हालांकि घायलों को तत्काल हॉस्पिटल पहुंचाने की व्यवस्था हुई। मृतकों के परिजनों और घायलों के लिए मुआवजे का एलान भी तुरंत कर दिया गया। लेकिन फिर भी यह देखना जरूरी है कि आखिर इस तरह की घटना हो कैसे गई।
वैष्णो देवी मंदिर देश के प्रमुख आस्था केंद्रों में है, जहां देश भर से श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। यहां की व्यवस्था को दूसरे तीर्थस्थलों के लिए आदर्श बताया जाता रहा है। इसलिए यह दुर्घटना और भी बड़ी हो जाती है। हादसे के बाद शुरुआती स्पष्टीकरण में कहा गया कि खास त्योहारों के मौकों पर तो मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या में इजाफा होता रहा है। पिछले कुछ वर्षों से युवाओं की अच्छी-खासी तादाद नए साल के मौके पर भी वैष्णो देवी और अन्य मंदिरों में जाने लगी है। इसी क्रम में इस साल वैष्णो देवी मंदिर पहुंचने वाले भक्तों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाने से समस्या हुई। लेकिन श्राइन बोर्ड के ही आंकड़ों के मुताबिक 31 दिसंबर और 1 जनवरी को 35 हजार श्रद्धालुओं को ही दर्शन की इजाजत दी गई थी, जो 50,000 की निर्धारित सीमा से काफी कम थी।
ऐसे में सामान्य स्थिति में भीड़ प्रबंधन कोई मुश्किल काम नहीं होना चाहिए था। कहा जा रहा है कि संभवत: युवा श्रद्धालुओं के दो समूहों में किसी बात को लेकर विवाद हो गया था। कुछ प्रत्यक्षदर्शियों ने मीडिया को बताया कि वहां मौजूद पुलिसकर्मियों की तरफ से शक्ति प्रयोग से भी हालात बिगड़े। बहरहाल, इस तरह टुकड़ों में आए तथ्यों और अपुष्ट बयानों के आधार पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। निष्पक्ष और विश्वसनीय जांच से ही पूरी स्थिति सामने आएगी। यह अच्छी बात है कि जम्मू-कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर की तरफ से तत्काल दुर्घटना के कारणों का पता लगाने के लिए जांच की घोषणा कर दी गई। इस समिति को एक सप्ताह के अंदर ही अपनी रिपोर्ट देनी है।
लेकिन घटना के बाद स्थानीय निवासियों की ओर से किए गए विरोध प्रदर्शन में यह आशंका जताई गई कि लेफ्टिनेंट गवर्नर की ओर से गठित जांच समिति मंदिर प्रबंधन की भूमिका की ढंग से जांच नहीं कर पाएगी और इसीलिए सीबीआई जैसी सेंट्रल एजेंसी से इस मामले की जांच करवाई जानी चाहिए। बहरहाल, ऐसे बयानों के पीछे अक्सर लोकल समीकरणों की भी भूमिका होती है, इसलिए इसे एक हद से ज्यादा अहमियत नहीं दी जा सकती, लेकिन इससे जांच समिति की चुनौतियां जरूर बढ़ गई हैं। उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि जांच के दौरान सभी महत्वपूर्ण पहलुओं पर रोशनी पड़े और सभी प्रासंगिक सवालों के संतोषजनक जवाब तलाशे जाएं। तभी इस भगदड़ के लिए जिम्मेदार स्थितियों की सही तस्वीर सामने आएगी और यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि आगे कभी ऐसी घटना न हो।
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